Monday 31 December 2007

काश मेरा जन्मदिन भी साल में कई-कई बार आता!

प्रेम और जन्मदिन में क्या संबंध है?
आप भी सोचियेगा कि क्या फालतू का सवाल मैं कर रहा हूँ। सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन आधुनिक प्रेम में जन्मदिन का काफी महत्त्व है। आज-कल कई बार ऐसा होता है कि किसी दोस्त के बारे में एक साल के अन्दर कई बार उसके जन्मदिन के बारे में सुनने को मिल जाता है। पहले तो थोडी हैरत होती थी लेकिन अब इसमे कोई हैरानी नहीं होती। अब दोस्ती का मामला है भेद तो खोल नहीं सकता।

एक मेरे मित्र ने अप्रैल में एक बार जन्मदिन मनाई थी लेकिन अभी २-३ माह ही बीते थे कि बेचारे को एक दिन प्रेम हो गया। अब जो लड़की पसंद आई थी उसको इम्प्रेस करने के लिए उन्होने पार्टी देने कि सोची और कहा कि मेरा जन्मदिन पहली जनवरी को है। और इसी के साथ साहब ने अपनी नयी प्रेमिका को जन्मदिन मनाने के लिए पार्टी के लिए १ तारीख को दावत दे दी। मुझे पार्टी के लिए आमंत्रित करते हुए बताया गया कि बताना मत। अब मैं क्या कह सकता था। अगर मुझे ६ माह में सालाना जलसे की मिठाई खाने को मिले तो मुझे क्या हर्ज हो सकता था।

लेकिन मुझे सबसे ज्यादा हैरानी अपने मित्र महोदय के आत्मविश्वास से हुआ। उन्हें इस बात का पक्का यकीं था कि अगले साल पहली जनवरी से पहले इस महबूबा से छुटकारा मिल जायेगा। नहीं तो बेचारे ने इतना झूठ बोलने कि हिम्मत नहीं की होती। अब भईया हम तो साल में एक बार जन्मदिन मनाने का मौका मिलता नहीं २ बार-३ बार कहाँ से मनाता, आख़िर किसके लिए मनाता। ये सब बडे जिगर वालों का काम है जो प्यार को इस तरह से मैनेज करने का जिगर रखते हैं। वैसे भी प्यार कोई बच्चों का खेल नहीं।

भाजपा को फिर से याद आये रामजी!

रविवार ३० दिसम्बर को भाजपा के नेताओं के लिए काफी व्यस्त दिन रहा। एक दिन में दो बड़े आयोजन थे। हिमाचल में भाजपा की सरकार सत्ता में आई थी प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद कि शपथ लेनी थी वही दिल्ली में विश्व हिन्दू परिषद कि रैली थी जो राम सेतु के मसले पर बुलाई गई थी। पहले जब शिमला में मंच पर पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह नहीं दिखे तो लोगों को हैरत हुई कि अरे ये क्या हुआ. पार्टी का इतना बड़ा आयोजन और राजनाथ जी कैसे गायब हो सकते हैं। शिमला के मंच पर दिल्ली से आडवाणी जी और नकवी जी दिखे।

थोडी देर बाद जवाब खुद मिल गया। दिल्ली में विहिप की रैली के मंच पर बाक़ी के नेता दिख गए। राजनाथ सिंह जी के साथ मुरली मनोहर जोशी जी और सुषमा जी भी विहिप की रैली में मंच पर साधू-संतों की भीड़ में दिख गए। जोशी जी ने बाहर निकल कर मीडिया के बीच राम सेतु मसले पर केन्द्र की कांग्रेस सरकार को घेरने का प्रयास किया। राजनाथ जी की दिल्ली में उपस्थिती ये बता रही थी की हिमाचल में जीत की ख़ुशी मनाने से ज्यादा जरूरी पार्टी अध्यक्ष जी के लिए राम सेतु के मसले पर हो रही रैली थी। लेकिन काफी लोगों को दिल्ली के इस मंच पर मोदी जी को न देखकर निराशा हुई।

गुजरात के कुछ ऐसे लोगों से मेरी बात हुई जो विहिप से जुडे हुए है और काफी सक्रिय हैं। रैली में मोदी के न आने को लेकर उनमें कोई हैरानी नहीं थी। उनका कहना था की मोदी जी ने अपने काम के बदौलत सत्ता बरक़रार रखी है और दिल्ली रैली में मोदी के न आने को लेकर उनका कोई स्पष्ट विचार सामने नहीं आया। लेकिन राम सेतु के मसले ने बीजेपी को एक ऐसा मसला दे दिया है जिसे अगले चुनाव में बीजेपी राम मंदिर के मामले के बदले भुना सकती है और बीजेपी इस बात की गंभीरता को समझ रही है। इसी कारण राम सेतु पर कोई भी मौका बीजेपी गवाना नहीं चाहती। बीजेपी को ऐसा लगने लगा है कि जो पार्टियां अभी इसे हल्के में ले रही है आगे चलकर उन्हें इसका नुकसान हो सकता है। बीजेपी इसे ऐसे मौक़े के रुप में देख रही है जिस पर वह दक्षिण भारत के हिन्दुओं को भी अपने पक्ष में गोलबंद कर सकती है। अपने पक्ष में अचानक आये इस मौक़े को देखकर बीजेपी को फिर वो राम याद आ गए हैं जिन्हें १९९८ में सरकार बनाने के बाद उसने भुला दिया था।

Sunday 30 December 2007

न्यू ईयर पर बाज़ार में खूब बिक रहा है दिल!

न्यू ईयर पर बाज़ार में ग्रीटिंग कार्ड्स की धूम में दिल की खूब बिक्री हो रही है । कई कार्ड्स पर तो एक की बजाय कई-कई दिल छपे हुए है। किसी को उपहार देना हो बाज़ार में एक रूपये से लेकर मंहगे से महंगा ग्रीटिंग कार्ड है। लेकिन एक बात सब में समान है। सब में नए साल की शुभकामनाएं छपी है साथ में लगभग हर कार्ड में एक , दो या फिर ढेर सारे दिल लगे हुए है। आपको अब अगर किसी को दिल देना है तो अपना दिल जाया करने कि जरूरत ही क्या है, जाइये बाज़ार और खरीद lijiye एक सस्ता सा दिल और उसपर किसी शायरी कि किताब से एक अच्छी सी शायरी चुनकर अच्छी सी लिखावट में लिख डालिए और दे दीजिए अपने अजीज को अपना ये प्यारा सा दिल ।

इस दिल के कई फायदे हैं। अगर बाद में आपके अपने अजीज ने आपका दिल तोड़ दिया तो आपकी जिंदगी बर्बाद होने से भी बच जायेगी. और इस खेल में आपका खर्च भी बमुश्किल एक या दो रूपये का आयेगा। वैसे भी इस सस्ते दिल की आजकल के युवावों को काफी जरुरत है। अब उन्हें कईयों को अपना दिल देना पड़ता है। अब भाई असली दिल इतने कहाँ से आएंगे। वो तो केवल गानों में होता है कि दिल के टुकरे हजार हुए , कोई यहाँ गिरा- कोई वहाँ गिरा। अब असल में दिल के अगर कई हिस्से हुए तो न वो बेचारा किसी काम का रहेगा और न ही बेचारे का बेचारा दिल। वैसे अब अगर आपका अजीज आपसे काफी दूर है तो आपको अपना दिल भेजने के अब कई माध्यम मिल जायेंगे। इंटरनेट पर जाइये और ग्रीटिंग्स में से कोई अच्छा सा दिल वाला ग्रीटिंग चुनकर ई-मेल कर दीजिए। वैसे भी न हो तो मोबाइल पर एक दिल वाला ग्रीटिंग ही चिपका दीजिए। अब अपने अजीज को ख़त भेजने के लिए ना तो किसी कबूतर कि मिन्नत करनी है और ना ही डाकिये की चिरोरी । आधुनिकता ने प्रेमियों को कितनी सुविधाये दे दी है। वैसे नए साल पर दिल भेजने वालों को थोडा सा दिल वैलेंटाइन डे के लिए भी बचाना पड़ता है कारण कि अब प्रेमियों का ये पर्व भी अब ज्यादा दूर नहीं है। इसकी तैयारी तो अभी से ही शुरू करनी पड़ेगी ना।

Sunday 23 December 2007

विधायक, सांसद टाई-सूट में नज़र आएंगे!

ग्लोबलाइजेशन के बाद इधर अपने नेता जी लोगों के लिए विदेश यात्रा की संभावनाएं काफी बढ़ गयी है। तब से लेकर नेतागिरी के पेशे में आने वाले कुछ पढे-लिखे लोग हमेशा ये कोशिश करते रहे हैं कि जो नेता विदेश जाये उन्हें थोडा स्मार्ट बनाया जाये। अब चुकी ये बात तय नहीं है कि कौन विदेश जाएगा और कौन नहीं। इधर गठबंधन सरकारों के आने से पहली बार विधायक बने या फिर निर्दलीय विधायकों के विदेश जाने कि संभावनाए ज्यादा हो गई है। आख़िर सरकार चलाने की ज्यादा जिम्मेदारी अब उन्ही पर आ गई है। झारखण्ड इसका सबसे अच्छा उदाहर पेश कर रहा है। वहा तो किसी भी विधायक के लिए विदेश यात्रा बहुत ही आसान है, आख़िर निवेश लाने के लिए उनसे बेहतर विदेश यात्रा और कौन कर सकता है।

इसी बात को ध्यान में रखते हुए झारखण्ड के सारे विधायक जल्द ही जींस, रंग-बिरंगी शर्टे और टोपी पहने दिखाई दे सकते हैं । झारखड विधानसभा के अध्यक्ष्र आलमगीर आलम विधानसभा में एक ड्रेस कोड लागू करने का मन बना चुके हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और स्वतंत्र विधायक इंदर सिंह नामधारी द्वारा ड्रेस कोड का मुद्दा उठाए जाने के बाद आलम ने कहा है कि सभी पार्टियों के नेताओं और विधायकों के साथ बैठक कर ड्रेस कोड की जरूरत पर सहमति बनाई जाएगी। ठीक ऐसा प्रयास केन्द्रिया संसदीय कार्य मंत्री प्रिय रंजन दास मुंशी भी कर चुके हैं। उनका विचार था कि सभी सांसद सूट - में आया करे । लेकिन दरजी के नाम पर सहमति नहीं बन सकी और ये प्लान अभी पूरा नहीं हो पाया है। हम उम्मीद करते है कि जल्द ही ये भी होगा।

जाएँ या रहें- मोदी तो मोदी ही रहेंगें!

अब कुछ घंटों में गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणाम आने शुरू हो जायेंगे। पूरा देश इंतज़ार कर रहा है की क्या आयेगा परिणाम। इस चुनाव में सबसे ज्यादा नरेन्द्र मोदी का दांव पर लगा हुआ है। परिणाम कुछ भी हो मोदी ने आखिरी समय तक जिस आत्मविश्वास का परिचय दिया है भारत की जनता को अब आगे एक ऐसे ही प्रधानमंत्री कि जरूरत है। कार्यवाहक मुख्यमंत्री होते हुए भी राष्ट्रीय विकास आयोग कि दिल्ली में हुई बैठक में मोदी ने जिस आत्मविश्वास से देश से जुडे हुए मसलों पर प्रधानमंत्री और केन्द्र सरकार से नज़र मिलाकर बात की है देश में उससे बहुत अच्छा संकेत गया है। २१वी सदी के भारत और इसके सम्मान के बारे में सोचने वाले हर भारतीय के लिए अब मोदी एक प्रतीक बनते जा रहे हैं । इस चुनाव में मोदी का रास्ता रोकने के लिए उनकी पार्टी के अन्दर भी कई लोग खड़े हुए लेकिन ईससे मोदी का आत्मविश्वास नहीं डिगा और शायद मोदी कि यही छवि अब उन्हें गुजरात के अलावा पूरे देश में लोकप्रिय बनाती जा रही है। गुजरात में विपक्षी कांग्रेस तो मोदी के कद का कोई नेता भी नहीं दे सकी, मुद्दों कि बात ही छोड़ दीजिए।

रही विचारधारा कि बात तो अब मोदी ही अकेले ऐसे नेता दिख रहे है जो देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बन रहे आतंकवाद के खिलाफ खुलकर बोलने कि हिम्मत कर रहे है। बाक़ी तो सारे लोग जनता को या तो डराने का काम कर रहे है या फिर हमलों के बाद निंदा करने का। मोदी ने गुजरात में आतंकवाद पर लगाम लगा कर दिखाया है कि आतंकवाद को हराया जा सकता है, दबाया जा सकता है। जब पूरा देश आतंकवादियों से आजिज आ चुका होगा तब सभी मोदी की ओर ही देखेंगे।...

Thursday 20 December 2007

अब 'भारत' भी चलेगा कार पर!

१९९० के दशक के अंत में देश में ये डिजिटल डिवाईड को लेकर बहस बहुत तेज थी । लगभग हर बहस-मुबाहिसे में भारत और इंडिया को अलग कर देखने और दोनों के जीवन स्तर में अंतर पर बाहर एक फैशन जैसा हो गया था। इन दोनों दुनिया में फर्क कार पर चलने वाली आबादी तय करती थी। अर्थात जो कार पर चलते हों वो अगर और जो कार पर नहीं चलते वो देश भारत के लोग।

इधर जल्द ही इस बारे में टाटा कंपनी बड़ा बदलाव लाने वाली है। january २००८ में वह lakhtakiyaa कार के साथ बाज़ार में उतरने वाली है। जाहीर है कि यह एक ऐसी राशी है जिसे देश की बहुसंख्यक जनता या तो खुद के कार खरीदने पर खर्च कर सकती है या फिर सर्वजिंक रुप से चलने वाली कारों की सवारी कर सकती है। कल ही एक खबर आई थी कि टैक्सी एजेंटों कि निगाह टाटा के इस कार पर टिकी है। अगर ये कार उनकी अपेक्षावों पर खरी उतरती है तो जहीर है भारत कि अधिसंख्य आबादी कारों पर चलने लायक होगी। और फिर शहरी आबादी को कारो पर चलन के अलावा आगरा दिखने के लिए कोई और जुमला गढ़ना होगा.....................

सब्सिडी नहीं तो फिर आरक्षण क्यूँ!

सरकार का हाथ आम आदमी के साथ नारे वाली पार्टी कि सरकार है हमारे देश में। उस सरकार के मुखिया ने एक दिन कहा कि अब वक्त आ गया है कि किसानों को मिलने वाली सब्सिडी ख़त्म कर दी जाये। सरकार का कहना है कि इस से सरकार के ऊपर बोझ बहुत ज्यादा हो गया है और सही लोगों को इसका फायदा भी नहीं पहुंच रहा है। इसके कुछ दिन बाद ही उस सरकार ने देश के अल्पसंख्यकों के लिए पंचवर्षीय योजना मी से १५ फीसदी फंड एलौट कर दिया । सरकार को ये कोई बोझ नहीं लगा। अगर इस बात का कोई विरोध करे तो ये सरकार उसे सांप्रदायिक कहने से पीछे नहीं हटने वाली।

अब सरकार को ये भी सुनिश्चित करना चाहिऐ कि बाक़ी के बचे ८५ फीसदी पैसे से बने सड़क पर कोई अल्पसंख्यक नही चले, उस पैसे से हुए किसी काम का फायदा किसी अल्पसंख्यक को नहीं हो। अगर देश का बहुसंख्यक समुदाय इस तरह की माँग उठाने लगे तो इसमे बुराई क्या है। अगर १५ फीसदी पैसे पर अल्पसंख्यकों का अधिकार है तो बाक़ी के ८५ फीसदी पर बहुसंख्यकों का अधिकार भी तय होना चाहिऐ। सरकार का ये कदम देश को सांप्रदायिक अधर पर बांटने वाला है। अब ये भी तय होना चाहिऐ कि इस पैसे का ऐसे लोगों को भी फायदा नहीं होना चाहिऐ जो देश के खिलाफ काम करने वाली शक्तियों से मिले हुए हों। आतंकी हमलों को रोक पाने में असफल रही इस सरकार को ये भी तय करना चाहिऐ।

Wednesday 12 December 2007

नंदीग्राम में वामपंथ का पंथ गायब!

१९६० के दशक में पश्चिम बंगाल के नक्सल बारी में हुए वामपंथी आन्दोलन ने वाम पंथ के लिए एक आईने का काम किया था। उसने समाज को ये दिखाया था कि भारत का वामपंथ अपने पंथ से हट रहा है। उस दौर में बंगाल में मुख्यधारा की वामपंथी पार्टियों ने मध्य वर्ग को विस्वास में लेकर, विशेषकर ग्रामीण आबादी को भरोसे में लेकर पश्चिम बंगाल में सरकार बनाई थी. लेकिन आज नंदीग्राम में चल रही लड़ाई भारत के वामपंथी विचारधारा से ताल्लुक रखने हर आदमी के लिए अहम् है। आज वहाँ चल रही लड़ाई में किसान और आम आदमी जमीन अधिग्रहण के खिलाफ खड़ा है और जो वामपंथी सरकार और वामपंथी पार्टी (सत्ताधारी) है वो उसके खिलाफ लड़ाई के मैदान में है। इस लड़ाई में माकपा को छोड़कर अन्य जो पार्टियां हैं, चाहे वे सरकार में साझेदार ही क्यों न हो माकपा के खिलाफ हैं। लेकिन उन्हें अपनी आवाज इस दर से दबानी पद रही है कि कह इस लड़ाई(sattasangharsh) कि आड़ लेकर माकपा उनकी वाम विचारधारा और वोट बैंक को हाईजैक ना कर ले।

नंदीग्राम में संघर्ष शुरू हुए एक साल होने जा रहा है। वहाँ लड़ाई किसान की अपनी जमीन बचाने को लेकर है। अब नंदीग्राम की लड़ाई एक प्रतीकात्मक लड़ाई बन गई है। ये लड़ाई अब देश के हर उस किसान की है जो औधोगिक इकाई लगाने के लिए किसी भी कीमत पर अपनी जमीन नहीं देना चाहता। मेरे विचार में इस मामले पर एक कानून बनना चाहिऐ। आखिर एक किसान को अपने पुरखों कि जमीन को जबरदस्ती बेचने को मजबूर कैसे किया जा सकता है। अपनी जड़ों को छोड़कर वो कहाँ जायेगा। उसे इस बात का अधिकार होना चाहिऐ कि वो अपने पुरखों कि जमीन को बेचने से इनकार कर सके। इस लड़ाई में दूसरा पक्ष सरकारी मशीनरी है जिनका ये काम है कि वो किसी भी कीमत पर विकास का काम आगे बढाये। अब ये अलग मसला है की सरकारी मशीनरी किस पार्टी के हाथ में है।

Tuesday 11 December 2007

'भाजपा का आत्मविश्वास लौट रहा है'

गुजरात में प्रथम चरण के चुनाव से महज १८ घंटे पूर्व भाजपा के सारे दिग्गज मीडिया के सामने आये और एक सुर से प्रधानमंत्री पद के लिए अपने उम्मीदवार के लिए आडवाणी जी का नाम घोषित कर दिया। इसी के साथ अब ये मान लिया जाना चाहिऐ की भाजपा में वाजपेयी युग का अंत हो गया। अब कमान आडवाणी जी के हाथ में होगी. आडवाणी जी अब भाजपा का चेहरा होंगे। केन्द्र की सत्ता से बहा होने के तीन सालों भाजपा ने आडवाणी जी को अपना नेता घोषित कर साहस का परिचय दिया है। अब तक भाजपा उन्हें आगे करने में अपने सहयोगी दलों के कारण डर रही थी। जाहिर है भाजपा ने अब इस डर से खुद को मुक्त कर लिया है।

१८० सीटें लेकर भाजपा जब १९९८ में सत्ता में आई थी तब से लेकर सत्ता से बाहर आने तक भाजपा सहयोगी दलों के हाथों में खेलती रही। वाजपेयी जी को पीएम के रूप में देखने की चाहत रखने वाले लोगों को उनके लचीलेपन से काफी निराशा हुई थी। भाजपा ने सरकार चलाने के लिए मुख्य मसलों को भुला दिया। लेकिन आज आडवाणी की ताजपोशी भाजपा के लौटते आत्मविश्वास का संकेत है। वैसे भी गुजरात के चुनाव में भाजपा पूरे आत्मविश्वास से उतर रही है। उसे उम्मीद है की गुजरात में फिर से उसकी सरकार बनेगी। भाजपा को ही नहीं उसकी विचारधारा से ताल्लुक रखने वाले लोगों को भी उम्मीद है की अगले साल होने वाले लोक सभा चुनाव के पहले भाजपा फिर से उन मुद्दों को उठाने का साहस कर लेगी जिन्हें सत्ता के लिए उसने पिछली बार भुला दिया था। देखते हैं आडवाणी जी की अगुवाई में भाजपा भारत के बहुसंख्यक समुदाय के लिए आवाज बुलंद करने का कितना साहस बटोरे पाती है? ये जरूर होगा की सहयोगी दल फिर से रुकावट डालेंगे। लेकिन ऊससे क्या फर्क पड़ता है। आप आगे तो बढो बाकि लोग साथ होते जायेंगे।

Wednesday 5 December 2007

"इंटरनेशनल डॉग शो में ४२ लाख का कुत्ता"

एक कुत्ते कि कीमत ४२ लाख ! आपको शायद इसपर यकीन न हो लेकिन यही सच है। उत्तरांचल की राजधानी देहरादून के सर्द मौसम में दुनिया भर के कुत्तो को लेकर उनके मालिक(अभिभावक - कृपया कोई बुरा ना माने) पहुंचे। मौका था इंटरनेशनल डॉग शो का। बंगलोर से आये एक कुत्ते की कीमत ४२ लाख थी। और ना जाने कितने नए-नए नस्ल के कुत्ते भी यहाँ लाये गए थे। भैया हमारे लिए तो नयी बात थी। हम तो गाँव के रहने वाले हैं और हमे याद है बचपन में जो कुत्ते हमे पसंद आ जाते थे उन्हें स्चूल से लौटते वक्त हम अपने बसते में छुपा चुपके से उठा लाते थे। न कोई कीमत देना होता था और ना ही कोई दोग शो में जाना पड़ता था। और कुत्ते भी साहब बडे होने के बाद इतने बहादुर निकलते । थी किसी कि मजाल जो रात को हमारे घर की ओर कदम बढ़ा लें।

देहरादून में पौंचे कुत्ते एक से एक उन्नत नस्ल के। उनके साथ आये थे उनके नखरे उठाते आ रहे उनके अभिभावक भी मुझे इसके पहले जानकारी नहीं थी कि कोई इस तरह का आयोजन भी दुनिया में होता हैं। कहीं और होता है या नहीं लेकिन यहाँ अपने देश में इस तरह का ये मेरा पहला अनुभव था। मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि चलो अब तक कुत्तों को मालिकों के प्रति वफादारी के लिए जाना जाता था और अब आने वाली दुनिया में मालिकों को उनके कुत्तो के प्रति संजीदगी के लिए भी जाना जाएगा। दूसरी जिस बात पर मुझे ज्यादा ख़ुशी हुई की चालों इस तरह के आयोजन से कुत्तो का अंतरराष्ट्रीयकरण हो रहा है।

मुझे याद है वो कवी सम्मेलन । बात तब की है जब मैं बनारस में रहता था। बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी के लंका गेट पर हुए एक कवि सम्मेलन में एक युवा कवि ने सुनाया था "काश मैं किसी आमिर का कुत्ता होता" । उस बेचारे कवि कि व्यथा थी अमीरों के कुत्तों कि देखरेख कि व्यापक व्यवस्था को लेकर। बेचारे कि कविता में आमिर कुत्तो कि सम्पन्त्ता से जलन साफ दिख रही थी।

Sunday 2 December 2007

माउस नहीं हुआ जैसे अल्लादीन का चिराग हो गया!

रोज इस तरह की कोई न कोई नई खबर देखने को मिलती है- माउस दबाइए ट्यूटर पाईये। माउस दबाये अपने ग्रुप का ब्लड पाईये। अब आप का मनपसंद साथी मिलेगा बस माउस को क्लीक करिये । इस तरह कि खबरें रोज अखबारों में, वेबसाइट्स पर और सड़क किनारे लगे इस्तेहारों पर हर जगह मिल जायेंगे । अब आप ही बताईये क्या ये सारी सुविधाएं मुफ्त में मिलेगी। अब इनके दावे देखने से तो ऐसा लगता है कि जैसे ये अल्लादीन का चिराग हों । आपने मसला और जिन हाजिर होकर बोलेगा क्या हुक्म हैं मेरे आका. मैंने जैसे ही उससे कहा कि कोई परी कोई हर मेरे सामने पेश कर और वो बस पलक झपकते ही लाकर किसी नाज़नीं को मेरे सामने हाजिर कर देगा।

ऎसी ही एक वेबसाइट पर देखा मैंने कि नए दोस्त पैयी। मैंने भी सोचा यार चलो कुछ नए लोगों से दोस्ती कर ली जाये । आजकल के जमाने मैं अच्छे दोस्त मिलते भी कहाँ हैं। भैया इसी जोश में मैंने उस वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन के लिए लगी फॉर्म को भर दिया। बस क्या था मेरे सामने एक बधाई पत्र तुरंत आ गया। उसमे मुझे बधाई देते हुए कहा गया था कि २४ घंटे के बाद आप नये दोस्तों से सम्पर्क कर सकेंगे । अगले दिन मेरे उत्साह का पारा नही था। पट से फिर उसी साइट पर आ गया. लोगिन की और नए लोगों कि लंबी लिस्ट हाजीर । कोई बोम्बे से तो कोई कोलकाता से। कोई मोस्को से तो कोई न्यूयॉर्क से। मेरी ख़ुशी और धरकन एक साथ तेज हो रही थी। मैंने सोचा जब मौका मिला है तो पट से एक लड़की को पत्र लिख ही दूँ , लेकिन ये क्या, इससे पहले कि मैं कुछ लिख पाता सामने सुब्स्क्रिप्शन कि लिस्ट आ गयी । उसमे मेंबर शिप के लिए शुल्क कि कई श्रेणियां थी । सआरी किम्तें डॉलर में थी। अपन लोग दोस्ती पर रुपया तो खर्च कर सकते नहीं अब डॉलर कौन करे। सो कर दिए बाय। लोग कहते हैं ना कि खोजने से तो भगवान् भी मिल सकता है । भैया लेकिन दोस्त पाने के लिए खोजने के साथ - साथ डॉलर का होना भी उतना ही जरुरी हो जाता है। अब जाकर समझ में आया अब वक्त बदल गया है और इसी कारन आजकल लोगों को अच्छे दोस्त नहीं मिल पा रहे हैं।

गुजरात की बेजान पिच पर डटे धुरंधर!

गुजरात में चुनावी बिसात बिछ चुकी है, सारे धुरंधर अपने-अपने बल्ले और गेंद का जौहर दिखाने के लिए गुजराती पिच पर उतर चुके हैं। क्या भाजपा और क्या कांग्रेस सभी २०-२० स्टाइल में अपनी जीत कि उम्मीद लगाए हुए हैं। लेकिन कोई कुछ भी कहे भाजपा के मास्टर ब्लास्टर नरेन्द्र मोदी गुजरात के बेजान पिच पर फिर परचम लहराने कि स्थिति में लग रहे हैं। हालांकि कांग्रेस ने पूरा जोर लगा लिया है मोदी से असंतुष्ट लोगों को अपनी तरफ करने में लेकिन कई लोगों के जाने के बाद भी मोदी का दमख़म कम होता नहीं दिख रहा है।

बेजान पीच पर कांग्रेस ने पूरा प्रयास किया कि गेंद को मोदी के शरीर के सिद्ध में रखकर निशाना बनाया जाये और इसके लिए मोदी के गढ़ में दरार डालने कि कोशिस भी की गई । यहाँ तक कि जिस दंगे के लिए कांग्रेस मोदी को kos रही थी उसी मोदी सरकार के ग्रीह मंत्री को मोदी के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए तैयार दिख रही है। यहाँ बात वही हुई ना कि राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता, और राजनीति किसी सिद्धांत कि मोहताज नहीं होती, मौका पड़ने पर राजनितिक दल अछे-बुरे कि अपनी परिभाषा बदल सकते हैं। हालांकि आखिरी फैसला गुजरात कि जनता को ही करना है। और अब वक्त भी ज्यादा नहीं बचा है। देखते है कौन गुजरात सीरीज़ मैं चैम्पियन बनके उभरता है।

पिछली बार मोदी ने दो तिहाई सीटें जीती थी इस बार ये आंकड़ा कम जरूर होगा लेकिन लगता नहीं है कि मोदी कि सत्ता को कांग्रेस अभी उखाड़ पाने में सफल होगी। कारन वही है कि कांग्रेस ने अबतक अल्पसंख्यक तुस्तीकरण पर ज्यादा ध्यान दिया है इसके ठीक उलट मोदी ने बहुसंख्यक आबादी को रिझाने पर ध्यान दिया है। मोदी का ये नज़रिया लोकतांत्रिक व्यवस्था के मनमाफिक ही लगता है। आलोचना करने वाले चाहे जो भी कहें लेकिन लोकतंत्र वास्तव में बहुसंख्यक आबादी कि सत्ता ही होती है।

Monday 26 November 2007

कोई तो बताये तस्लीमा की गलती क्या है?

दो मामले आजकल मीडिया में खूब चर्चा का विषय बने हुए हैं। एक तसलीमा नसरीन और दूसरी सउदी अरब की वो लड़की जिसके साथ बलात्कार हुआ और अदालत ने ये कहते हुए उसे २०० कोड़े मारने कि सजा सुना दी कि उस समय वो कार में ऐसे आदमी के साथ बैठी थी जो उसका रिश्तेदार नहीं था। ये दोनो खबरें एक ही समाज से जुडी हुई है। बस फर्क ये है कि एक समाज के ऊपर एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का दबाव(?) है और दूसरा २१ वी सदी में भी बेधरक अपने मध्यकालीन कानून लागू कर रहा है.

पहले आते हैं तस्लीमा वाली खबर पर। तस्लीमा का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि उसकी लेखनी इस्लाम के लिए खतरनाक है। लज्जा नमक जिस किताब का जिक्र हो रहा है उसमे तस्लीमा ने इस्लामी समाज में परदे के नीचे दबा दी गयी बातों की तह उघारने का प्रयास किया गया है। अगर समाज में हो रही किसी गलत बात को कोई सामने ला रहा है तो वो गलत कहाँ से है। ये कोई नयी बात नहीं है जब भी समाज में व्याप्त किसी बुराई के खिलाफ कलम चली है तब उसे रोकने का प्रयास हुआ है। चाहे १६वि समाज का यूरोप रहा हो, या भारत का हिन्दू समाज ही क्यों ना रहा हो, सभी समाजो ने अपनी बुराइयों को चर्चा से बचाने का हमेशा प्रयास किया है। जो लोग तलिमा के किताब का विरोध कर रहें हैं वे लोग ही मकबूल फ़िदा हुसैन कि पेंटिंग जलाने वालों की आलोचना करते हैं। जबकि हुसैन कि पेंटिंग में बुराइयों को सामने लाने का कोई प्रयास न होकर ओछी बाते ज्यादा होती हैं। तस्लीमा का मामला भारत के बुद्धिजीवी तबके के लिए अब अस्तित्व कि लड़ाई है। अगर आज ये कट्टरपंथी जीतते हैं तो ये कल हर काम पर पाबन्दी के लिए यही तरीका अपनाएंगे । सभी धर्मों के प्रगतिवादी लोगों को आगे आकर इस मामले पर तस्लीमा का साथ देना चाहिए। कट्टरवाद किसी भी धर्मं में हो उसका विरोध होना चाहिऐ।

अब आते हैं दूसरी खबर पर। सउदी अरब की एक खबर आजकल पश्चिमी मीडिया में खूब छाई हुई है। बलात्कार की शिकार एक लड़की ko वहाँ कि अदालत ने 200 कोड़े मारने के आदेश दिए हैं। अब ज़रा आप भी सुनिए क्या कारण है इस आदेश का। लड़की अपने किसी साथी के साथ कार में कही जा रही थी, रास्ते में ७ लोगों ने कार रुकवाकर उसके साथ बलात्कार किया। अदालत ने बलात्कारियों के साथ-साथ लड़की को भी सजा सुना दी। अदालत का कहना था लड़की एक ऐसे आदमी के साथ कार में घूम रही थी जो उसका रिश्तेदार नहीं था। यही उसके सजा का कारण है।

Friday 23 November 2007

"'अब से ५ मिनट बाद होंगे कई धमाके'"

उत्तर प्रदेश के कई शहरों में बम धमाके हुए। इन्हें अंजाम देने वाले आतंकियों कि हिम्मत देखिए । २३ नवम्बर को कई न्यूज़ चैनलों को ईमेल मिले--- अब से ५ मिनट बाद उत्तर प्रदेश के कई शहरों में धमाके होंगे। ठीक सवा एक बजे वाराणसी, लखनऊ और फैजाबाद में कई जगह धमाके हुए। धमाके कोर्ट परिसर के बाहर हुए। इन तीनों अदालतों में आतंकवादियों के मामलों कि सुनवाई चल रही थी। १४ लोग मारे गए। सरकार ने अपना रूटीन पूरा किया- धमाकों की निंदा की, मुआवजे कि घोषणा की, जांच के आदेश दिए और तमाम शहरों में रेड अलर्ट जारी कर दिया। अब आगे क्या होगा?

पिछले सप्ताह लखनऊ में तीन आतंकी पकडे गए थे, उसके बाद भी इस हमले का कोई सुराग हमारी गुप्तचर एजेंसियों के हाथ नहीं लग सका। हालांकि इस तरह के हमलों पर लगाम लगा पाना किसी के लिए भी असंभव होगा। हालांकि हमलों में मारे गए लोगों के परिजनों को ये बात समझाया नहीं जा सकता। क्यूंकि उन लोगों ने बिना कारण के अपने लोगों को खोया है। हालांकि लोग अगर इसे किसी समुदाय विशेष से जोड़कर देखने लगें तो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित निर्दोष लोगों को होना पडेगा। और यही तो ये आतंकी चाहते हैं । लेकिन अब समय आ गया है कि इस मसले पर कुछ तो होना चाहिए। कोई तो कोई हल तो जरूर निकालना होगा। वरना लोग घर से बाहर निकलने में भी हजार बार सोचने लगेंगे। कि पता नहीं वो वापस भी लौटेंगे भी या नहीं.

क्यों कट्टरपंथियों के निशाने हैं तस्लीमा

२१ नवम्बर कि सुबह कोलकाता की सड़कों par पत्थरबाजी हो rahi थी। अल इंडिया मईनोरिटी फोरम ने ३ घंटे का बंद बुलाया था। अचानक कुछ लोगों ने पुलिस वालों पर बोतलों, पत्थरों और तलवारों से हमला कर दिया। ४० से ज्यादा लोग घायल हुए। कई इलाकों में कर्फू लगाना पडा। बंद करने वाले तस्लीमा नसरीन कि वीजा अवधी बढाये जाने, नंदीग्राम में मुसलामानों की हत्या और रिज्वानुर मामले में कोलकाता पुलिस कि भूमिका का विरोध कर रहे थे। जाहीर था कि बहुसंख्यक जनता भी सड़क पर उतरती, किसी भी समाज में कोई भी बहुसंख्यक समुदाय किसी कि गुंडागर्दी बर्दास्त नहीं कर सकता। लोग सड़कों पर उतरे और कोलकाता में दंगा-फसाद शुरू हो गया।

अब आते हैं तस्लीमा के मामले पर। भारत में निर्वासन में रह रहीं विवादास्पद बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को पश्चिम बंगाल से हटाकर राजस्थान ले जाया गया है। गुरूवार की सुबह केंद्र सरकार के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने कोलकाता में तस्लीमा नसरीन से मुलाक़ात की और उनसे कहा कि कोलकाता में हुई हिंसा के बाद सुरक्षा की दृष्टि से उनका पश्चिम बंगाल में रहना ठीक नहीं है।

वे पहले कोलकाता छोड़ने को तैयार नहीं थीं लेकिन बाद में जब सुरक्षा की चिंताओं के बारे में उन्हें अवगत कराया गया तो वे भारत में कहीं और जाने को तैयार हो वे जयपुर पहुँच चुकी हैं और उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त प्रबंध किए गए हैं, उन्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा दी जाएगी.
तस्लीमा नसरीन का वीज़ा अगले वर्ष मार्च महीने तक वैध है और वे तब तक भारत में रह सकती हैं लेकिन उसके बाद उनके वीज़ा का नवीनीकरण होगा या नहीं, इस पर प्रश्नचिन्ह बना हुआ है।

विवाद कोलकाता में स्थिति बुधवार को तब बिगड़नी शुरू हो गई थी जब तस्लीमा नसरीन की वीज़ा अवधि बढ़ाए जाने के विरोध में प्रदर्शनकारी उग्र हो गए।
कई सार्वजनिक वाहनों को आग लगा दी गई और पुलिस के साथ कुछ स्थानों पर झड़पें भी हुई।

स्थिति बिगड़ती देख राज्य सरकार को कोलकाता के संवेदनशील इलाक़ों में सेना तैनात करने का आदेश देना पड़ा। माइनॉरिटी फ़ोरम के लोग बांग्लादेश की लेखिका तस्लीमा नसरीन को भारत से तुरंत बाहर निकाले जाने की माँग कर रहे हैं।

लेफ्ट की सरकार ने तस्लीमा मामले पर विरोध को जिस तरह से तवज्जो दी है वही इस विवाद कि जड़ है।। तस्लीमा के लेखन से कट्टरपंथी लोगों को अपनी सच्चाई सामने आने कभी रहता है। इस कारन वे अबतक तस्लीमा कि लेखनी को इस्लामी समाज के लिए खतरा बताते आये हैं. अब जरुरी है कि भारत का बुद्धिजीवी तबका तस्लीमा के पक्ष में खुलकर सामने आये और तस्लीमा का यहाँ रहना सुनिश्चित कराये।

Wednesday 21 November 2007

देवेगौडा ने लोकतंत्र को उसकी औकात बताई है

देवेगौडा और कुमारस्वामी की जोड़ी ने कर्णाटक के पिच पर जमकर बल्लेबाजी कि है। इस जोड़ी ने लोकतंत्र के नाम पर लंबे-लंबे भाषण देने वाले लोगों को उनकी औकात बता दी है। बाप-बेटे कि इस जोड़ी ने लोकतंत्र को ठीक उसी तरह उसकी औकाद बता दी है जैसे धोनी और युवराज कि अगुवाई में भारत कि युवा टीम ने २०-२० क्रिकेट को उसकी औकाद बता दी थी। जेदिएस ने पहले कांग्रेस के साथ सरकार बनाई फिर भाजपा से सत्ता बाँट लिया। कहा पहले २० माह हम सरकार चलाएंगे फिर अगले २० माह आप चलाना । अपने तक तो ठीक लेकिन जब भाजपा कि बारी आई तो कहा नही हम एक सांप्रदायिक पार्टी को सत्ता नहीं सौप सकते।

राज्य में केन्द्र ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया। अचानक एक दिन कुमारस्वामी ने कहा कि हम भाजपा को बिना शर्त समर्थन देने जा रहे हैं। सब चौंके।। लगा कर्णाटक में लोकतंत्र कि जीत हो रही है। चिल-पो मचा इन लोगों ने राष्ट्रपति शासन हत्वा दिया। येदुरप्पा ने सत्ता संभाली। लेकिन सवाल उठा कि जेदिएस कि ओर से उपमुख्यमंत्री का पद कौन संभाले । सहमति नही बनी और येदुरप्पा ७ दिन में ही सत्ता से दूर हो गए। अब फिर दोनो पार्टियों ने एक दुसरे के खिलाफ तलवार निकल ली हैं। लेकिन मैं तो कहूँगा इस तमाशे को लगातार देखने वाले किसी गफलत में नहीं रहेंगे । चुनाव के पहले और बाद में कभी भी कोई भी पार्टी साथ आ सकती हैं और लोकतंत्र की ऐसी कि तैसी कर सकती है। आख़िर कर्णाटक में मुख्य खिलाडी पितामह देवेगौडा जी जो हैं। अपने बेटों के लिए तो वो कुछ भी कर सकते हैं, आख़िर वे अपने बेटों के बारे में नहीं सोचेंगे तो कौन सोचेंगे। वैसे ही देश में बेरोजगारी बहुत बढ़ गयी है।

क्या आप हिंदुत्व की नई कसौटी पर खरे उतरते हैं!

मुझे अपने हिन्दू होने पर गर्व है। मेरे विचार में ये अकेला धर्म है जो मुझे किसी काम के लिए रोकता नही। अगर कोई रोके भी तो ये मुझे ये कहने कि शक्ति देता है कि आप तो जाये भाड़ में। आप शायद इसे मेरा हिंदुत्व के प्रति लगाव कह सकते . लेकिन ब्रिटेन के एक विद्यालय द्वारा तय कि गई हिंदुत्व कि नई कसौटियों ने मेरे हिन्दू होने पर ही सवाल उठा दिया है। हालांकि उनके मानक उनके यह नामांकन के लिए तय किये गए हैं. लेकिन आख़िर में उनके मानक तो सारे हिन्दुओं पर लागू होते हैं. आप भी तो जाने हिन्दू होने के लिए उनके मानक क्या-क्या हैं.

अपने दाखिले के आवेदन प्रपत्र में हिंदुत्व की अनोखी परिभाषा देने वाले इस विद्यालय के अनुसार सिर्फ उन्हीं लोगों को हिंदू माना जाएगा जो हर दिन ईश्वर की पूजा करते है, मंदिर में धार्मिक कार्यो में शरीक होते है और मांसाहारी भोजन एवं धूम्रपान से दूर रहते है। लंदन के हैरो स्थित कृष्णा अवंती प्राथमिक विद्यालय ब्रिटेन का पहला हिंदू विद्यालय है जिसे सरकार की ओर से वित्तीय सहायता दी जाती है। हैरो ऐसा क्षेत्र है जहां ब्रिटेन की किसी भी अन्य काउंसिल की तुलना में सबसे अधिक हिंदू आबादी है। यहां कुल 40 हजार हिंदू आबादी बसती है।

सितंबर 2008 में छात्रों के पहले बैच के दाखिले के लिए आवेदन प्रपत्र में हिंदूत्व की एक नई परिभाषा दी गई है। विद्यालय प्रशासन के मुताबिक ऐसे लोगों को हिंदू कहलाने का अधिकार है जो हर दिन घर पर या मंदिर में ईश्वर की पूजा करते है। वे हिंदू ग्रंथों, विशेष तौर पर भगवद्गीता में बताए गए मार्गो का अनुसरण करते हों। हिंदू कहलाने के लिए यह भी आवश्यक है कि वे कम से कम हफ्ते में एक बार मंदिर के धार्मिक अनुष्ठानों में हिस्सा लेते हों। हिंदू कहलाने के लिए मांसाहारी भोजन, शराब, धूम्रपान से दूर रहना भी जरूरी है।

इस विद्यालय का प्रायोजक एक स्वतंत्र चैरिटी संस्थान आई-फाउंडेशन है। संस्थान के प्रवक्ता ने बताया कि ऐसा नहीं है कि जो लोग हिंदुत्व की इस परिभाषा पर खरे नहीं उतरते, उनके आवेदन पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। केवल 30 सीटे होने की वजह से निश्चित तौर पर हम उन लोगों को वरीयता देंगे जो इन कसौटियों पर खरे उतरते है। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व को परिभाषित करने के लिए इन मानदंडों को बनाना बिल्कुल सही है। ऐसा कर हम समझ सकते है कि कौन हिंदू धर्म को सही तरीके से अपना रहा है।

Saturday 17 November 2007

सेक्सी और कामुक एक चीज़ नहीं!

टीवी पर एक खबर चल रही थी । खबर थी कि बिपासा बासु को 2007 की सबसे सेक्सी एशियाई महिला घोषित किया गया है। यह घोषणा लंदन स्थित अखबार ' ईस्टर्न आई ' ने की है। मेरे सामने मेरे दो मित्र बैठे थे, पेशे से पत्रकार, दोनों देश कि एक प्रमुख टीवी न्यूज़ चैनल के लोग। पहले कि सीधी प्रतिक्रिया थी कि अब सबसे सेक्सी भी चुना जाने लगा है। मैंने कहा इसमे गलत क्या है, ये तो किसी के व्यक्तित्व कि तारीफ़ है। मेरे दुसरे मित्र ने मुझे सेक्सी का मतलब समझाया। उनका कहना था भी साहब आपको जानना चाहिए कि सेक्सी का मतलब कामुक होता है। भला इस जवाब का मेरे पास क्या जवाब हो सकता था, मैं कुछ समझा भी नही सकता था।

खैर मेरे विचार में सेक्सी का मतलब ऐसा नही है। मेरे लिए इस वर्ड का मतलब व्यक्तित्व के बोल्डनेस से है.
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' ईस्टर्न आई ' कि सूचि देखिए: इस सूची में बॉलिवुड की लोकप्रिय अभिनेत्री माधुरी दीक्षित दूसरे और प्रियंका चोपड़ा तीसरे स्थान पर हैं। अखबार द्वारा जारी 10 प्रमुख सेक्सी महिलाओं की सूची में बिपाशा बसु , माधुरी दीक्षित , प्रियंका चोपड़ा , एश्वर्य राय , लैला , शिल्पा शेट्टी , कैटरीना कैफ , करीना कपूर , लारा दत्ता और इमान अली शामिल हैं। अखबार द्वारा वर्ष 2007 की सेक्सी महिलाओं की सूची में ब्रिटेन में जन्मी एशियाई महिलाओं में लैला ( 2 5 ) , अमृता हूंजान (20), शोफी (33) , पूजा शाह (36) और कोनी हक (40) शामिल हैं। गौरतलब है कि यह लगातार तीसरा वर्ष है जब ' ईस्टर्न आई ' अखबार ने एशिया की 50 सेक्सी महिलाओं की सूची जारी की है। वर्ष 2005 में भी इस अखबार ने बिपाशा को ही सबसे सेक्सी एशियाई महिला के खिताब से नवाजा!.......

Wednesday 14 November 2007

अब... बुद्धदेब को कोई हिटलर क्यों नहीं कहता!

'जैसा किया वैसा ही पाया' नंदीग्राम में हो रही हिंसा पर पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेब साहब का यही ताजा बयान है। याद करिये गुजरात दंगे का वक्त जब मोदी ने यही कहा था, सारे देश के तथाकथित विद्वानों ने मोदी को हिटलर कहा । कहाँ है आज वो सारे दिग्गज, वी आज बुद्धदेब को हिटलर के खिताब से क्यों नहीं नवाजते।

अब पढिये बुद्धदेब साहब का बयान. पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने नंदीग्राम में सीपीएम कार्यकर्ताओं का बचाव करते हुए कहा है कि उन्होंने जो किया वह उन पर की गई कार्रवाई का जवाब था। कोलकाता में एक पत्रकारवार्ता में उन्होंने कहा कि नंदीग्राम में पहले तृणमूल कांग्रेस के हथियारबंद कार्यकर्ताओं ने सीपीएम कार्यकर्ताओं पर हमले किए थे और उन्होंने 'जैसा किया था वैसा ही पाया'।

मुख्यमंत्री ने उल्टा केन्द्र को ही दोषी ठहराते हुए कहा कि यदि केंद्र सरकार नंदीग्राम में पहले ही केंद्रीय बल भेज देती तो यह सब नहीं होता। बुद्धदेब भट्टाचार्य का कहना है कि उन्होंने केंद्र सरकार से 27 अक्तूबर को सीआरपीएफ़ भेजने की माँग की थी जबकि सरकार ने 12 नवंबर को केंद्रीय बल भेजा.
उन्होंने कहा, "यह मेरी विफलता नहीं है, अगर केंद्र सरकार समय पर जवान भेज देती तो हम इस स्थिति को टाल सकते थे.

Monday 12 November 2007

औरतों से ज्यादती में भारत है टॉप- १०!

भले ही हम कई साल महिला सशक्तिकरण के नाम पर मना ले, और mahilawon के kalyan के नाम पर roj नए sarkari karyakram देखते hon, लेकिन स्थिति सुधरने में अभी भी वक्त लगने वाला है। कुछ यही सामने आया है वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम कि 'गेप इंडेक्स रिपोर्ट' में। इस रिपोर्ट कि माने तो भारत आर्थिक मामलों में, महिलाओं के साथ सबसे ज्यादा भेदभाव करने वाले 10 मुल्कों में शामिल है। यही आर्थिक, राजनीतिक, शिक्षा और स्वास्थ्य में समानता के मामले में भारत 128 देशों में 114 वें नंबर पर है।

महिलाओं को आर्थिक मसलों में भागीदारी और मौके देने के मामले में तो स्थिति और भी खराब है। इसमें भारत १२२वे नंबर पर है। इस इंडेक्स में भारत से नीचे बहरीन, कैमरुन, इरान, ओमान, टर्की, सऊदी अरब, नेपाल, पाकिस्तान का नाम है। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका और फ्रांस भारत से बहुत बेहतर स्थिति में हैं। वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ५९.4 फीसदी महिला-पुरुष के बीच समानता है। जबकि आर्थिक मसलों पर भागीदारी और मौके देने के मामले में यह समानता घटकर ३९.8 फीसदी हो गई है। आर्थिक मामलों में इतने बुरे हालात के बावजूद राजनीतिक सशक्तीकरण के मामले में भारत 21 वें नंबर पर है। 106 महिलाएं संसद में हैं, 118 मंत्री पद पर हैं और कई राज्यों की प्रमुख महिलाएं हैं। आर्थिक समानता इंडेक्स निर्धारित करने के लिए चार पैमाने रखे गए। नौकरी में हिस्सेदारी, समान काम के लिए मिलने वाला वेतन, कानून बनाने में भागीदारी, उच्च अधिकारी, मैनेजर और तकनीकी कर्मचारी। समान काम के लिए समान वेतन देने के मामले में भारत की स्थिति बेहतर हैं। 128 देशों में भारत का नंबर 59 वां है। महिलाओं को आर्थिक हिस्सेदारी और मौके देने के मामले में मोजांबीक सबसे बेहतर स्थिति में है। यहां ७९.7 फीसदी जेंडर इक्वेलिटी है। इसके बाद फिलिपीन, घाना और तंजानिया का नंबर आता है।

नंदीग्राम के अखाड़े से!

इधर kaii दिनों से नंदीग्राम से लगातार खबरें आ रही हैं। खुद को आम आदमी का शुभचिंतक कहने वाले माकपा के लोग किसानों के खिलाफ लड़ रहे हैं। बड़ी-बड़ी हस्तियाँ उनकी में कूद पड़ी हैं। ममता बनर्जी, मेधा पाटकर, अपर्णा सेन, रितुपर्णो सेन, दबे जबान में कांग्रेस के लोग, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और ना जाने कौन-कौन। अब लेफ्ट के बाक़ी सहयोगी भी माकपा के खिलाफ बोलने लगे हैं। प्रधानमंत्री तक को कहना पडा है कि स्थिति चिंताजनक है।

राजनीति कि भाषा जो भी कहे , नंदीग्राम के किसानों के लिए ये अस्तित्व कि लड़ाई है। उसके लिए पिछले कुछ महीनों में उन्होने न जाने कितनी जाने गवाईं हैं। जाने अब भी जा रही है। कोर्ट तक को कहना पड़ा कि पानी सर के ऊपर जा रहा है। बंगाल में उन्ही वामदलों कि सरकार है, जिन्होनें गुजरात दंगों के खिलाफ जमकर बवाल काटा था। मोदी को हिटलर और ना जाने क्या-क्या कहा था। आज वामपंथी धरे के वो सारे बुध्धि भी चुप हैं जो गुजरात दंगों पर खुद आगे आकार बवाल कट रहे थे। कोर्ट और ना जाने कहाँ-कहाँ तक गए थे। आज उनको कोई मौत विचलित नहीं करती। क्युकी नंदीग्राम में बह रहे खून से उनकी राजनीति नहीं चमकती। यहाँ लड़ाई का न तो कोई जातिया आधार है, और ना ही सांप्रदायिक। यहाँ कि लड़ाई किसानों कि है। जो अपने अस्तित्व कि लडाई लड़ रहे हैं।

Saturday 10 November 2007

नंदीग्राम का भी अपना इतिहास होगा !

आने वाले समय में जब भारत का इतिहास लिखा जाएगा तब नंदीग्राम का भी एक पन्ना होगा। एक ऐसी जगह जगह लोग अपनी जमीन के लिए लड़ते रहे, लगातार लोगों ने संघर्ष किया। केवल सरकारी मशिनरी से नही बल्कि पार्टी के कार्यकार्ताओं से भी। ये लड़ाई भी कुछ दिनों कि नही बल्कि महीनों तक चली और अब भी चल रही है। यहाँ आकर सरकारी तंत्र फेल है, और वामपंथ का वो नारा भी कि लोगों कि भलाई उसे सत्ता से ज्यादा प्यारी है। नंदीग्राम में लड़ने अपनी जमीन के लिए लड़ने वाले कोई पूंजीवादी या जमींदार नहीं बल्कि आम किसान हैं, जिनकी राजनीति वाम दल करते आये हैं। आज यही किसान इन पार्टी के कार्यकार्ताओं से लड़ रहे हैं। यही वामपंथी दल के लोग पाकिस्तान में मार्शल ला लगाने का विरोध कर रहे हैं और बुश को भारत का इतिहास समझाने में लगे हुए हैं। लेकिन उन्हें अपने लोगों के खिलाफ लड़ाई कर रहे अपने कार्यकार्ताओं को समझाने का समय नहीं है।

कई महीने हो चुके हैं। केन्द्र में सत्ता बचाने के लिए कुछ भी करने वाली कांग्रेस कि सरकार (नारा- कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ) ने भी कुछ नही किया, और ना ही सत्ता कि दूसरी दावेदार भाजपा ने कुछ किया। किसी को किसानों कि लड़ाई से कुछ लेना-देना नही हैं। लेकिन नंदीग्राम के किसान अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। और आख़िर तक लडेंगे।.......वो अपना इतिहास खुद लिखेंगे, क्युकी यही लड़ाई उनके अस्तित्व का भविष्य तय करेगा । यहीं से उनका इतिहास लिखा जाएगा।

Friday 9 November 2007

आपको 'आरक्षित जरूरतमंद' क्यों नहीं दिखते प्रधानमंत्री जी!

प्रधानमंत्री ने सब्सिडी पर चिंता जताई

{योजना आयोग की बैठक में मनमोहन सिंह ने सब्सिडी पर चिंता जाहिर की, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पेट्रोलियम पदार्थो, कृषि और उर्वरकों पर बढ़ती सब्सिडी को लेकर चिंता व्यक्त की। योजना आयोग की पूर्ण बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा,'' हमें खाद्य, उर्वरक और अब पेट्रोलियम पदार्थो पर बढ़ते सब्सिडी के दबाव को कम करने की ज़रूरत है।'' उनका कहना था कि केवल इस साल इन तीनों मदों पर लगभग एक लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जाएगी।}

------ प्रधानमंत्री जी का दयां मैं इस बात पर दिलाना चाहूँगा कि देश का अरबो रुपया आरक्षण के नाम पर वो लोग चबा रहे हैं, जिन्हें उसकी जरूरत नही है। आरक्षण कि जिन्हें जरूरत है उन्हें तो उसका फैदा कम ही होता है, लेकिन जो लोग जागरूक है और अब मालदार भी वो उसका फैदा उठा रहे हैं, चलते हैं गाड़ियों में, और उनके बच्चे भी अलग से गाडिया लेकर चलते हैं, लेकिन उन्हें स्कूल, कालेज, परीक्षा , यहाँ तक कि पैदा होने के लिए भी पैसा मिल रहा है।

अब आपको मैं एक उदाहर्ण देकर बताना ठीक रहेगा। मेरा एक दोस्त है, उसके पिता जी आरक्षण कि सिढी चदकर आज बैंक में अच्छे पद पर हैं, वो लड़का सब तरह से संपन है। लेकिन रेलवे कि परीक्षा के लिए उसे न तो फॉर्म भरने का पैसा देना padtaa है, और naa ही देश में kahi jaane के लिए सीट आरक्षित कराने का पैसा। परीक्षा तो उससे निकलने वाला तो है नही, लेकिन उसका कहना है कि देश भर में फ्री में घूमने का इससे अच्छा मौका क्या हो सकता है। अब प्रधानमंत्री जी जरा सोचिये कि क्या ये फिजूलखर्ची नही है। क्या इसे रोकने पर आपको नही सोचना चाहिऐ। और किसानों कि सब्सिडी रोक कर भी आप क्या कर लेंगे । अगर आप रोकेंगे तो वो फर्जी कागज बनाकर गरीब बने रहेंगे, आख़िर आपके नेतावो और अधिकारियो के लिए भी तो यही फैदेमंद रहेगा।

Saturday 3 November 2007

ऑर्कुट अकाउंट के लिए हो सकता है जेल, हुआ भी है!

मैं आपको जो खबर बताने जा रहा हूँ वो हम सब इंटरनेट को चबाने वाले भाई लोगों के लिए बहुत अहम है। खबर ऑर्कुट कि है। इस खबर का मतलब हम सब ऐसे लोगों से है जो ऑर्कुट पर जाते है और बेबाक तरीके से लोगो और ग्रुप को जोड़ने का काम करना अपना हॉबी मानते हैं। मैं निचे जो ह-बहु देने जा रह हूँ, संजय लीला भंसाली या मधुर भंडारकर कि किसी आने वाली फिल्म कि स्क्रिप्ट नहीं बल्कि नवभारत तिमेस कि वेबसाइट पर लगी एक खबर है। किसी भी दिन पुलिस आपके घर पहुंच सकती है और आप भी कैलाश भी कि तरह कोई टोपी पहना दिए जाओगे ..........................................
खबर -----
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ऑर्कुट अकाउंट के लिए 50 दिन जेल में
31 अगस्त की अल सुबह लक्ष्मण कैलाश बेंगलुरु में अपने घर में गहरी नींद में थे। अचानक 8 पुलिसवाले उनके घर पहुंचे। पुणे से आए ये पुलिसवाले जोर-जोर से उनका दरवाजा खटखटाने लगे। कैलाश ने दरवाजा खोला तो इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी एक्ट उनके उनींदे से मुंह पर मार दिया गया।
पुलिसवालों ने उनसे कहा कि कपड़े पहनो, तुम्हें शिवाजी के अपमान के आरोप में हम पुणे ले जाएंगे। कैलाश ने कहा कि वह तो किसी शिवाजी को नहीं जानते।

पुलिस ने बताया कि बात छत्रपति शिवाजी की हो रही है और उनकी एक अपमानजनक तस्वीर ऑर्कुट पर अपलोड की गई है। उसी वेबसाइट का पीछा करते-करते वे कैलाश तक पहुंचे थे।
कैलाश की बात नहीं सुनी गई और उन्हें पुणे ले जाया गया। कैलाश को सलाखों के पीछे डाल दिया गया। बाद में उन्हें पता चला कि उन्हें पुणे में नवंबर 2006 में हुए दंगों के मामले में गिरफ्तार किया गया है।

तब कुछ राजनीतिक दलों ने साइबर कैफे बंद करवा दिए थे और उपद्रव मचाया था क्योंकि कथित रूप से शिवाजी के एक चित्र का मजाक उड़ाया गया था।

कुछ दिन बाद पुलिसवालों ने दावा किया कि उन्होंने असली अपराधियों को पकड़ लिया है। उसके तीन हफ्ते बाद कैलाश को रिहा किया गया। तब तक वह जेल में 50 दिन गुजार चुके थे। एचसीएल में काम करने वाले 26 साल के कैलाश को तब समझ में आया कि उनका कुसूर था ऑर्कुट में उनका अकाउंट।

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Friday 2 November 2007

अनंत सिंह- लालू राज से नीतिश राज का सफर

हाल के कुछ सालों में अनंत सिंह के बारे में बहुत कुछ देखा-सुना । यही कोई दो-तीन साल पहले ए-के ४७ लेकर नाचते टीवी चैनलों ने दिखाया था । तबसे अनंत सिंह का कद बढता गया है, बिहार में। सच में देखा जाये तो अनंत सिंह को बिहार के वर्तमान सरकार नीतिश कुमार का छोटा सरकार यूं ही नही कहा जाता । बिहार और देश कि राजनीति में जैसे-जैसे नीतिश का कद-बढता गया अनंत सिंह भी तेज़ी से बिहार कि राजनितिक पटल पर छाते गए। हमने जब पहली बार अनंत सिंह के बारे में सूना तो ज्यादा वक्त नही लगा समझने में कि किस प्रजाति कि हस्ती होंगे भाई साहब । बिहार कि उस पीढ़ी के लिए ये मुश्किल काम नही है, जो शहाबुद्दीन, आनंद मोहन और पप्पू यादव को देखते हुए बड़ा हुआ है।

अनंत सिंह ने मीडिया वालों को पित्वाया , इस पर कोई हैरानी नही हुई। कारन कि अनंत सिंह से जो इससे अच्छे व्यवहार कि उम्मीद करे वो पागल ही कहा जाएगा। लेकिन अपने लालू जी ने मौका नही गवान्या । कहने लगे नीतिश राज में कुशासन है। अब लालू जी ऐसा तो है नही कि आप के सारे लोग दूध के धुले हैं, अब अपने दोनो साले साहब लोगों को ही देख लीजिये। ये भी नही है कि अनंत सिंह नीतिश राज में ही आगे बढे हैं। उनका ज्यादा अपराध तो लालू राज में ही हुआ था । अब आप उस समय क्यों नही काबू किये। करते भी कैसे, पहले अपने लोगों को भी तो बंद करना पड़ता।

Tuesday 30 October 2007

ये वक्त किसी का नहीं होता भैया!

ये वक्त भी बड़ा अजीब चीज है भाई। कब किसे जमीन पर लाकर पटक दे और कब किसे कहाँ ले जाकर बैठा दे, कुछ भी गेस करना संभव नही हैं। ये समय की ही बात है कि अब कल तक कर्णाटक के मुख्यमंत्री रहे कुमारस्वामी जी को उपमुख्यमंत्री पद से संतोष करना पद रह हैं। वो तो वक्त बुरा हैं वर्ना वो कहाँ मानने वाले थे। आख़िर उनके पापा जी की चतुराई भी उनके काम नहीं आ सकी।

अब अपनी उमा भारती जी को देख लीजिये । जब भाजपा से गयी थी तब कह रहीं थी कि मैं ही भाजपा ह लेकिन अब जाकर उन्हें भी लग रह होगा कि भाई मैं तो कुछ हूँ ही नही , अपने नटवर सिंह जी को ही देख लीजिये । हर जगह सुइट पहने हुए नजर आ जाते थे, आजकल दिखाई ही नही दे रहे हैं। अब भैया सुपर पॉवर से टक्कर लोगे तो नपोगे हीं. सब वक्त का खेल है, अपने दीवार भैया को ही देख लीजिये अभी कुछ ही दिन पहले टीम के कप्तान थे, कप्तानी उन्होने ये कहते हुए छोड़ दी कि बल्लेबाजी पर ध्यान दूंगा लेकिन अब वक्त ऐसा आया कि टीम से ही उन्हें bahar kar दिया गया। अरे भाई niras क्यों होते हो apke समय में दादा को भी तो बाहर किया गया था। अब वक्त ही ऐसा है तो क्या कर सकते हैं भाई।

Monday 29 October 2007

क्यों मार रहें हैं लोग अपनों को!

आज मुझे कई खबरें ऐसी मिलती गयी जिसने मुझे परिवार और अपनेपन के बारे में कई सवाल दे दिए। भारत जैसे देश में इस तरह कि कई खबरें एक साथ आना बरी हैरान कर देने वाली रही।

सुबह टीवी खोलते ही मुम्बई से एक खबर आई कि भाई ने संपती के विवाद में बहन को ६ गोलियाँ मरी। (क्या इन दोनों के बिच कभी प्रेम नही रह होगा, फिर कैसे भाई ने बहन पर गोली चालला dii)

दूसरी खबर डेल्ही से थी, पत्नी ने पति का कत्ल कर दिया था।

तीसरी खबर फिर मुम्बैं से थी , बाप ने अपने दो बेटों कि हत्या कर खुदकुशी कर ली, वो अपनी पत्नी कि बेवफाई से परेशान था।

अगली खबर फरीदाबाद से थी, माँ ने बेटे की हत्या कर दी थी,


न जाने ऐसी कई खबरें देश भर में आज दिन भर होती रही होगी। सोचने वाली बात है ऐसा हो क्यों रहा है । क्या हम इतने लालची हो गए हैं कि अब रिश्तों कि क़द्र नही कर सकते, अगर ऐसा नही कर सकते तो फिर क्यों नही पश्चिमी देशों के लोगो की तरह रिश्तों के बारे में हम खुलकर अपने विचार क्यों नही बना पाते।

अब क्यों चिल्ला रहें है लालू जी!

लालू जी कि रैली थी आज पटना में । करीब एक लाख लोग जमा हो गए, पता नही क्यों हुए । लालू जी संख्नाद कर रहे थे। अपनी चेतावनी रैली के मंच से लालू जी कह रहे थे अब बिहार कि जनता जग गयी है, नीतिश सरकार के कुशासन की पोल खुलेगी। लालू जी ने कहा कि नीतिश सरकार के खिलाफ चार्जशीट बनाए हुए है, नीतिश काल में हजारों अपहरण और अपराध का हिसाब रखे हुए हैं। अब लालू जी आपको याद दिलाते चले कि आपकी सरकार को गए ज्यादा दिन नही हुए हैं, जब पुरा बिहार बदनाम था। अब कुछ सुधर रहा है, तो फिर आप चिल्लाने लगे, १५ साल श्शन किये आप काहे नही कुछ किये, नीतिश जी के दुसरे साल चिल-पों मचाये हुए हैं।

बेटवा का करेगा!
लालू जी अब इ बताइये कि पटना रैली में मंच पर आपके बेतवा को कोण बुलाया था। पहले तो बीबी को पॉलिटिक्स में लॉन्च किये, अब बेटवा सब को मंच से नमस्कार करवा रहे हैं। का इरादा है, puraa ले bitiyegaa का बिहार ko।

क्या सफल रहा रैली?
रैली में बडे शुशासन की बात कर रहे थे लालू जी, लेकिन देखा आपने लालू जी के जाते हीं उनकी भीड़ ने पूरे मैदान और मंच पर तबाही मचा दी। टीवी पर देख कर लग रह था कि रामजी की सेना लंका में तोड़-फोड़ कर रही है। अब आप उनलोगों को ई नहीं बताये थे का कि सब अपना ही माल है, लूट-पाट काहे का।

Tuesday 16 October 2007

नरेन्द्र मोदी का 'कल का भारत'!

गुजरात के चुनाव की तैयारी के मद्देनजर भाजपा ने नई दिल्ली में एक सीडी जारी की। नरेन्द्र मोदी को विकास पुरुष के तौर पर दिखाया गया। नाम था 'मोदी का कल का भारत'. लेकिन इस कल के भारत में वाजपेयी जी कहीँ नहीं थे। होते भी कैसे अगर सच कहे तो अपने शाशन के दौरान वाजपेयी जी ने जिन मसलों को भुला दिया शायद मोदी जी के भारत में उन्हें नहीं भूलेगी भाजपा। मसलन राम मंदिर, ३७० और समान नागरिक संहिता। इन्हीं को भुला देने के कारन वाजपेयी जी को अगले चुनाव में हिंदुस्तान की जनता ने भी भुला दिया था। मोदी जी शायद भारत कि जनता कि आशावों पर खरे उतरें । गुजरात में हिंदु सम्मान को स्थापित कर उन्होने इसका संकेत पहले ही दे दिया है।

भारत का हर वो नागरिक (बहुसंख्यक समाज) जो वाजपेयी जी से उम्मीद लगाए था, और धोखा खा गया, एक बार फिर मोदी जी से उम्मीद लगाए हुए है। उसे उम्मीद है कि एक दिन भारत में एक ऐसी सरकार आएगी जो हिंदुओं को भी देश में बिना डरे जीने का माहौल देगी। शायद ऐसे में लोग मोदी जी कि ओर देख रहे हैं।

Monday 15 October 2007

अमेरिका से पंगा लेने का मतलब...

कल ही आडवानी जी कह रहे थे कि मनमोहन जी सबसे कमजोर पीएम हैं। लेकिन अगले दिन मनमोहन जी ने अमेरिका से हो रहे परमाणु करार को रोकने का फैसला कर सबको हैरत में डाल दिया। सामने लोकसभा का चुनाव है, ऐसे में मनमोहन जी तो जनता को फिर से दुखी करना नही चाहते। वैसे ही बहुन्शंख्यक हिंदु जनता उनकी सर्कार के भगवान् राम को लेकर बयां से अभी तक दुखी है।

लेकिन भैया राम को दुखी करोगे तो एक बार चलेगा भी, लेकिन अमेरिका को दुःखी किया है, भुगतना तो पडेगा ही, कहीँ ना कहीँ तो सजा देगा ही, तैयार रहियेगा। अब अपने नटवर जी को याद करो , बहुत बोल रहे थे इराक वाले मामले पर, क्या हुआ, कहॉ के रह गए, अच्छे खासे नेता हुआ करते थे bechaare।

लेकिन कुछ भी कहिये मनमोहन जी बडे हिम्मत से ये फैसला लिया है। हम तो अब आडवानी जी कि बात पर कभी भी बिस्वास नही करेंगे । मनमोहन जी को कमजोर पीएम कह रहे थे।

Saturday 13 October 2007

रील और रियल लाइफ के हीरो! एंग्री यौंग मैन कौन?

११ अक्तूबर को एक साथ दो आयोजन थे। रील लाइफ के हीरो अमिताभ बच्चन का ६५वा जन्म्दीन्न और रियल लाइफ के हीरो और समाजवादी नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण की १०५वी । सारे टीवी चैनल दिनभर-अमिताभ को गाते रहे-दिखाते रहे, लेकिन जेपी को बहुत ही कम समय मिला, बस औपचारिकता भर।

अमिताभ के लिए बार-बार कहा गया- एंग्री यौंग मन । लेकिन सही कहा जाये तो इस नाम के हकदार जेपी थे। उन्होने ऎमर्जेंसी के खिलाफ पुरे देश के युवावो को खड़ा किया। समाजवादी राजनिती को पहचान दिलाई और सत्ता मोह से कभी बंधाते हुए नही दिखे। गाँधी के बाद भारत को वैसा बेटा नही मिला। लेकिन अपनी जनता(टीवी चंनेलो के लिए दर्शक) को नकली हीरो को पूजने की अदात है, और चैनल को यही बेचना है।

Wednesday 10 October 2007

महान चे ग्वेरा आज भी जिन्दा है।...

महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा की चालिस्वी पुन्यातिथी पर पुरी दुनिया याद कर रही है । मेरे लिए तो इस इन्सान का व्यक्तित्व दुनिया में सबसे ज्यादा प्रेरणादायक रही है । महज ३३ साल की उमर में ये इन्सान क्यूबा का उद्योग मंत्री बन चुका था , चाहता तो एक सम्पन्न जिन्दगी जीं सकता था। लेकिन इसने उसे ठुकरा कर जंगल में रहकर गरीबों के अधिकार की लड़ाई लड़ने का रास्ता चुना । बहुत ज्यादा नही जनता इस इन्सान के बारे में मैं लेकिन बहुत prayas karta huu कि इसकी सख्शियत को पहचानी जाये। इसने एक ऐसी लातिन अमेरिका बनैने का प्रयास किया जो आज हुगो चवेज के ब्राजील, फिदेल कास्त्रो के क्यूबा और लूला दी सिल्वा के वेनेजुएला के रुप में सामने आया है। इतना बड़ा अमेरिका है । जो पुरी दुनिया पर राज कर रहा है लेकिन वही बगल में ये सारे देश आज आज़ाद सोच रखते है ।

सब उस आज़ाद ख़्याल क्रान्ति के बेटे की देन्न है। सलाम तुजे और तेरे हिम्मत को।

Sunday 7 October 2007

कर्नाटक और पाकिस्तान का लोकतंत्र !

आज ही दो जगह से खबर आई । पाकिस्तान में जनरल परवेज मुशर्रफ़ ने फिर से राष्ट्रपति का चुनाव जीत लिया। और कर्णाटक में बीजेपी ने कुमारस्वामी सरकार से समर्थन वापस ले लिया है । दोनो जगह लोकतंत्र के अलग रुप दिखे। पाकिस्तान में जहाँ लोकतंत्र मजबूत हुआ वही हिंदुस्तान में(कर्णाटक में) जनता दल एस ने लोकतंत्र का बड़ा ही घिनौना चरित्र सामने रखा । साथ ही भारत के संविधान को एक करारा तमाचा भी मारा।

पाकिस्तान में लोकतंत्र जीता!

हम पाकिस्तान में लोकतंत्र कि खराब हालत पर बडे खुश होते हैं, लेकिन वह लोकतंत्र और लोक का ही दबाव है की आज मुशर्रफ़ फिर राष्ट्रपति तो बनने में सफल जरूर हुए लेकिन उसके पहले सेना प्रमुख कि गड्डी छोड़ने का फैसला करना पड़ा। कियानी को सेना प्रमुख नियुक्त करना पड़ा। लोकतंत्र की इसी aandhii में benjeer ने भी अपने लिए कही ना कही रास्ता बाना लिया है । और जल्द ही पाकिस्तान लौटे वाली हैं ।

कर्नाटक में हारा!

कई दिनों कि बात-चीत के बाद आखिरकार आज भाजपा ने कुमारस्वामी की सर्कार से समर्थन वापस ले लिया। कभी देश के प्रधानमंत्री रहे देवेगौडा ने बेटे कुमारस्वामी को सीएम बनवाने के लिए फिर वही खेल खेलना चाहा जो उन्होने २० माह पहले कॉंग्रेस की धर्म सिंह सरकार के साथ खेला था। आज उन्होने उस भाजपा हो भी गच्चा दे दिया जो उस समय उनकी khevanhaar बनी थी। कभी उत्तर प्रदेश में सत्ता के दिनों के बटवारे मे मायावती से धोखा खा चुकी भाजपा इस बार सतर्क थी । और साफ कहा की हम नही तो तुम भी नही । ना तुम्हारी सरकार रहेगी और ना मेरी ।


दोनो का अंतर

कर्णाटक की जनता के सामने साफ है की उनके नेता सत्ता का मजा लेने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कुमारस्वामी और उनके पापा जी आज तक जिस भाजपा के साथ सरकार में साथ चल रहे थे आज उसी के बारे में उनका कहना है कि वे सांप्रदायिक पार्टी को सत्ता नही सौप सकते । अच्छा है की पाकिस्तानी जनता अपनी मांगो के लिए सडकों पर उतरने लगी है । लग रहा है की कोई बड़ा बदलाव आएगा , और अगर सेना वहा मजबूत रहे तो ज्यादा बदलाव होगा । भारत में भी यही हाल रहा तो एक दिन ट्रस्ट हो जनता को सड़क पज उतरना होगा।

Saturday 6 October 2007

छुट्टी दिलाने वाले महात्मा जी !

अभी-अभी दो अकटूबर बिता है, क्या रौनक थी यार उस दिन। समाचार चैनल वाले गांधीजी का बखान कर रहे थे । फिल्म चैनल वाले गाँधी जी के ऊपर बनी फिल्मे दिखा रहे थे । नेता जी लोग भी सुबह से hii khaadi pehan कर chahak रहे थे । Delhi से लेकर sanyukta राष्ट्र तक mein गाँधी जी के vichaaron की baarh ला dii गयी। सारे नेता जी लोग जगह-जगह यात्राएँ निकाल रहे थे । बोले तो हर जगह गंधिगिरी छा गयी थी मामू।

मैंने भी अपने घर फ़ोन पर बात की । फ़ोन मेरे छोटे भई ने उठाई । बड़ा खुश लग रहा था , मैंने पूछा अरे भई बात क्या है , आज बडे खुश दिख रहे हो । बोला आज महात्मा जी का जन्मदिन है भैया । मैंने सोचा यार ८ साल के लड़के को महात्मा जी से क्या वास्ता । उसने कहा अरे आज छूट्टी है आज छूट्टी दिलाने वाले महात्मा जी का जन्मदिन है । मेरे एक मित्र भी बडे खुश दिख रहे थे, sarakari naukari mein hai मैंने पूछा भाई क्या बात है, बडे खुश दिख रहे हो । बोले आज गाँधी जी कि kripaa से छुट्टी पर hu।

Sunday 30 September 2007

लोकतंत्र समर्थकों को मारते ये ङ्रैकुला !

सुना था किसी द्रकुला नाम के पात्र के बारे में जो लोगो को जिन्दा जल्वान कर खुश होता था। ऐसे कई द्रकुला आजकल एशिया में पैदा हो गए है। वो लोकतंत्र की मांग करने वालों को मार रहे है. भारत के आस-पास के देशों में लोकतंत्र का हाल देखिए । पाकिस्तान, अफ़्गानिस्तान, म्यांमार, नेपाल, थाईलैंड, बंगलादेश! ये सारे भारत के पड़ोसी देश है और इन सभी देशों में लोकतंत्र के लिए लड़ाई चल रही है। कल ही खबर आयी थी कि म्यांमार में सैन्य सरकार ने विरोध दबाने के लिए गोलिया चलवाई , ९ लोग मारे गए । वहा के सारे विपक्षी नेता जेल में हैं । और अब बौध भिक्षु भी जेल में ठूंसे जा रहे हैं ।

पकिस्तान में सारे बारे नेता देश से बाहर भगा दिए गए है । और बंगलादेश में सारे बडे नेता जेल में बंद है । नेपाल में लड़ाई अभी भी नही थमी है । थैलंद के प्रधानमंत्री किसी और देश में छुपे हुए है । इराक और अफगानिस्तान में लड़ाई चल ही रही है । लोकतंत्र के नाम पर जारी लड़ाई का आलम ये है की हर आम आदमी नही जनता है कब उसके घर पर कही से कोई बम आकर गिरे और वो मारे जाये ।

सब क्रेडिट का खेल: रोजगार गारंटी , राम सेतु और २०-२० !

क्रेडिट कार्ड के ज़माने में हर आदमी के लिए जरूरी है कि वो अपने लिए कुछ-कुछ क्रेडिट बनाता रहे । बिना क्रेडिट के क्या रखा है जीने में । इस मामले मे अगर आम लोगो को कुछ सीखना है तो हमारे नेताओं से सीखें .

पहले बात राम की !
अब राम जी को भुला चुके उनके हिंदुत्ववादी भाइयो ने जब देखा की फिर राम जी दक्षिण भारत में अवतार लेने वाले है लग लिए अपनी क्रेडिट बनाने में । जगह-जगह पोस्टर जलने लगे और धरना देने लगे । साबका कुछ ना कुछ क्रेडिट बन्ने लगा और साथ ही अगले चुनाव के लिए नए पोस्टर बन्ने लगे । अब अपको बताते है की पोस्टर में कोण-कोण से लोग छपे । बीच में हाथ उठाये सम्भावीत उम्मीदवार , उसके ऊपर राम जी कि तस्वीर , एक तरफ पार्टी के वरिष्ठ नेताओ के फोटो ।

२०-२०
२०-२० कप जीत कर लौटी टीम(सच बोले तो कप, खिलारी तो बेचारे पीछे ही रह गए) के साथ फोटो खिच्वाने के लिए मुम्बई में लगे मेले को तो आप देख ही चुके है । कई नेता जी लोग अपना क्रेडिट बना गए ।

आख़िर में रोजगार गारंटी!

सरकार ने एक योजना बनाई , सभी ग्रामीण परिवारों को रोजगार की गारंटी देने की । पहले इसे १०० जिलों में लागू किया गया । एक दिन अचानक राजकुमार अपनी टोली के साथ पहुंच गए प्रधानमंत्री महोदय के पास और माँग की कि इसे देश के सभी जिलों में लागू किया जाये । उन्होने इसे मान लिया और कहा देश के सभी युवाओं को ऐसे ही अछे काम करने चाहिऐ । अब मैं ये पूछता हू कि अगर kisi आम yuva ने ये माँग की होती तो आप इसे इतनी आसानी से मानते और अगर मानते भी तो उसका क्रेडिट क्या उसे ही देते ।

सच कहे तो बात हर जगह क्रेडिट बटोरने की है । और वो क्रेडिट भी हर आम आदमी की किस्मत में कहॉ है ।

Saturday 29 September 2007

अब हैमरमैन के आतंक के साए में 'दिल्ली'

लो फिर ड़र गए दिल्ली वाले। '

हैमरमैन ने ली एक और की जान'

किसी अखबार ने यही लिखा था अपने पहले पेज पर । अब अन्दर की कहानी सुनिये । पुलिस का कहना था की एक युवती सोई हुई थी और कोई आदमी वहा आया और और उसके सर पर वार कर भाग गया । युवती की शादी पिछ्ले माह हुई थी और उसकी विदाई होने वाली थी । लोगो ने कहा ये उसी हैमरमैन का काम है जिसने अब तक दिल्ली में कई महिलाओ के सर पर हथ्हौरे से वार किया है। पुलिस इस कहानी को नही मान रही है और शक में पड़ोस के एक लड़के को गिरफ्तार किया है । अब अगर पुलिस लोगो और मीडिया कि खबर को मानकर जांच करने लगे तो ना तो हैमरमैन पकड़ा जाएगा और ना ही असली aaropii । पुलिस को लड़की के पास से ईट मिल है और पेपर वाले खबर दे रहे की हैमरमैन की करतूत । अरे यार डरे हुए दिल्ली वालों को और क्यों डरा रहे हू यार । अभी अभी तो बेचारे घर के बहार से पाच उन्गालियीओ की निशां मिटाया है इन्होने । सुना नही था आपने क्या जब घरो में में मांगने वालो के भेष में चुरैलें आ रही थी ।

कुछ साल पहले जब दिल्ली में नही रहता था तब कई दिनों तक दिल्ली की एक खबर छपती रही। पड़कर दर लगता था। लोहे के बन्दर की कहानी । जो लोगो पर हमले कर्ता था । उत्तर प्रदेश के कई जिलों मे मुह नोच्वा ने कई महिनो तक आतंक मचाये रखा था . पता नही ये सारे कहॉ से आते हैं।

Friday 28 September 2007

कप जीत कर लाओ, फिर कुछ मांगो

अभी हाल ही मे हमारे कापर मंत्री जी का बयाँ आया था विदर्व के किसानो को लेकर । उन्होने गुजरात के किअसनो कि प्रसंषा करते हुए कहा था की वे बडे मेहनती है। और विदर्व के किसान कामचोर। इसी कारन विदर्व के किसान आत्महत्या करते है। एक और बयाँ आया है कर्णाटक के मुख्यमंत्री जी का । हॉकी खिलारी जब नाराज हो भूख हरताल पर जाने लगे तो सी एम् साहब ने कहा की वर्ल्ड कप लाओ तो क्रिकेट खिलारिओं कि तरह इन्नाम बतेंगे । दोनो बयाँ एकदम बराबर लगते हैं।

किसानो की बात उठी है तो कहते चले कि ट्वेंटी-२० वर्ल्ड कप जीत कर लौटी टीम इंडिया के स्वागत के लिए मुम्बई में जो नेताओ का जो मंच सजा था । उस मंच पर सबसे आगे बी सी सी आई के अध्यक्ष और देश के कृषि मंत्री साहब सबसे आगे मंच पर विराजमान थे । अब कल को कही वो भी नही कह दे कि भाई किसान लोग सरकार से हमेशा कुछ ना कुछ मांगते रहते हो। कभी कोई वर्ल्ड कप जीत कर लाओ फिर सरकार से मदद मांगने आना । नेता जी को कप उठा कर फोटो खिचाने से फुर्सत मिलेगी तभी तो किसानो के बारे में सोचेंगे ना।

दे दनादन: लूट सको तो लूट लो

टीम इंडिया चैम्पियन होकर लौटी है , स्वागत के लिए पूरी मुम्बई सडकों पर उतर गयी । सबसे ज्यादा ख़ुशी तो हमारे नेताओ को थी । स्वागत करने के लिए उन्होने मंच पर सबसे आगे कि सीट कब्जा ली । मंच पर खिलाडी कम दिख रहे थे और नेता ज्यादा । हर तरफ नेता ही नेता दिख रहे थे । inaamon कि बरसात हो रही थी और साथ ही विश्वविजेता होने का शंखनाद भी। नेताओं की भिड़ में बस हमारे कप्तान को ही अगली पंक्ति में जगह मील पाई। अगर वो भी कप्तान नही होते तो फिर देखते कैसे आगे बैठता ।

अरे भाई कप लाए चलो अच्छा किया । लेकिन ऐसा थोड़े ही होता है कि उसे लेकर तुम्ही देश भर में घुमोगे . ला दिए तुम्हारा काम ख़त्म अब उसे नेता जी को दे दो . चुनाव प्रचार में काम आएगा . हां तुम्हे जब-जब मंच पर बुलाया जाये पहुच जान. टीम में रहना है की नही.

Tuesday 5 June 2007

'काश मैं किसी अमीर का कुत्ता ही होता'

कल बाज़ार में देखा एक युवती अपने कुत्ते को पकड़ कर उसे बाज़ार घुमा रही थी। अब पता नही मैं नही समझ पाया कि कहीँ वो कुत्ता वहाँ शॉपिंग के लिए तो नही आया है । अब भाई अमीर लोगो का कुत्ता है तो हो सकता है उसे भी अमीरो का शौक़ लग गया हो । या फिर परिवार के लोग अपने स्टैंडर्ड का बनाने के लिए उसे अपने-तौर तरीके सिखाने के लिए अपने साथ-लाते रहे हो। कभी किसी फिल्म में देखा था नाम तो याद नही है कि एक अमीर आदमी के कुते के रख-रखाव को देखकर उसका नौकर उस कुत्ते से जलकर कहता है कि काश मैं अपने मालिक का कुत्ता ही होता और इसके लिए वह भगवान को कोसता भी है। यहाँ मैंने इस फिल्मी कहानी को केवल इसलिये कहा कि मुंझे इन्सान और अमीरो के कुत्तो के बीच तुलना करनी थी ।

कल ही एक और घटना हुई । मैं अपने कॉलोनी में वापस आने के लिए सड़क पाद कर रहा था अचानक मेरी निगाह सड़क के उस पार से जाते हुए एक ताज़ा तरीन कुत्ते पर पड़ा । शक्ल से अमीर आदमी का कुत्ता लग रह था । उसके क़द-काठी को देखकर मन में दर भी लगा कि कही सड़क पार कर मुझे ही निशाना बनाने कि फिराक में तो नही है । लेकिन तभी लगा कि वो खुद एक तरफ सिमटा जा रह । दुसरी ओर देखा तो गली का एक छोटा सा मरिअल कुत्ता उसकी ओर बडे जा रह था । बड़ा दिलचस्प सीन था । करीब तीन फूट उचा, हथ्था -कट्ठा कुत्ता एक मरिअल कुत्ते को देखकर पीछे भागे जा रह था । और वो जाकर रुका वहा जहाँ दो लड़के खरे थे । उनके बिच जाकर वो खड़ा हो गया वो दोनो उसके मालिक भी नही थे फिर भी उन इंसानों के बीचउसे कम दर लग रह था ।

अब क्या कहे इंसानों ने उसे इतना प्यार दे दिया है कि वो अपनी बिरादरी को ही अपने दुश्मन समझने लगा। वैसे भी हमारे हाई -फाई जमात में में कुत्तो का क्रेज कुछ ज्यादा ही है विशेषकर महिलाओ में । कई बार तो कई पुरुषो तक को मैंने कहते सुना है कि भैया काश मैं इस घर का कुत्ता ही होता।

Thursday 31 May 2007

जाने क्या होगा रामा रे

अपने देश की हालत भी ऐसी ही हैं कुछ हुआ लोग सडको पर उतर आये, पुलिस से भिड़ गए और कर दिया आम लोगो कि जिंदगी का कबाडा । सड़क जाम, धरना-प्रदर्शन । अब जाये लोग ऑफिस ।

मैं सुबह दफ्तर के लिए निकला था और जैसे ही दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर मेरी बस्स पहुंची कि अचानक ट्राफिक जाम की खबर मिली । सामने उतर कर मैंने देखा की गाड़ियों कि लंबी लाइन हुई थी । पूछने पर पता चला कि गुर्जर समाज के लोग आरक्षण के लिए सड़क जाम किये हुए है। असल मामला राजस्थान से शुरू हुआ है जहाँ गुर्जर समाज के लोग अपने समुदाय को अनुसूचित जात में शामिल करने कि मांग कर रहे है । इस लडाई मे राजस्थान में कुल १६ लोग मारे गए ।

असल लडाई यहाँ गरीब तबको को आरक्षण के नाम पर मिल रही मलाई में अपना हिस्सा हथियाने को लेकर है । इस नाम पर इतनी सारी सुविधाये मिल रही है कि सभी अनुसूचित बन्ने की लडाई में लग गए है ।

पता नही अब तक तो ये लड़ाई पिछड़ी जातियों में ही है लेकिन मलाई खाने का ये चस्का कहीँ इसी तरह बढती गयी तो कल को सवर्ण जातियाँ भी खुद को आरक्षण के दायरे में लाने के लिए लडाई छेड़ देगी, शायद अब जाकर बाबा साहेब का सपना सच होता हुआ दिख रह है , सभी जातियाँ एक धरातल पर आने को तैयार दिखने लगी है । देखते है कैसी तस्वीर बनती है ....जाने क्या होगा रामा रे ....

Tuesday 29 May 2007

जॉगर्स पार्क से चीनी कम तक

भारतीय फिल्म जगत ने अपने दर्शकों को जोगेर्स पार्क फिल्म दिखायी थी जिसमे एक अवकाश प्राप्त जज को एक जवान मॉडल के प्रेम में फंसते दिखाया गया था । कई लोगों ने इस फिल्म को सराहा भी लेकिन ये जो सिलसिला शुरू हुआ वो अब चीनी कम तक पहुंच चुका है जिसमे ६४-३४ के प्रेम को दिखया गया है । मैंने फिल्म तो नही देखा है लेकिन प्रोमो में देखा है , ६४ साल के अपने नायक जी ३४ साल कि लडकी के बाप जिसकी उमर ५५-६० का आसपास दिख रही है से बाथ रूम में कहते है "मई आप कि लडकी से शादी करना चाहता हूँ " लडकी का बाप ऊपर देखता है और होश फाख्ता हो जाते है । ये तो रही रील लाइफ कि बाते , इसी बिच रियल लाइफ में भी कई ऐसे पत्र आये जो प्रेम के नाम पर मशहूर होते रहे ।

रियल लाइफ के प्रेम में सबसे मशहूर हुए पटना के प्रोफेसर मत्तूक नाथ चौधरी । वो इतने मशहूर हो गए कि जब भी प्रेम से संबध कोई भागा-भागी का मामला सामने आता है तो टीवी वाले तुरंत उनसे सम्पर्क करते है और विशेषज्ञ कमेंट लेने के लिए । ऐसे मामले क्या सामने आने लगे चैनल वालो ने शाम ५ बजे का टिम तो जैसे प्यार और भागा-भागी के किस्सो के लिए ही फ़िक्ष् कर डाला । दोनो पक्षो के लोगों को टीवी पर लाकर उनके इज्जात कि छीछालेदर करना शुरू कर दिया ।

इधर अपने फिल्मी निर्माताओं ने भी लीक से हटकर फिल्म बनाने के नाम पर जोगेर्स पार्क , उप्स , निशब्द और अब चीनी कम जैसी फ़िल्में आने लगी । इनमें दिखाया गया कि प्रेम के बिच कोई सीमा नही होती । सब के सब लीक से हटकर ।

Saturday 26 May 2007

'सामाजिक जवाबदेही का मतलब आरक्षण नहीं'

" प्रधानमंत्री कह रहे थे कि उद्योग जगत अपनी सामाजिक जवाबदेही निभाए, वो गरीब और पिछड़े तबको के लिए अपने यहाँ प्रतिनिधित्व बढाए "
जाहीर है प्रधानमंत्री का इशारा आरक्षण कि ओर ही था , जाहीर है इंडिया शाईनिंग की रीढ़ बने भारतीय उद्योग जगत को हत्थे से उखरना ही था । उसने साफ किया कि 'सामाजिक जवाबदेही का मतलब आरक्षण नहीं' ।

उद्योग जगत ने इसके लिए "अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए सकारात्मक पहल" नाम से योजना शुरू कि है जिसमे निजी छेत्र में पिछ्डो का प्रतिनिधित्व बढाने के उपाय लिए जायेंगे ।

मेरे एक मित्र आज बडे उदास थे पूछने पर बताया कि नाहक कि ये उद्योग जगत सरका को उकसा रही है , भैया ऐसा मत कहो नही तो हमारे आरक्षण मंत्री जी(कोटा मिनिस्टर) नाराज हो जायेंगे और कोई कानून बनाकर निजी छेत्र में भी आरक्षण लागू करवा देंगे ।

अब का है भैया कि वो तो होगा ही क्योकि वोट लेना है तो लोली पॉप तो थमाना ही होगा ।

Wednesday 23 May 2007

शनि तेरी महिमा अपरम्पार

शनि कि माया दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है , यहाँ के लोग जैसे-जैसे सम्पन्नता कि ओर बढते जा रहे है शनि और ग्रहो के प्रकोप से उनमे दर भी बढ़ता ही जा रहा है । जब मई पहली बार देल्ही आया था एक छात्र के रूप में कोई परीक्षा देने के लिए । अपने एक रिश्तेदार के याहा ठहरा हुआ था, एक दिन अचानक दरवाजे पर आकर किसी ने जोर-जोर से आवाज़ लगाना शुरू कर दिया, घर के लोग गए और सरसो का तेल और कुछ पैसे एक डब्बे में डाल आये , मेरे पूछने पर उनका जवाब था कि शनि भगवान् है और हर शनिवार को ये टेल लेने आते है । बाद में मई जब यहाँ दिल्ली में घूमने लगा और खुद रहने लगा तो मुझे असली सच्ची पता लगी । यहाँ के शनि भगवान् के नाम पर 'शनि भगवान् लोग' हर शनिवार को सभी घरो से तेल वसूलते है , सभी घरो पर ये नीबू और मिर्ची तन्गते जाते है ।

बहुत सारा तेल जमा कर ये लोग गरीब इलाको के दुकानों में जाकर शाम को ये तेल बेच आते है , और वहा कि गरीब जनता इसी खुले तेल को (जो कई घरो के तेल से मिलकर बाना होता है) खरीदती है ।

शनि कि माया से सब खुश , आमिर और खाते पिटे लोगो के घर में शनि के आने पर नीबू और मिर्ची रोक लगाएँगे और आम लोगो के घरो में शनि के नाम पर इकठ्ठा किया गया तेल पहुंच कर शनि को आने से रोकेगा ।

बडे बेआबरू होकर तेरे कुचे से हम निकले

" तू है तो सबकुछ है और तू नही तो कुछ भी नही" कि तर्ज़ पर आजकल हमारे युवा भाई लोग कुछ ज्यादा ही रोमांटिक होते जा रहे है । सड़क पर कोई लडकी क्या देखी हो गए लट्टू और जब होश आया तो घिरे पडे है भीड़ से ।

आज सुबह हम बस्स स्टैंड पर खडे थे और अचानक पीछे से आयी आवाज़ ने ध्यान खिंचा । एक पतला-दुबला नौजवान लोगो से घिरा था और लोग उसपर थप्पर बरसा रहे थे । हुआ ऐसा था एक २८-२९ वर्ष कि कन्या पुरे आधुनिक लिबास में बस के इंतज़ार में खडी थी इतने में एक साइकिल सवार भाई साहब आये और कह बैठे "माल लग रही हो" उन भाई साहब को इसका अंदाजा नही था कि वो कन्या उन्हें घेर लेगी , बगल से एक भाई साहब और जा रहे थे कुछ अजीब सा हेयर स्टाइल सिर पर लादे हुए । दौर परे और लपक लिया उस साइकिल सवार को । अब एक तरफ से भाई पद वो कन्या छाते से वार कर रही थी और दुसरी ओर से वो भाई साहब । उस बेचारे लड़के कि हालत तो बड़ी ही अजीब हो गयी थी । इश्क्गिरी के फिराक में भाई साहब सरेआम पिटे ।

Tuesday 22 May 2007

'मशीन पिर्ची नही देगी' हिंदी कि ऐसी-तैसी

सुबह-सुबह एटीएम मशीन तक पहुंचा । सामने एक पर्ची लगी थी जिसको मैं अक्षरश यहाँ लिख रहा हूँ ।
" एटीएम में पिन्ट आउट हो गया है मशीन पिर्ची नही देगी - थैंक यू "

आप सोच सकते है हमारी हिंदी भाषा कहा तक विकास कर चुकी है । वैसे इसका सारा श्रेय हमारी टीवी को है । अब तो इसने मुम्बईया हिंदी को हमारे युवा पीढी के जबान पर ला ही दिया है । कल बाज़ार में घूम रहा था अचानक तेज़ी से उभरी आवाज ने उधर खिंच लिया करीब १०-१२ साल का एक लड़का जोड़-जोड़ से आवाज दे रहा था " आंटी तू जाता किधर है, पुदीने वाला इधर है"

भैया अब हम का कहे अब आप ही लोग तय करो कि हम कैसी हिंदी सीखते जा रहे है । ये केवल पुदीने वाले या उस बैंक के एटीएम तक ही सीमित नही रह गया है बल्कि हमारी रोज कि जिंदगी में शामिल होता जा रहा है ।

Monday 21 May 2007

हर फिक्र को हंसी में ही मिला दिए

कमोबेश रोजाना ही ऐसा होता है कि जब मैं खबरों कि तलाश में में खबरिया चैनलों पर पहुँचता हु तो वहा कोई ना कोई हँसी का सुरमा ठ्हहाके लगाते और तालिया पिटवाते मिल जाता है । कही 'हसोगे तो फसोगे' तो कही कुछ और जहा देखो दिनभर लोग हसते रहते है । और सन्डे को तो अति ही हो जाती है ।

ऐसा हो भी तो क्यों नही , हमारे देश में कभी सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती थी राजनितिक खबरों को । आज राजनीति में जामे हमारे सूरमाओं ने ऐसी हालत कर रखी है की लोग राजनीती और नेताओ का नाम सुनते ही ऐसे मुँह बिच्काते है जैसे मिर्ची लग गयी हो ।

लोगो में तस्ते में आये इसी बदलाव का ही परिणाम है की गम्भीर राजनीतिक मस्लो पर लिखने वाले हमारे लेखक या तो बाज़ार से बहार होते जा रहे या फिर वो भी क्रिकेट और खाना जैसे मुद्दों पर लिखने लगे है । एक दिन बातचीत के दौरान एक विख्यात लेखक ने दबे शब्दो में ही सही लेकिन अपनी इस चिन्ता पत्रकारो कि टोली में रख ही दी ।

अब लोग क्या करे राजनीति और राजनेता से उनकी अब कोई उम्मीद तो रही नही सो हसी में ही अपने सारे गमो को मिटाने कि जुग्गत लगाने कि आदत डालने लगे है लोग ।

Saturday 19 May 2007

क्या होगा धन्नो का

कल टीवी पर देख रहा था अपनी धन्नो को किसी न्यूज़ चैनल पर । बहुत बदल गयी है अपनी धन्नो , थोड़ी दुबली-पतली और नखरीली लग रही थी । काफी बदल है अपनी, शोले में देखा था तब तो बड़ी गद्रिली सी थी कल तो वो बड़ी सलीम-ट्रिम दिख रही थी । अब अच्चा ही है अगले चुनाव में चम्बल वाले ले जायेंगे चुनाव प्रचार के लिए । अपनी सेलिना जेटली और करीना कपूर से कम भीड़ थोदेही खिंचेगी धन्नो ।

अब किसे याद थी धन्नो । हम तो बहिया भूल ही गए थे अपनी धन्नो को । वो तो अचानक टीवी वालों ने दिखा दिया वरना हमे कहा याद आता । अब अपने गब्बर सिंह जी तो रहे नही, अपने वीरू भई तो राजनेता हो लिए, अब उन्हें जेल जाने का कोई खतरा तो रहा नही , और अपने बडे भईया जे पाजी की दुकान भी अच्छी चल निकली है तो भैया रह गयी थी बस धन्नो । तो अब टीवी वालों ने उसे भी भले काम पर लगा ही दिया है । वरना अपनी मौसी तो इसी फिक्र में मे मरी जा रही थी कि क्या होगा उसकी धन्नो का..

Friday 18 May 2007

विवाह के नेक काम में लगे कबूतरबाज़

अपने सांसद कटारा भाई जबसे कबूतरबाजी में पकड़े गए है तभी से हमारे कबूतरबाज़ भाई लोगों से जुडे और देशो के कबूतरबाज़ भाई लोग पकड़े जाने लगे है । आज ही कोई खबर पढ़ रह था जिसका शीर्षक था 'कनाडा में विवाह घोटाले का खुलासा' । ये भाई लोग करते क्या थे कि पंजाब वगैरह में फर्जी शादियाँ कराकर यहाँ से लोगों को कनाडा पहुँचाने का काम करते थे । अब भाई अपने कटारा भई तो जेल में है अब कोण लोग पैदा हो गए जो उनकी सल्तनत में दखल देने कि फिराक में है ।

भईया अब ये तो अच्छी बात नही है, अपने कटारा भाई चाहे जेल में ही रहे अपने देश कि डॉन कि गड्डी पर तो वही बैठे रहेंगे । अगर कोई और ऐसा करने कि सोचेगा भी तो उसे सजा जरूर दी जायेगी.....

क्या होगा कलाम के रोड़ मैप का ?

कमोबेश अब ये माना जा रहा है की कलाम राष्ट्रपति पद दोबारा नही स्वीकार करेंगे ओर अब नए उम्मीदवार की तलाश में जोड़-तोड़ शुरू हो चुकी है । सभी पार्टियाँ अपनी-अपनी सम्भाव्नाये तलाशने मे लग गयी है ।

आज अचानक विचार आया कि देश को लेकर कलाम ने जो रोड़ मैप दिया था 'विसिओं २०२०' उसका क्या होगा । हमने कलाम को अपने देश के सिर्ष पर बैठाने के बाद कभी उनकी काबिलियत ओर मंशा पर सवाल उठाते हुए नही देखा ओर अगर एक-आध लोगो ने उठाएँ भी तो किसी ने उसपर विश्वास नही किया । अखीर ऐसी कोण सी बात है कि ये संत इन्सान दुबारा वो पद लेने को तैयार नही दिख रहा है । कही अपनी राजनीती में पैठ बना चुकी गंदगी को देखकर ही तो कलाम इससे दूर भागना तो नही चाह रहे है ।

अगला कोई भी बने वर्तमान में हमे इस पद के लिए और कोई योग्य उम्मीदवार नही दिख रहा है, अगर कलाम इस बार इनकार करते है तो ये साफ दिख रहा है कि सभी दल किसी ना किसी को ये पद तौफे के तौर पर बांटने कि तैयारी में है । और अगर ये भी ना हुआ तो कोई ना कोई कार्ड चलेगा । फीर ऐसा क्यों ना हो कि देश का ये सर्वोच्च पद इस महान वैज्ञानिक के पास ही रहे ।

Tuesday 15 May 2007

'एक दर्ज़न नही तीन दर्ज़न मामलें है भाई'

मायावती उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री पद कि शपथ ले रही थी और शिन्घ्नाद कर रही थी उत्तर प्रदेश में जंगल राज ख़त्म करने का । करती भी क्यों नही पुरी बहुमत में जो आयी थी । अगले ही दिन कोई टीवी चैनल उनके मंत्रिमंडल में शामिल दागदार लोगो कि फेहरिस्त दिखा रह था इसी में एक मंत्री जी शामिल थे बादशाह सिंह नाम के । इनसे जब मीडिया वाले बात करने तो किसी मीडिया वाले ने उन्हें याद दिल्लायी कि आप पर तो एक दर्जन मामले दर्ज़ है उहोने तपाक से जवाब दिया ''एक नही तीन दर्ज़ां भाई'' ।

अपनी सफाई में वे यहाँ तक कह बैठे कि कभी-कभी सत्ता के दलालो को सबक सिखाने के लिए हमे कानून का उलंघन करना पड़ता है और ये सारे मामले इसी प्रकार के है ।

अब आप ही अंदाज लगा सकते है उत्तर प्रदेश के जंगल राज का और उसे मिटाने के नाम पर आयी माया राज का । अब भाई क्या होगा उत्तर प्रदेश का ये तो खुदा ही जाने जहा हर चेहरा हीं दागदार है ।

Sunday 13 May 2007

माया के आते ही मीडिया के सुर भी बदले

उत्तर प्रदेश में मायावती चौथी बार मुख्यमंत्री बन गयी है और एक बार फिर वहा के अपराधियों में हरकंप मच गया है । अपने उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का दावा करने वाले हमारे नेता जी कि टोली तो जैसे गायाब ही हो गयी है । जब मायावती कि ताजपोशी हो रही थी हमारे नेताजी को छोड़कर उस टोली का कोई भी नेता हाजीर नही था । अपनी मीडिया वालो कि भाषा भी बिल्कुल बदली हुई दिख रही है । चुनंव पूर्व तक मायावती कि चर्चा करने से भी कतराने वाली हमारी ये मीडिया अब माया के मायाजाल मे उलझी दिख रही है । उनके जन्म से लेकर पुरी उनकी जीवनी तलाशने में हमारे पत्रकार भई लोग मशगूल है ।

उत्तर प्रदेश की शान में हमेशा कशीदे गढने वाले हमारे बडे भईया और छोटे भईया भी एकदम से गयाब दिख रहे है । चलिये बडे भईया तो ठहरे अभिनेता लेकिन अपने वो छोटे भईया तो जैसे दूज के चांद ही हो गए है । मतों कि गिनती के एक दिन पहले दिखे थे उसके बाद तो जैसे रिजल्ट आने का समय आया मीडिया वाले दिनभर उन्हें खोजते रहे लेकिन अपने भाई साहब तो जैसे अबतक कही दिखी ही नही दे रहे है ।

उधर नेताजी के सारे के सारे मंत्री जी लोग भी अपने सारे कागजात ग़ायब कराने में लग गए है । अब भाई जब सत्ता हाथ से चली ही गयी है तो उसके कुछ सबूत पीछे छोड़ने कि कोई गलती कैसे कर सकता है ।

Saturday 12 May 2007

ग़दर यात्रा और ग़दर एक साथ

१८५७ कि ग़दर के १५० वी वर्षगांठ मनाई जा rahi है पूरा देश और हमारी सरकार भी इसके जश्न मे डूबी हुई है । टीवी पर ये खबर बार-बार दिखायी जा रही थी ऐसे मे जब चैनल बदला तो झारखण्ड कि राजधानी रांची कि कोई खबर आ रही थी, रिलायंस फ्रेश के किसी स्टोर पर वहा के सब्जी व्यापारियों कि हमले की खबर थी । मैंने चैनल बदल कर फिर पिछली खबर देखी ओर फिर मैं इन दोनो खबरो मे संबंध तलाशने लगा । एक तरफ भारे पर लाए गए लोग अतीत के अपने ग़दर को सम्मान देने के लिए घंटो पैदल मार्च पर थे, हालांकि रस्ते मे उन्हें खाने पिने कि तकलीफ हुई ओर वी तोड़-फ़ॉर पर आमादा हो गए थे, और दुसरी तरफ ऐसे सब्जी बेचने वाले कारोबारी थे जो रांची जैसे छोटे से शहर में सब्जी बेचकर अपने परिवार का पेट पाल रहे थे ओर आज रालिंस जैसी बड़ी कंपनी के जाने से उन्हें अपना रोजगार छीनता हुआ दिखायी दे रहा था । इस कारन वी ग़दर पर आमादा हो गए है ।

जब इसपर चर्चा चल रही थी तो मेरे एक मित्र ने इसका प्रतिवाद किया ओर कहा कि रिलायंस के वह आने से किसानो को उनकी उत्पाद कि अच्छी कीमत मिलने लगेगी तो इसमे क्या बुराई है । भाई मेरे किसी जगह पर अगर बहार के लोग जाकर वह कि व्यवस्था में बदलाव करने लगते है तो वहा कि जनता वही करेगी जो भारत कि जनता ने अंग्रेजो के खिलाफ किया था । केवल प्रतीकात्मक ग़दर मनाकर किसी का भला नही होने वाला है । जब लोगो के अपने अस्तित्त्व पर खतरा आयेगा तो वो तो ग़दर करेंगे ही , ये तो अपने देश का इतिहास रहा है ।

'कहो बडे भईया कहा हो'

जब से उत्तर प्रदेश चुनावो के रिजल्ट आये है तभी से हमेशा टेलीविजन के परदे पर छाये रहने वाले अपने छोटे भईया आजकल गायब है और ना ही अपने बडे भईया अब वो दम और जुर्म वाले एड लेकर आ रहे है । हमारे दर्शको को भी मज़ा नही आ रहा है पहले लालू जी लोगो को हंसाने का काम करते थे बाद में अपने छोटे भईया ने ये जिम्मेदारी संभाल ली । चुनाव के पहले तो वो पूतना ओर क्या-क्या नाम जडते रहे लेकिन जैसे ही जीं निकला कि भाई लोगो कि सिट्टी-पित्ती गुम । भाई लोग अब उत्तर प्रदेश से बाहर कहीँ ठौर तलाशने चल पडे । ऐसे भी फिल्म नगरी मुम्बई में बडे भईया के पास कई आलिशान बंगले है ही जब तक संकट रहेगा बडे भैया के यहा ही रह लेंगे । उन्हें क्या पडी है अपने वोटरों कि । पहले अपनी जान तो बचाए । कहते भी है की ' जान बची तो लाखों पायें' ।

पिछले तीन सालों में जिस तरह से आपने उत्तर प्रदेश के विकास में योगदान दिया था तो ये दिन तो आना ही था अब कराओ बडे भईया से अपने पक्ष में प्रचार । या फिर ले आओ हसीं फिल्मी हेरोइनो को अपने प्रचार मे । वैसे भी पुरे देश ने देखा था आख़िरी चरण के चुनाव प्रचार के लिए आप लखनऊ कि रैली में कमसीन बार बालाओं को ।। अब भैया आज का वोटर तो बस आप लोगो कि कमजोर नस पकड़ बैठा है । उसे तो पता है कि आप उसे चुनाव के दिन तक ही शराब पिला सकते है , बार बालाओं के नाच दिखा सकते है । लेकिन यहीं खा ना गच्चा , जनता ने ऐसा दाव खेला कि सब भई लोग चारो खाने चीत । अपने धोबिया पछार वाले नेता भी नही समझ पाये । ये तो बिल्कुल अपने अटल जी वाली 'फील गूड ' वाली कहानी ही दुबारा हो गयी ।

'ना माया मिला ना राम'

उत्तर प्रदेश चुनावो के रिजल्ट आ गए है । बसपा के कार्यकर्ता मायावती कि ताजपोशी कि तैयारियों मे लगे है । आम जनता भी इस बार काफी खुश दिख रही है, आम लोगो मे जो मायावती के विरोधी है वो भी एक बार कह देते है कि चलो इस बार देख लेते है कही प्रदेश कि तस्वीर मे कोई तब्दीली आ ही जाये । ये उस जनता के विचार है जो बदते अपराध और अराजकता से ट्रस्ट आ चुकी थी । देखते है क्या होता है अपने उत्तर प्रदेश का ।

सबसे हास्यास्पद स्थिति है भाजपा कि । राम मंदीर के नाम पर वोट लेटी आ रही भाजपा का साथ इस बार सवर्णों नेक्या छोड़ा पर्त्य हो गयी चारो खाने चीत । आब राम को भूलोगे भैया तो ये तो होगा ही । इस बार भाजपा ने दो नावो कि सवारी करने कि सोच रखी थी कि सीडी वगैरह बाँट कर कुछ १०० के आस-पास सिट लेकर फिर करेंगे मायावती के साथ सौदा । लेकिन भैया ये है उत्तर प्रदेश कि जनता । इसने सिखा दिया ना सबक । कब तक उल्लू बनाओगे भाई, अब हाथ मलने से क्या होने वाला है । इसी दो नावो कि सवारी मे आप के हाथ मे अब ना माया रही ओर ना ही अब अपके राम नाम के नारे पर किसी को विश्वास होगा ।

Friday 11 May 2007

क्रांति कि राह मे नए क्रांतिकारी...

एक खबर पढ़ रहा था जो १८५७ कि क्रान्ति से जुडी हुई थी। देश में आजकल १८५७ कि क्रान्ति की १५०वी वर्षगांठ मनाई जा रही है । देश भर से लोग जुटे हुए है आजकल उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर से दिल्ली के लाल किले तक पैदल मार्च का आयोजन किया गया है । यही वो जगह थी जहाँ से विद्रोही सैनिक पैदल मार्च कर दिल्ली पहुंचे थे और देल्ही के गड्डी पर बहादुर शाह जफर को बादशाह घोषित कर दिया था । इन्ही के सम्मान मे ये यात्रा हमारे कुछ स्वयम सेवी संगठनो ने आयोजित कि थी ।

अब आते है असल मसले पर । मेरठ से चली यात्रा में पूरे देश के नौजवानों के शामिल होने के दावे किये जा रहे थे । तभी खबर आयी कि यात्रा मे शामिल कुछ नौजवान इसलिये तोड़-फ़ॉर पर उतारू हो गए कि उनके खाने-पिने के लिए अच्छे प्रबंध नही किये गए थे । अब ये सोचने वाली बात है कि क्या ये युवक क्रांतिकारियों के सम्मान के लिए यात्रा में भाग लेने आये थे या इन्हें लाया गया था । ये भी सुनाने में आयी कि पैसे देकर इन्हें लाया गया । मई सवाल पूछना चाहूँगा उन अयोज्को से जो इस तरह से क्रान्ति के नाम पर अपनी दुकान चमकाना ओर इनसब के नाम पर आने वाले सरकारी पैसों कि बंदरबांट मे लगे है कि कहीँ वो क्रान्ति शब्द का मजाक तो नहीं उड़ा रहे है ।

अगर ये बात सही है कि हमारे नौजवान पैसे लेकर क्रान्ति यात्रा मे भाग लेने आये थे तो ये हमारे उन क्रांतिकारी भाइयो का भी अपमान है । हम नही जाते किसी यात्रा को, हम नही दिखावा करते किसी के सम्मान का लेकिन अगर उन्ही क्रांतिकारियों का मजाक उदय जाये ये हमे बर्दास्त नहीं। अखिर हम उसी हवा में सांस ले रहे है जहा स्वतन्त्रता इन्ही क्रांतिकारियों के बलिदान से आयी थी ।

उत्तर प्रदेश का ताज फिर माया के हाथ


उत्तर प्रदेश के मतदाताओ ने सभी समीकरण ओर एग्जिट पोल को मात देते हुए बसपा प्रमुख मायावती को ताज सौप दिया । बाबरी विध्वंस के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि देश के इस सबसे बडे (राजनितिक लिहाज़ से) राज्य मे किसी एक दल कि सर्कार बनने जा रही है । इससे पहले कल्यान सिंह कि सरकार बनी थी ओर आज भी लोग उस सरकार के काम को सराहते है । आज जब बसपा सुप्रीमो मायावती फिर राज्य कि गड्डी सँभालने जा रही है एक चीज साफ है कि राज्य कि जनता गठबंधन सरकारो ओर उनमे शामिल पार्टियों ओर उनके नेताओ के दबाव के आगे बाधित हो रहे विकास के काम से तंग आ चुकी है । इस बार जनता ने स्पष्ट बहुमत दिया है और साथ ही कई बडे नेताओ को विधान सभा जाने से भी रोक दिया है । जहीर है जनता ने ये संदेश दिया है कि जो काम नही करेगा उसे विधान सभा जाने का कोई हक नही ।

वैसे मायावती के लिए भी चुनौती कम नही , सरकार में आने के बाद उनके लिए सबसे बड़ा काम होगा मंत्रिमंडल मे सभी जातियों ओर धर्मो के लोगो मे संतुलन बनाना ओर साथ ही लंबे समय तक उन्हें अपने साथ बांधकर रखना । अगर पिछली बार कि ही तरह उन्होने डंडे के जोर पर शासन करने के प्रयास किया तो आगे कि राह बहुत ही मुश्किल होगी । ओर अगर मायावती ने पिछली आदते भुलाकर उप के लिए कुछ काम कर दिया तो राज्य के इतीहास मे नाम दर्ज हो जाएगा । इस सरकार से सबसे बड़ी उम्मीद होगी अपराधीकरण पर लगाम लगाने की । जनता इससे त्रस्त आ चुकी है और अब मुक्ति चाहती है ।।

Thursday 10 May 2007

कबूतारबाजों के देश में ।

चंद्रकांता धारावाहीक में हमेशा देखते थे कबूतर को प्यार के संदेश देते हुए । कबूतर हमेशा ही राजकुमारियों ओर राज्कुमारो के प्रेमपत्र पहुंचाते रहे । इसी बीच कब ये कबूतर अपने साथ इंसानों को जोड़ लिए ये पता ही नही चला . अचानक एक दिन नींद खुली ओर जब तव को ओं किया तो पुरा हंगामा मचा था . कबूतरों से जुडी कोई खबर लगातार फ्लश ओर न्यूज़ मे चल रही थी ।

बार-बार एक शब्द उपयोग हो रहा था कबूतरबाज । दिमाग मे ये बात फीट नही हो पा रही थी कि आख़िर ये कबूतरों कि कौन सी प्रजाति है । ध्यान से देखने पर पता लगा कि कोई अपने नेता जी है । किसी और कि बीवी ओर बच्चे को अपना बताकर विदेश छोड़ने जा रहे थे । भाई ये हुई ना बात कबूतर तो सिर्फ प्यार का संदेश पहुचने का काम करते थे आप तो उनसे भी आगे निकल पडे । आप तो लोगो को उनके प्यार तक पहुचाने के लिए सात समुन्दर पार तक छोड़ने जा रहे हो । और यही नही ये तो आपका धंधा भी बन चला है । भईया ये तो आपका मिशन है । अब ये तो आपकी बद्दप्पन है वर्ना समाजसेवा कर पुलिस के बहुपाश मे बंधने का जोखिम कौन लेता है । ये समाजसेवा तो सब करते है लेकिन पकड़े जाने वाले तो बस्स एक आप हुए और एक अपने वो बल्ले-बल्ले संगीतकार दलेर मेहंदी साहब । वो तो आप लोग पकड़े गए नही तो आप लोग कहॉ सामने आते है । आप तो बस 'नेकी कर और दरिया मे डाल' वाली निति पर काम करते है ।

हमारी तो दुआ है आप लोग (कबूतारबाज़ लोग) यूहीं समाजसेवा करते रहे । आख़िर आप ही लोग तो अब कबूतरों को टक्कर देने कि स्थिति मे है । यूं भी वो तो सिर्फ ख़त पहुँचा सकते थे अप्प तो ख़त लिखने वालों को भी पहुचने कि छमता रखते हो ।..बल्ले-बल्ले..

Tuesday 8 May 2007

क्या विधायक जी बेटिकट ही जियेंगे

कल शाम टीवी पर एक खबर देख रहा था । पटना से कोई स्टोरी थी कोई सत्तारुद दल के विधायक जी थे गाड़ी पार्क करने के लिए पार्किंग वाले ने उनसे ५ रूपये मँगाने कि गलती कर दी थी । फिर क्या था विधायक जी और उनके भाई लोग पिल पडे और कर दी उनलोगों कि धुनाई । उनके माफ़ी मँगाने पर भी कि हमने आपको पहचाना नही, वे कहॉ मानने वाले थे । विधायक जी का कहना था कि पटना मे ऐसा कौन है जो हमे नही पहचानता ? अरे विधायक जी कौन नही पहचानेगा आप लोगो को भाई आप ही लोग तो जनता के मई-बाप हो ।

आब हमारी व्यवस्था ही ऐसी है कि हमारे नेता लोग (समाज को लीड करने वाले नही, दादागीरी वाले नेता लोग) कानून से भी ऊपर है । लेकिन आम आदामी को भी तो पता होना ही चाहिए ना की नेता लोग पार्किंग करने जाये, सिनेमा हाल मे जाये या फिर शराब कि दुकान पर जाये तो उनसे कोई किसी भी तरह के शुल्क कि माँग नही करेगा । अब भाई ये तो सरकार को एक आदेश जारी कर पब्लिक को बताना पडेगा । नहीं तो पार्किंग वाले कि तरह ही लोग गलतिया करते रहेंगे । अब उस पार्किंग वाले कि क्या गलती है कि वो बेचारा ये नही जानता था कि विधयाक जी के पास उसे देने के लिए ५ रूपये भी नही थे ।... तभी टीवी पर दुसरी खबर पर नजर गयी कोई एंकर कह जुए था कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है । अब भईया वो तो होना ही था जब हमारे देश में ऐसे विचार वाले नेता जी लोग है तो अपना लोकतंत्र सबसे बड़ा तो होगा ही ना ।

Monday 7 May 2007

देखिए घरेलु झगड़े टीवी पर

कल शाम ऑफिस में अचानक टीवी की ओर निगाह गयी । सारे लोग काम छोड़कर टीवी पर जमे हुए थे । कुछ देर बाद जब मामला समझ में आया तो कोई हैरत नहीं हुई । किसी के घर के घरेलू झगड़े को लाइव दिखाया जा रहा था । स्टोरी में पटना की कोई दम्पती थी जिनकी लड़ाई अमेरिका से वापस आकर पुलिस तक जा पहुँची थी । टीवी वालो को मौका मील गाया और उन लोगो ने दोनो को आमने-सामने कर दिया बस फिर क्या था शुरू हो गयी टीवी पर ही उनकी लडाई । पुरा देश देख रहा था आरोप-प्रत्यारोप को । कब किसने किसको मारा, कब किसने किसकी पिटायी कि, कब किसने किससे किसकी शिक़ायत की । ये सार्री बाते बातें टीवी पर आने लगी । वाकई बहुत मज़ा आ रहा था ।

पहले इस टीवी ने हमे बनावटी घरेलु झगड़े दिखाए और अब ये हमारे घर मे घुसकर छोटी-छोटी बातों को तल देकर दिखाने लगें है । क्या हमे इन्हें नही रोकना चाहिए । कल को ये हमारे घरो मे जबरन घुसकर चोटी लडाई को भी तुल देने लगेंगे। क्या हमारे घरों में मीडिया की घुसपैठ ठीक है । ये तेज़ी से ख़त्म हो रही हमारी परिवार व्यवस्था को मिटाने में ओर कारगर होगी ।

आपको भी मिल रहा है मसाला देखिए पहले लोगो के घर कि कहानी फिर आपको अपने घर कि भी कहानी देखने को मिलेगी । भैया अब आधुनिक कहलाने कि इतनी कीमत तो हमे चुकानी ही पडेगी ... आख़िर अमेरिका ओर ब्रिटेन कि तरह रहने कि ललक हमे भी उसी रास्ते पर ले ही जा रही है ।

Sunday 6 May 2007

टूटी-फूटी सडको पर सनसनाती गाडिया


( नेशनल सैम्पल सर्वे आरगेनाइजेशन के आंकडो को देखे तो 1993-94 से लेकर 2004-05 के बीच भारत के ग्रामीण इलाको में कारो और जीप की संख्या चार गुने से भी ज्यादा हुई है । )


आपने सुना होगा हमारे देश कि सडकों के बारे में । वो भी अगर गांवो की बात करें तो कही सडको मे गद्दे है तो कही गढ़्ढ़ो मे सड़क । लेकिन अपको ये जानकर बरी हेरात होगी कि गांवो कि इन्ही टूटी-फूटी सडको पर देश कि करीब ७० फीसदी आबादी सफ़र करती है । जाहीर है कि इन इलाकों मे गाडियों कि एक बड़ी संख्या है । बाज़ार के अनुमान को माने तो भारत के ग्रामीण इलाकों मे दोपहिया ओर चौपहिया गाडियों का बाज़ार करीब ८००० करोड़ का है । अब तक ग्रामीण इलाकों मे कार के बाज़ार पर बहुत ध्यान नही था लेकिन अब वह के लोगो कि बढती ख़रीद क्षमता को देखते हुए कार कम्पनियों ने छोटी कारों को बाज़ार मे उतारने कि तैयारी कर रखी है । टाटा ने लखटकिया कार २००८ तक बाज़ार में उतारने कि तैयारी मे प बंगाल में १००० करोड़ कि परियोजना शुरू की है वहीँ होंडा ने भी राजस्थान मे छोटी कारों के लिए संयंत्र लगाने कि घोषणा कि है ।

Friday 4 May 2007

'मेरा गांव मेरा देश' मे आपका स्वागत है.

आपका स्वागत है इस ब्लॉग मे। यहाँ अपको पढने को मिलेगा भारत के गांव की जिंदगी के बारे में। हो सकता है आप मे से बहुत सरे लोग गांव से ही आते हो लेकिन आज के दौर मे भी गांव कि जिंदगी इतनी अच्छी है कि तनाव से मुक्त है। लेकिन साथ ही उतना कठिन भी। हम अपको इन्ही गांवों कि जिंदगी को बरी ही करीब से दिखने जा रहे है अपने इस ब्लॉग से। आप लोग भी इसमे मेरा साथ दीजिए। हम भारतीय है ओर हमारी खुशहाली हमारे गांवों से होकर ही आती है। इसे हमे नही भुलाना चाहिए।