तारीख १ जनवरी २०५०...की सुबह। देश नया साल मनाने को तैयार है।
स्थान- संसद भवन परिसर।
पत्रकारों की भारी भीड़ श्री-श्री बाबा प्याजेश्वर की एक झलक को कैमरे में कैद करने की धींगामुश्ति में जुटी हुई है, बाहर देशभर से आई जनता भी बाबा की एक झलक पाने के लिए आतुर है। भारत सरकार के लंबे समय से जारी अनुरोध को मानते हुये पड़ोसी देश चीन से आये बाबा नव वर्ष के अवसर पर भारतीय संसद को संबोधित करने आए हैं। बाबा की लोकप्रियता की कहानी ४० साल पहले २०१० में भारत से ही शुरू हुई थी। तब भारतवर्ष प्याज संकट के दौर से गुजर रहा था। चारो तरफ हाहाकार मचा हुआ था। हुक्मरानों के तमाम प्रयासों के बावजूद देश को प्याज के संकट से नहीं निकाला जा सका। देश के विभिन्न हिस्सों में और यहां तक कि घरों के अंदर और छतों पर भी प्याज उगाने के तमाम प्रयास कभी किसानों का देश कहे जाने वाले महान भारतभूमि की कल्याणकारी सरकार और जनता द्वारा किये गये। आखिरकार ५ सालों के असफल प्रयास के बाद देश को प्याज के मामले में दिवालिया घोषित कर दिया गया।
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ऐसी स्थिति में दिल्ली के चांदनी चौक में प्याज के परांठे की दुकान पर काम करने वाले गोलू को तब अचानक एक आइडिया आया। गोलू ने अपने गुरू और दुकान के चीन निवासी मालिक चेन लिउ के कान में कुछ कहा। पड़ोसी देश चीन की सरकार देश का कारोबार बढ़ाने वाले सभी उपायों को ध्यान से सुनती थी यह बात चेन लिउ महोदय को मालूम थी। झट से अगले दिन वे गोलू महोदय के साथ चीनी दुतावास पहुंच गये और फिर जैसे उनकी तरक्की को पंख लग गये। चीन की सरकार की मदद से उन्होंने चांदनी चौक की अपनी दुकान को प्याज प्रसंस्करण केंद्र में बदल दिया और आइडिया देने वाले गोलू जी को अपना एडवाइजर बनाया। दोनों की जोड़ी एकदम अकबर-बीरबल स्टाइल में काम करने लगी। चीन के अपने पुस्तैनी जमीन पर इन्होंने कृत्रिम प्याज बनाने की एक फैक्टरी लगा ली और फिर भारत को उसका निर्यात करना शुरू कर दिया। देखते-देखते गोलू जी कब प्याज वाले बाबा के नाम से जाने जाने लगे किसी को भनक तक नहीं लगी। फिर प्याज प्रोसेसिंग, प्रिजर्विंग और एक्सपोर्ट जैसे अंग्रेजी टाइप नामों वाली कई कंपनियां चेन लिउ महोदय के नाम पर चलने लगी। इधर लिउ महोदय ने दुनिया छोड़ी ऊधर गोलू जी ने बाबा प्याजेश्वर का नाम धारण कर प्याज पर ग्लोबल कंसलटेंसी का काम शुरू कर दिया। कृत्रिम प्याज बनाने की तकनीक जानने वाले वे धरती पर अब अकेले जीव बच गये थे। बाबा की तरक्की देखकर पड़ोसी देश चीन ने उन्हें अपने देश की नागरिकता देकर बुला लिया। भारत और चीन दोनों देशों में प्याजेश्वर बाबा की समान इज्जत थी क्योंकि उन्होंने दुनिया से प्याज के अस्तित्व को खत्म होने से बचाकर इसे बहुमूल्य धरोहर के रूप में ही सही जिंदा तो रखा था।
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देश में प्याज की इतनी इज्जत बढ़ गई थी कि इसने डायमंड और गोल्ड की जगह ले ली। ऐसे वक्त में जब अपने घरों में प्याज को सजा कर रखना देश के कुछेक अमीरों को ही नसीब हो पाता था। जैसे लोग पहले अपने बच्चों के नाम सोनालाल, चांदीराम और हीरामल रखा करते थे वैसे ही अब लोग अपने बच्चों का नाम प्याज प्रसाद, प्याजीलाल और प्याज प्रताप सिंह रखने में गर्व महसूस करने लगे थे। बल्कि प्याज पर नामों की बहुतायत को देखते हुये सरकार ने इसमें सभी जातियों और धर्मों के लिए आरक्षण की घोषणा भी कर दी और ऐसा नाम रखने पर भारी-भरकम फीस लगाने का फैसला कर लिया। लेकिन इज्जत पाने की खातिर धन खर्चने की आदत हमारे देश में काफी पुरानी है। सो इसपर भी नाम रखने वालों की भीड़ कम नहीं हुई तो सरकार ने प्याज के ऊपर नाम रखने की राशनिंग पद्धति लागू कर दी। हां नेताओं तक अपनी पहुंच के कारण कुछ लोगों के लिए इसकी अनुमति पाना अब बी आसान था, भारत ने अभी भी जुगाड़ की अपनी पुरानी धरोहर को मिटने नहीं दिया था।
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हां, तो हम बात कर रहे थे प्याजेश्वर बाबा के संसद में संबोधन की। बाबा के आते हीं सभी सांसदगण बाबा के सत्कार के लिए उठ खड़े हुये। सत्कार लेकर बाबा जैसे ही बैठे सामने की पंक्ति में बैठे चार सदस्यों से उनका परिचय कराया गया। ये चारों जापान से उपहार में मिले रोबोट मानव थे। उपहार में इन्हें पाकर देश की जनता और हमारे हुक्मरान इतने आह्लादित हुये थे कि इन्हें संसद की सदस्यता से सम्मानित किया गया। तभी से ये सभी विशिष्टगण संसद में सामने की सीटों की शोभा बढ़ाते आ रहे थे। बाबा के साथ आये उनके अनुचरों(आधुनिक शब्द में कहें तो उनके एक्जेक्यूटिव्स) ने सभी सांसदगणों को प्याज से बना एक-एक चॉक्लेट उपहार में दिया। सबने बाबा का आभार व्यक्त किया। बाबा ने अपने भाषण में दुनिया के प्याज संकट पर प्रकाश डालते हुये इससे निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों का आह्वान किया। उनके साथ आए चीन के कृषि मंत्री ने चीनी सरकार की ओर से हर साल भारत को १० किलो प्याज के निर्यात का भरोसा भी दिलाया। हमारे विशिष्ट गणों ने प्याज देने की अनुकंपा के लिए चीन को धन्यवाद दिया। धन्यवाद के इस सुर में पीछे बैठे विपक्षी सांसद जोखीलाल के विरोध की आवाज दब सी गई। प्याज से बने चॉकलेट पाकर उनके दल के साथियों ने उनका साथ देने से इंकार कर दिया और उन्होंने हाथ में रखा पर्चा भी संकोचवश अपने पास ही छुपा लिया जिसमें देश में प्याज की खेती को बर्बाद करने के लिए पड़ोसी देश पाकिस्तान और उसके खुफिया संगठन आईएसआई को जिम्मेदार ठहराया गया था और उन्हें मिल रही गुप्त चीनी मदद पर विरोध जताया गया था। संसद भवन में अपना कार्यक्रम खत्म कर प्याजेश्वर बाबा एक अन्य कार्यक्रम के लिए निकल पड़े जहां उन्हें प्याज रत्न पुरस्कार प्रदान करना था और भारत-चीन मित्रता को मजबूत करने के लिए प्याजमैत्री कारवां को हरी झंडी दिखाकर रवाना करना था। बाबा ने अपने इस कार्यक्रम में अपना संदेश देते हुये दुनिया में सबको प्याज मिले इसकी कामना की और फिर प्लेन पकड़ने निकल पड़े जहां से उन्हें प्राचीन शिकागो विश्वविद्यालय में प्याज के इतिहास पर व्याख्यान देने के लिए रवाना होना था।
स्थान- संसद भवन परिसर।
पत्रकारों की भारी भीड़ श्री-श्री बाबा प्याजेश्वर की एक झलक को कैमरे में कैद करने की धींगामुश्ति में जुटी हुई है, बाहर देशभर से आई जनता भी बाबा की एक झलक पाने के लिए आतुर है। भारत सरकार के लंबे समय से जारी अनुरोध को मानते हुये पड़ोसी देश चीन से आये बाबा नव वर्ष के अवसर पर भारतीय संसद को संबोधित करने आए हैं। बाबा की लोकप्रियता की कहानी ४० साल पहले २०१० में भारत से ही शुरू हुई थी। तब भारतवर्ष प्याज संकट के दौर से गुजर रहा था। चारो तरफ हाहाकार मचा हुआ था। हुक्मरानों के तमाम प्रयासों के बावजूद देश को प्याज के संकट से नहीं निकाला जा सका। देश के विभिन्न हिस्सों में और यहां तक कि घरों के अंदर और छतों पर भी प्याज उगाने के तमाम प्रयास कभी किसानों का देश कहे जाने वाले महान भारतभूमि की कल्याणकारी सरकार और जनता द्वारा किये गये। आखिरकार ५ सालों के असफल प्रयास के बाद देश को प्याज के मामले में दिवालिया घोषित कर दिया गया।
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ऐसी स्थिति में दिल्ली के चांदनी चौक में प्याज के परांठे की दुकान पर काम करने वाले गोलू को तब अचानक एक आइडिया आया। गोलू ने अपने गुरू और दुकान के चीन निवासी मालिक चेन लिउ के कान में कुछ कहा। पड़ोसी देश चीन की सरकार देश का कारोबार बढ़ाने वाले सभी उपायों को ध्यान से सुनती थी यह बात चेन लिउ महोदय को मालूम थी। झट से अगले दिन वे गोलू महोदय के साथ चीनी दुतावास पहुंच गये और फिर जैसे उनकी तरक्की को पंख लग गये। चीन की सरकार की मदद से उन्होंने चांदनी चौक की अपनी दुकान को प्याज प्रसंस्करण केंद्र में बदल दिया और आइडिया देने वाले गोलू जी को अपना एडवाइजर बनाया। दोनों की जोड़ी एकदम अकबर-बीरबल स्टाइल में काम करने लगी। चीन के अपने पुस्तैनी जमीन पर इन्होंने कृत्रिम प्याज बनाने की एक फैक्टरी लगा ली और फिर भारत को उसका निर्यात करना शुरू कर दिया। देखते-देखते गोलू जी कब प्याज वाले बाबा के नाम से जाने जाने लगे किसी को भनक तक नहीं लगी। फिर प्याज प्रोसेसिंग, प्रिजर्विंग और एक्सपोर्ट जैसे अंग्रेजी टाइप नामों वाली कई कंपनियां चेन लिउ महोदय के नाम पर चलने लगी। इधर लिउ महोदय ने दुनिया छोड़ी ऊधर गोलू जी ने बाबा प्याजेश्वर का नाम धारण कर प्याज पर ग्लोबल कंसलटेंसी का काम शुरू कर दिया। कृत्रिम प्याज बनाने की तकनीक जानने वाले वे धरती पर अब अकेले जीव बच गये थे। बाबा की तरक्की देखकर पड़ोसी देश चीन ने उन्हें अपने देश की नागरिकता देकर बुला लिया। भारत और चीन दोनों देशों में प्याजेश्वर बाबा की समान इज्जत थी क्योंकि उन्होंने दुनिया से प्याज के अस्तित्व को खत्म होने से बचाकर इसे बहुमूल्य धरोहर के रूप में ही सही जिंदा तो रखा था।
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देश में प्याज की इतनी इज्जत बढ़ गई थी कि इसने डायमंड और गोल्ड की जगह ले ली। ऐसे वक्त में जब अपने घरों में प्याज को सजा कर रखना देश के कुछेक अमीरों को ही नसीब हो पाता था। जैसे लोग पहले अपने बच्चों के नाम सोनालाल, चांदीराम और हीरामल रखा करते थे वैसे ही अब लोग अपने बच्चों का नाम प्याज प्रसाद, प्याजीलाल और प्याज प्रताप सिंह रखने में गर्व महसूस करने लगे थे। बल्कि प्याज पर नामों की बहुतायत को देखते हुये सरकार ने इसमें सभी जातियों और धर्मों के लिए आरक्षण की घोषणा भी कर दी और ऐसा नाम रखने पर भारी-भरकम फीस लगाने का फैसला कर लिया। लेकिन इज्जत पाने की खातिर धन खर्चने की आदत हमारे देश में काफी पुरानी है। सो इसपर भी नाम रखने वालों की भीड़ कम नहीं हुई तो सरकार ने प्याज के ऊपर नाम रखने की राशनिंग पद्धति लागू कर दी। हां नेताओं तक अपनी पहुंच के कारण कुछ लोगों के लिए इसकी अनुमति पाना अब बी आसान था, भारत ने अभी भी जुगाड़ की अपनी पुरानी धरोहर को मिटने नहीं दिया था।
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हां, तो हम बात कर रहे थे प्याजेश्वर बाबा के संसद में संबोधन की। बाबा के आते हीं सभी सांसदगण बाबा के सत्कार के लिए उठ खड़े हुये। सत्कार लेकर बाबा जैसे ही बैठे सामने की पंक्ति में बैठे चार सदस्यों से उनका परिचय कराया गया। ये चारों जापान से उपहार में मिले रोबोट मानव थे। उपहार में इन्हें पाकर देश की जनता और हमारे हुक्मरान इतने आह्लादित हुये थे कि इन्हें संसद की सदस्यता से सम्मानित किया गया। तभी से ये सभी विशिष्टगण संसद में सामने की सीटों की शोभा बढ़ाते आ रहे थे। बाबा के साथ आये उनके अनुचरों(आधुनिक शब्द में कहें तो उनके एक्जेक्यूटिव्स) ने सभी सांसदगणों को प्याज से बना एक-एक चॉक्लेट उपहार में दिया। सबने बाबा का आभार व्यक्त किया। बाबा ने अपने भाषण में दुनिया के प्याज संकट पर प्रकाश डालते हुये इससे निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों का आह्वान किया। उनके साथ आए चीन के कृषि मंत्री ने चीनी सरकार की ओर से हर साल भारत को १० किलो प्याज के निर्यात का भरोसा भी दिलाया। हमारे विशिष्ट गणों ने प्याज देने की अनुकंपा के लिए चीन को धन्यवाद दिया। धन्यवाद के इस सुर में पीछे बैठे विपक्षी सांसद जोखीलाल के विरोध की आवाज दब सी गई। प्याज से बने चॉकलेट पाकर उनके दल के साथियों ने उनका साथ देने से इंकार कर दिया और उन्होंने हाथ में रखा पर्चा भी संकोचवश अपने पास ही छुपा लिया जिसमें देश में प्याज की खेती को बर्बाद करने के लिए पड़ोसी देश पाकिस्तान और उसके खुफिया संगठन आईएसआई को जिम्मेदार ठहराया गया था और उन्हें मिल रही गुप्त चीनी मदद पर विरोध जताया गया था। संसद भवन में अपना कार्यक्रम खत्म कर प्याजेश्वर बाबा एक अन्य कार्यक्रम के लिए निकल पड़े जहां उन्हें प्याज रत्न पुरस्कार प्रदान करना था और भारत-चीन मित्रता को मजबूत करने के लिए प्याजमैत्री कारवां को हरी झंडी दिखाकर रवाना करना था। बाबा ने अपने इस कार्यक्रम में अपना संदेश देते हुये दुनिया में सबको प्याज मिले इसकी कामना की और फिर प्लेन पकड़ने निकल पड़े जहां से उन्हें प्राचीन शिकागो विश्वविद्यालय में प्याज के इतिहास पर व्याख्यान देने के लिए रवाना होना था।