Wednesday 6 October 2010

मुगालतों का देश और सुपर पॉवर होने का सपना..!

कॉमनवेल्थ खेलों की रंगारंग ओपनिंग सेरेमनी के बाद देश का दम और दुनिया में भारत की दबंगई का ढोल पीटने वाले लोग इधर काफी मुगालते में जीने लगे हैं. अचानक से देश-दुनिया के तथाकथित सेलेब्रिटी लोगों के बयान अख़बारों में नज़र आने लगे हैं जिनमे कॉमनवेल्थ खेलों की चमक-दमक को भारत की चमक-दमक से जोड़कर राष्ट्रीय गर्व का एहसास कराया जा रहा है. अगर इनपे भरोसा किया जाये तो जो भारत पिछले हफ्ते तक बदइन्तेजामी, भ्रष्टाचार और व्यवस्थागत कमियों के लिए दुनिया भर में आलोचना का शिकार हो रहा था अचानक से सुपर पॉवर जैसा दिखने लगा है. इतना त्वरित चमत्कार कैसे हो गया समझ में नहीं आ रहा?

हजारों करोड़ की लागत से राजधानी में बने आलिशान खेल गाँव और चंद स्टेडियम तथा कुछ वीआईपी इलाकों में चमकती सडकों और सड़क किनारे बनी आकर्षक आकृतियों से आगे बढ़कर अब चलते है शेष भारत के पास जिसको सुपर पॉवर का ये तमगा एक शूल की भांति चुभ रहा है. अजी पूरे देश की बात तो छोडिये जरा खेल गाँव और दक्षिण-मध्य दिल्ली से बहार निकलिए और दिल्ली के पूर्वी, पश्चिमी और उत्तरी इलाकों का नज़ारा कर लीजिये. टूटी-फूटी सड़कें, और कहीं गड्ढों में सड़क तो कहीं सड़क में गड्ढों पर सवारी करती वहां की जनता आपको सुपर पॉवर होने के एहसास की सच्चाई से जरूर रूबरू करा देगी.

देश की व्यवस्था की संवेदनहीनता की तो बात ही मत कीजिये. अभी करीब दो-तीन महीने ही हुए होंगे जब राजधानी दिल्ली के एक केन्द्रीय स्थान पर भीड़-भाड वाले एक सड़क के किनारे एक महिला ने एक बच्चे को जन्म दे दिया था और वही उसने दम तोड़ दिया था. व्यवस्था की संवेदनहीनता और सामाजिक सुरक्षा की कमी पर तब न्यायलय ने कड़ी नाराजगी जताई थी. ये कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती...सुपर पॉवर बनने का दम भरने वाला ये भारत अपने यहाँ के बच्चों के पोषण कुपोषण की क्या बात करे ये भारत अपने देश के भविष्य अपने नौनिहालों को स्कूलों तक लाने के लिए दोपहर के भोजन का लालच देता है. ये देश अपने लोगों को काम की गारंटी साल में १०० दिन की मजदूरी के काम को मुहैया कराकर देता है. मजदूरी की इस मामूली रकम में गबन और फर्जीवाड़े पर देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् की चेयरमैन तक चिंता जता चुकी हैं. खेल पर हजारों करोड़ रुपया लुटाने वाला ये देश वृधावस्था पेंशन के रूप में अपने बुजुर्गों को महीने भर के खर्च के लिए महज दो-ढाई सौ रूपये की रकम देता है. इस देश के पढ़े-लिखे लोगों को न तो रोजगार की गारंटी है और न ही अपनी वृहत आबादी के लिए इसके पास कोई सामाजिक सुरक्षा का व्यवस्थित ढांचा ही है. पारदर्शिता की तो बात ही मत कीजिये..आजादी के ६०-६५ सालो बाद अभी यही चर्चा चल रही है कि देश का सबकुछ जिस राजनीती के हाथों में है उस राजनीति में दागी-भ्रष्ट-घोटालेबाज और अपराधियों को आने से और धनबल और बाहुबल के प्रयोग को कैसे रोका जाये?

जो लोग भी अचानक से देश को सुपर पॉवर समझने लगे हैं उन्हें यह अहसास होना चाहिए कि राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार से लड़ने का जो मौका अभी देश ने गवां दिया उसकी भरपाई अगले कई दशकों तक उसे करनी पड़ेगी. ये एक ऐतिहासिक मौका था जब देश भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट होकर व्यवस्था में हर स्तर पर शामिल ऐसे लोगों को सुधरने पर मजबूर कर सकता था...जो हमने गवां दिया और बदले में पाया--'सुपर पॉवर होने का मुगालता'..!

Monday 4 October 2010

इंडिया सर ये चीज धुरंधर...

हाल ही में आई फिल्मी पीपली लाइव के गाने की एक लाइन है--
"इंडिया सर ये चीज धुरंधर.."
अब देखिये देश की ये दो तस्वीरें--

पहली तस्वीर-
देश का करोडो-अरबो रुपया फूंककर कामनवेल्थ खेलों का रंगारंग शुभारम्भ कर लिया गया। समाचार चैनलों के हिसाब से देखें तो भारत ने दुनिया को अपना दम दिखा दिया और भी पता नहीं क्या-क्या दिखा दिया है इंडिया ने रंगारंग शुरुआत करके. ।


लेकिन इससे पहले की आप किसी मुगालते में पड़ जाएँ एकबार जरा नीचे की तस्वीर पर भी गौर कर लें।




आसमान की ओर टकटकी लगाये इस किसान की ये कहानी किसी एक किसान की नहीं है बल्कि देश के हजारों-लाखों किसानों की यही कहानी है.
अब खबरों से प्राप्त दो आकड़ों को गौर से पढ़े--
१) दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम के पुनरुद्धार के ऊपर ९६० करोड़ का खर्चा..
२) भारी बारिश-भूस्खलन और बाढ़ से तबाह हो गए उत्तराखंड राज्य को केंद्र की ओर से ५०० करोड़ की मदद..

खबरों से प्राप्त इन दो आकंड़ों पर गौर करें और किसानों का देश कहे जाने भारत और दिल्ली की चकाचौध से अपनी छवि बदलने को छटपटा रहे इंडिया की व्याकुलता के बीच भारत का किसान अपनी स्थिति का अंदाजा खुद लगा ले..