Sunday 2 December 2007

गुजरात की बेजान पिच पर डटे धुरंधर!

गुजरात में चुनावी बिसात बिछ चुकी है, सारे धुरंधर अपने-अपने बल्ले और गेंद का जौहर दिखाने के लिए गुजराती पिच पर उतर चुके हैं। क्या भाजपा और क्या कांग्रेस सभी २०-२० स्टाइल में अपनी जीत कि उम्मीद लगाए हुए हैं। लेकिन कोई कुछ भी कहे भाजपा के मास्टर ब्लास्टर नरेन्द्र मोदी गुजरात के बेजान पिच पर फिर परचम लहराने कि स्थिति में लग रहे हैं। हालांकि कांग्रेस ने पूरा जोर लगा लिया है मोदी से असंतुष्ट लोगों को अपनी तरफ करने में लेकिन कई लोगों के जाने के बाद भी मोदी का दमख़म कम होता नहीं दिख रहा है।

बेजान पीच पर कांग्रेस ने पूरा प्रयास किया कि गेंद को मोदी के शरीर के सिद्ध में रखकर निशाना बनाया जाये और इसके लिए मोदी के गढ़ में दरार डालने कि कोशिस भी की गई । यहाँ तक कि जिस दंगे के लिए कांग्रेस मोदी को kos रही थी उसी मोदी सरकार के ग्रीह मंत्री को मोदी के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए तैयार दिख रही है। यहाँ बात वही हुई ना कि राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता, और राजनीति किसी सिद्धांत कि मोहताज नहीं होती, मौका पड़ने पर राजनितिक दल अछे-बुरे कि अपनी परिभाषा बदल सकते हैं। हालांकि आखिरी फैसला गुजरात कि जनता को ही करना है। और अब वक्त भी ज्यादा नहीं बचा है। देखते है कौन गुजरात सीरीज़ मैं चैम्पियन बनके उभरता है।

पिछली बार मोदी ने दो तिहाई सीटें जीती थी इस बार ये आंकड़ा कम जरूर होगा लेकिन लगता नहीं है कि मोदी कि सत्ता को कांग्रेस अभी उखाड़ पाने में सफल होगी। कारन वही है कि कांग्रेस ने अबतक अल्पसंख्यक तुस्तीकरण पर ज्यादा ध्यान दिया है इसके ठीक उलट मोदी ने बहुसंख्यक आबादी को रिझाने पर ध्यान दिया है। मोदी का ये नज़रिया लोकतांत्रिक व्यवस्था के मनमाफिक ही लगता है। आलोचना करने वाले चाहे जो भी कहें लेकिन लोकतंत्र वास्तव में बहुसंख्यक आबादी कि सत्ता ही होती है।

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