दीवालघड़ी की सूईंयां
सोने का प्रयास करते-करते थक चुके रामजतन की निगाहें आखिरकार दिवार के सहारे टंगी घड़ी पर टिक गई। सुबह के चार बज रहे थे। आंखों से नींद गायब थी और दिल में सुकून नाम की कोई चीज नहीं थी। पिछले 18 घंटे से मन में एक ही सवाल कौंध रहा था कि सुबह 10 बजे तक नगरनिगम के अधिकारी को देने के लिए 3 लाख रुपये का जुगाड़ कहां से होगा? बेटे को आईआईएम में दाखिला दिलाकर कल हीं लौटे रामजतन ने अपनी पूरी सार्म्थ्य झोंककर फीस का जुगाड़ जैसे-तैसे किया था। पिछले साल बेटी की शादी के लिए घर और दूकान पर 7 लाख का कर्ज पहले ही ले रखा था। बेटे को एडमिशन दिलाकर घर लौटे तो दरवाजे पर नगरनिगम का नोटिस चस्पां देखा।
आनन-फानन में अपने परम मित्र परमानंद को लेकर निगम कार्यालय पहुंचे तो पता चला कि निगम की सर्वे टीम ने घर का नक्शा अवैध घोषित कर दिया है और 15 दिन में तोड़ने की कार्रवाई होगी। निगम का फरमान सुन रामजतन को अपने पांव के नीचे से जमीन खिसकती सी लगी। परमानंद जैसे-तैसे रिक्शे में उन्हें लादकर घर पहुंचे। उनकी श्रीमति कमला देवी ने सुना तो रो-रोकर पूरा मोहल्ला सर पर उठा लिया। खैर रोने-धोने से कुछ होने वाला तो था नहीं, सो परमानंद की सलाह पर रामजतन हर समस्या की तोड़ देने वाले मोहल्ले के छुटभैये नेता कल्लन काका के यहां पहुंचे और अपनी आपबीती सुनाई। उम्मीद के अनुरूप काका ने निराश नहीं किया और उन्हें लेकर इलाके के पार्षद के यहां पहुंचे। पार्षद महोदय ने उनकी बात सुनकर पहले तो व्यवस्था की खराबी और भ्रष्टतंत्र को खूब कोसा फिर फोन से निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी से बात की। बात पूरी कर फोन रख पार्षद महोदय अपनी ओर उम्मीद भरी टकटकी लगाए रामजतन की ओर मुखातिब हुए और कहा कि अधिकारी अवैध मकान की सूचि से आपका नाम हटाने के लिए 4 लाख रुप्ये की मांग कर रहा है लेकिन मेरे कहने पर वह 3 लाख पर मान गया है। हां, लेकिन शर्त यह है कि पैसे कल सुबह 10 बजे देने होंगे वरना सूची वह ऊपर भेज देगा।
रामजतन की हालत ऐसी मानो काटो तो खून नहीं। नेता जी को ऊपरी मन से धन्यवाद देकर वहां से निकले। मन बेचैन हो गया। सूरसा के मुंह सा ये सवाल सामने तैर गया कि जिस घर को बनाने के लिए जिंदगी के 30 सालों की पूरी मेहनत की कमाई उन्होंने खपा दी उसी को बचाने के लिए अब 3 लाख रुप्ये कहां से लाएं? वे भी महज 24 घंटे के भीतर? हाथ वैसे ही आजकल खाली है। रास्ते में कल्लन काका ने हिसाब समझाया कि 30 लाख कीमत वाले घर को बचाने के लिए 3 लाख का सौदा महंगा नहीं है। इस बीच चार लाख से घटाकर तीन लाख कराने वाले नेता जी का अहसान गिनाने से भी वे नहीं चूके।
पूरे दिन भर हाथ-पांव मारने के बावजूद रामजतन को इन पैसों के बंदोबस्त होने की कोई संभावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही थी। पूरी रात जगी आंखों में काट चुके रामजतन की निगाह फिर दीवालघड़ी पर जा टिकी। साढ़े चार बज गये थे और घड़ी की सूईंया अपनी गति में भागी जा रही थीं। मन हुआ कि उठकर दीवालघड़ी की सूईंयों को थाम लें ताकि इस रात की कभी सुबह न हो। रात ऐसे ही चलती रहे और किसी नगरनिगम का कोई कार्यलय फिर कभी न खुल सके। रामजतन को अपनी समस्या का यही एकमात्र हल अब दिख रहा था। लग रहा था जैसे काली स्याह रात और अनंत आकाश में उनके हाथ अपने-आप दीवालघड़ी की सूईयों की ओर बढ़े चले जा रहे हैं और सूईंयां उनसे दूर कहीं छिटकती जा रही हों।