Saturday 29 August 2009

कलयुग जाने वाला है, सतयुग आने वाला है...

कल दिवार पर लगी एक पोस्टर देखी। उसपर यही लिखा हुआ था. प्रचार था किसी बाबा का. जो सतयुग आने का सपना दिखा रहे थे. जैसे सबकुछ बदलने वाला ही हो, बस. अब राम राज्य आने ही वाला हो. ऐसे न जाने कितने सपने बेचने वाले बाबा लोग रोजाना टीवी पर दिखते रहते हैं. जिन बाबा लोगों का बाज़ार बन चुका है उन्होंने अपना खुद का टीवी चैनल खोल लिया है और जिनका उतना बाज़ार नहीं बन पाया है वे किसी और के चैनल पर दिखकर अपना काम चला ले रहे हैं. रोजाना सुबह-सुबह टीवी के इन चैनलों पर बाबा लोग और झूमते-गाते आनंदित से दिखते उनके भक्त लोग आकर आसन जमा लेते हैं और फिर चलता है धर्म का एक लम्बा सिलसिला. अब इस धर्मवाद के साथ बाज़ार भी जुड़ चुका है और इसी का नतीजा है दीवारों, बसों और जगह-जगह लगे बाबा लोगों के पोस्टर.
कल इसी से जुडी हुई एक और घटना आँखें खोलने वाली थी. मेरे एक परिचित के यहाँ बच्चा हुआ था. किसी ने उन्हें एक पंडित जी का फोन नंबर दिया. फोन पर उन बाबा से बात हुई और पूजा का मामला फिट हो गया. तय हुआ कि बाबा पूजा का सारा सामान लायेंगे और पूजा संपन्न कराएँगे और जजमान केवल तैयार होकर आ जाये. बाबा आये, उनके साथ एक अस्सिस्टेंट भी थे. बाबा अपने साथ पूजा की पूरी सामग्री लाये थे. यहाँ तक कि चलता फिरता हवनकुंड भी. बाबा ने पूजा निपटाया..अपनी फीस ली और जजमान भी इस झंझट से मुक्त हुए. दोनों ने अपनी धार्मिक जिम्मेदारी निभाई और फिर चल पड़े अपने-अपने रस्ते.

Saturday 15 August 2009

लो मन गया फिर आज़ादी का जश्न!

लो मना लिया मैंने भी अपनी आज़ादी का जश्न
हाथों में तिरंगा थामे
झूमते-गाते और नारे लगाते
बच्चों, बूढों और नौजवानों को
टीवी चैनलों पर देखकर,
राष्ट्रभक्ति के गानों को सुनकर
कर लिया मैंने भी अपना मन हल्का
और निभा ली मैंने भी अपनी जिम्मेदारी
देश और देशभक्ति की!

इस आजाद देश के
हर आजाद नागरिक की तरह
मुझे भी छू गया
मेरे सामने परोसा गया
भाषणों का पुलिंदा,
जिसमे करीने से सजाये गए थे
न जाने कितने सपने
जो मेरा देश
पिछले ६२ सालों से देखता आ रहा है
और जिन सपनों के पूरा होने की बाट जोहते
खप गयी कई पीढियां...

आज भी मेरे गाँव की नई पौध
नहीं पहुच सकी है
तकनिकी क्रांति के उजाले तक।
मिटटी की तेल के दीये की
मद्धिम रौशनी में
न्यूटन, आइंस्टाइन और गैलिलियो को
पता नहीं कबसे पढ़ती आ रही है ये पौध...


आज भी हमारे गाँव के किसान
बदहाल हैं...
दिनभर धूप और बरसात में
मरने-खपने के बाद भी...
भर-पेट भोजन
और पूरा कपड़ा आज भी चुनौती है
उनके लिए...
और उन्ही की खेती का आंकडा बेच
न जाने कितने लोग
हो गए करोड़पति
सच में यही है "इंडिया शाइनिंग"...

टीवी पर दिखने वाले
चमकते-दमकते
भारत से अलग है मेरा भारत
रोटी-कपडा और मकान के लिए
मरता-खपता भारत...
मेरा भारत... मेरा महान भारत!

Tuesday 4 August 2009

बोल तेरे पास प्लास्टिक के और कितने थैले हैं...?

खबर में तो पढ़ा था लेकिन प्रत्यक्ष में कल पहली मर्तबा दर्शन हुआ। मिठाई की दुकान पर जब मिठाई वाले ने हाथ में मिठाई का डब्बा पकडा दिया तो ख्याल आया की थैली लाना तो अपनी आदत में शुमार ही नहीं है और अब तो दिल्ली में सरकार ने प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया है सो युहीं हाथ में टांगकर ले जाना होगा। लेकिन तभी देखा दुकानदार काउंटर के बगल से धीरे से हाथ बढाकर कुछ दे रहा था...मुट्ठी में दबाये हुए था...अचानक इस तरह का व्यव्हार देखकर थोडी घबराहट हुई फिर अपनेआप को संभलकर मैंने पूछा॥ क्या है...उसने धीरे से कहा- पालीथीन...दुकान के बाहर जाकर डब्बा इसमें रख लीजियेगा...मैंने देखा थैले पर उस दुकान की पूरी पहचान लिखी हुई थी फिर उसे छुपाकर देने का क्या फायदा. इतना ही जिस दुकान में प्लास्टिक का थैला इस तरह छुपाकर दिया जा रहा था उसी दुकान में कई ऐसे उत्पाद थे जो मोटे और ज्यादा मजबूत थैलों में खुलेआम रखे और बेचे जा रहे थे...तुर्रा यह कि सरकार ने केवल प्लास्टिक के थैलों पर ही प्रतिबन्ध लगाया है.

चारो ओर ताकते जैसे-तैसे सहमे हुए घर पहुचे कि कहीं रस्ते में जांच करने वाले न मिल जाए और मुफ्त में फंस न जायें। खैर ऐसा कुछ नहीं हुआ और सड़क पर सैकडों लोग हाथों में प्लास्टिक की थैलियाँ टाँगे इधर से उधर जाते-आते दिखायी दे रहे थे। उन्हें देखकर थोडी हिम्मत बंधी...इस डर ने घर आकर भी पीछा नहीं छोड़ा...रात को बिस्तर पर पड़े कब सपनो में खो गए पता भी नहीं चला...सपने में कल सुबह की तस्वीर दिखने लगी..सुबह दफ्तर जाते वक्त प्लास्टिक के थैले में खाना पैक कर बीवी हाथ में थमाती है.. बोझिल कदम आगे बढ़ने को तैयार नहीं होते...घर और बाहर के बीच आकर पैर थम जाते हैं..अगर घर में वापस जाकर बताये कि बाहर प्लास्टिक की थैली लेकर जाने में डर लग रहा है तो फिर बीवी को हसने से रोकना संभव न होगा और अगर इसे लेकर बाहर गए तो पता नहीं क्या होगा. कहीं प्लास्टिक के थैले लेकर चलने के अपराध में पुलिस पकड़ कर न ले जाये और वह आतंकवादियों और अपराधियों की तरह थर्ड डिग्री का इस्तेमाल न करने लगे..कहीं प्लास्टिक के थैलों के जखीरे की तलाश में घर पर छापा पड़ गया तो २-४ पौलिथिन तो उनके हाथ लग ही जायेगा..फिर कौन बचायेगा इस बला से...पुलिसिया मार खाकर बताना ही पड़ेगा कि घर में कितने और थैले छुपा कर रखे हैं...