Wednesday 5 December 2007

"इंटरनेशनल डॉग शो में ४२ लाख का कुत्ता"

एक कुत्ते कि कीमत ४२ लाख ! आपको शायद इसपर यकीन न हो लेकिन यही सच है। उत्तरांचल की राजधानी देहरादून के सर्द मौसम में दुनिया भर के कुत्तो को लेकर उनके मालिक(अभिभावक - कृपया कोई बुरा ना माने) पहुंचे। मौका था इंटरनेशनल डॉग शो का। बंगलोर से आये एक कुत्ते की कीमत ४२ लाख थी। और ना जाने कितने नए-नए नस्ल के कुत्ते भी यहाँ लाये गए थे। भैया हमारे लिए तो नयी बात थी। हम तो गाँव के रहने वाले हैं और हमे याद है बचपन में जो कुत्ते हमे पसंद आ जाते थे उन्हें स्चूल से लौटते वक्त हम अपने बसते में छुपा चुपके से उठा लाते थे। न कोई कीमत देना होता था और ना ही कोई दोग शो में जाना पड़ता था। और कुत्ते भी साहब बडे होने के बाद इतने बहादुर निकलते । थी किसी कि मजाल जो रात को हमारे घर की ओर कदम बढ़ा लें।

देहरादून में पौंचे कुत्ते एक से एक उन्नत नस्ल के। उनके साथ आये थे उनके नखरे उठाते आ रहे उनके अभिभावक भी मुझे इसके पहले जानकारी नहीं थी कि कोई इस तरह का आयोजन भी दुनिया में होता हैं। कहीं और होता है या नहीं लेकिन यहाँ अपने देश में इस तरह का ये मेरा पहला अनुभव था। मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि चलो अब तक कुत्तों को मालिकों के प्रति वफादारी के लिए जाना जाता था और अब आने वाली दुनिया में मालिकों को उनके कुत्तो के प्रति संजीदगी के लिए भी जाना जाएगा। दूसरी जिस बात पर मुझे ज्यादा ख़ुशी हुई की चालों इस तरह के आयोजन से कुत्तो का अंतरराष्ट्रीयकरण हो रहा है।

मुझे याद है वो कवी सम्मेलन । बात तब की है जब मैं बनारस में रहता था। बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी के लंका गेट पर हुए एक कवि सम्मेलन में एक युवा कवि ने सुनाया था "काश मैं किसी आमिर का कुत्ता होता" । उस बेचारे कवि कि व्यथा थी अमीरों के कुत्तों कि देखरेख कि व्यापक व्यवस्था को लेकर। बेचारे कि कविता में आमिर कुत्तो कि सम्पन्त्ता से जलन साफ दिख रही थी।

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