Thursday 20 December 2007

अब 'भारत' भी चलेगा कार पर!

१९९० के दशक के अंत में देश में ये डिजिटल डिवाईड को लेकर बहस बहुत तेज थी । लगभग हर बहस-मुबाहिसे में भारत और इंडिया को अलग कर देखने और दोनों के जीवन स्तर में अंतर पर बाहर एक फैशन जैसा हो गया था। इन दोनों दुनिया में फर्क कार पर चलने वाली आबादी तय करती थी। अर्थात जो कार पर चलते हों वो अगर और जो कार पर नहीं चलते वो देश भारत के लोग।

इधर जल्द ही इस बारे में टाटा कंपनी बड़ा बदलाव लाने वाली है। january २००८ में वह lakhtakiyaa कार के साथ बाज़ार में उतरने वाली है। जाहीर है कि यह एक ऐसी राशी है जिसे देश की बहुसंख्यक जनता या तो खुद के कार खरीदने पर खर्च कर सकती है या फिर सर्वजिंक रुप से चलने वाली कारों की सवारी कर सकती है। कल ही एक खबर आई थी कि टैक्सी एजेंटों कि निगाह टाटा के इस कार पर टिकी है। अगर ये कार उनकी अपेक्षावों पर खरी उतरती है तो जहीर है भारत कि अधिसंख्य आबादी कारों पर चलने लायक होगी। और फिर शहरी आबादी को कारो पर चलन के अलावा आगरा दिखने के लिए कोई और जुमला गढ़ना होगा.....................

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