Thursday 20 December 2007

सब्सिडी नहीं तो फिर आरक्षण क्यूँ!

सरकार का हाथ आम आदमी के साथ नारे वाली पार्टी कि सरकार है हमारे देश में। उस सरकार के मुखिया ने एक दिन कहा कि अब वक्त आ गया है कि किसानों को मिलने वाली सब्सिडी ख़त्म कर दी जाये। सरकार का कहना है कि इस से सरकार के ऊपर बोझ बहुत ज्यादा हो गया है और सही लोगों को इसका फायदा भी नहीं पहुंच रहा है। इसके कुछ दिन बाद ही उस सरकार ने देश के अल्पसंख्यकों के लिए पंचवर्षीय योजना मी से १५ फीसदी फंड एलौट कर दिया । सरकार को ये कोई बोझ नहीं लगा। अगर इस बात का कोई विरोध करे तो ये सरकार उसे सांप्रदायिक कहने से पीछे नहीं हटने वाली।

अब सरकार को ये भी सुनिश्चित करना चाहिऐ कि बाक़ी के बचे ८५ फीसदी पैसे से बने सड़क पर कोई अल्पसंख्यक नही चले, उस पैसे से हुए किसी काम का फायदा किसी अल्पसंख्यक को नहीं हो। अगर देश का बहुसंख्यक समुदाय इस तरह की माँग उठाने लगे तो इसमे बुराई क्या है। अगर १५ फीसदी पैसे पर अल्पसंख्यकों का अधिकार है तो बाक़ी के ८५ फीसदी पर बहुसंख्यकों का अधिकार भी तय होना चाहिऐ। सरकार का ये कदम देश को सांप्रदायिक अधर पर बांटने वाला है। अब ये भी तय होना चाहिऐ कि इस पैसे का ऐसे लोगों को भी फायदा नहीं होना चाहिऐ जो देश के खिलाफ काम करने वाली शक्तियों से मिले हुए हों। आतंकी हमलों को रोक पाने में असफल रही इस सरकार को ये भी तय करना चाहिऐ।

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