Monday 31 December 2007

भाजपा को फिर से याद आये रामजी!

रविवार ३० दिसम्बर को भाजपा के नेताओं के लिए काफी व्यस्त दिन रहा। एक दिन में दो बड़े आयोजन थे। हिमाचल में भाजपा की सरकार सत्ता में आई थी प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद कि शपथ लेनी थी वही दिल्ली में विश्व हिन्दू परिषद कि रैली थी जो राम सेतु के मसले पर बुलाई गई थी। पहले जब शिमला में मंच पर पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह नहीं दिखे तो लोगों को हैरत हुई कि अरे ये क्या हुआ. पार्टी का इतना बड़ा आयोजन और राजनाथ जी कैसे गायब हो सकते हैं। शिमला के मंच पर दिल्ली से आडवाणी जी और नकवी जी दिखे।

थोडी देर बाद जवाब खुद मिल गया। दिल्ली में विहिप की रैली के मंच पर बाक़ी के नेता दिख गए। राजनाथ सिंह जी के साथ मुरली मनोहर जोशी जी और सुषमा जी भी विहिप की रैली में मंच पर साधू-संतों की भीड़ में दिख गए। जोशी जी ने बाहर निकल कर मीडिया के बीच राम सेतु मसले पर केन्द्र की कांग्रेस सरकार को घेरने का प्रयास किया। राजनाथ जी की दिल्ली में उपस्थिती ये बता रही थी की हिमाचल में जीत की ख़ुशी मनाने से ज्यादा जरूरी पार्टी अध्यक्ष जी के लिए राम सेतु के मसले पर हो रही रैली थी। लेकिन काफी लोगों को दिल्ली के इस मंच पर मोदी जी को न देखकर निराशा हुई।

गुजरात के कुछ ऐसे लोगों से मेरी बात हुई जो विहिप से जुडे हुए है और काफी सक्रिय हैं। रैली में मोदी के न आने को लेकर उनमें कोई हैरानी नहीं थी। उनका कहना था की मोदी जी ने अपने काम के बदौलत सत्ता बरक़रार रखी है और दिल्ली रैली में मोदी के न आने को लेकर उनका कोई स्पष्ट विचार सामने नहीं आया। लेकिन राम सेतु के मसले ने बीजेपी को एक ऐसा मसला दे दिया है जिसे अगले चुनाव में बीजेपी राम मंदिर के मामले के बदले भुना सकती है और बीजेपी इस बात की गंभीरता को समझ रही है। इसी कारण राम सेतु पर कोई भी मौका बीजेपी गवाना नहीं चाहती। बीजेपी को ऐसा लगने लगा है कि जो पार्टियां अभी इसे हल्के में ले रही है आगे चलकर उन्हें इसका नुकसान हो सकता है। बीजेपी इसे ऐसे मौक़े के रुप में देख रही है जिस पर वह दक्षिण भारत के हिन्दुओं को भी अपने पक्ष में गोलबंद कर सकती है। अपने पक्ष में अचानक आये इस मौक़े को देखकर बीजेपी को फिर वो राम याद आ गए हैं जिन्हें १९९८ में सरकार बनाने के बाद उसने भुला दिया था।

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