पिछला हफ्ता काफी गहमा-गहमी वाला रहा. भारत के राजनीतिक क्षितिज पर तमाम पुराने घाघ राजनेताओं की मौजूदगी और उनकी अनिक्क्षा के बावजूद ७२ साल के एक बुजुर्ग अन्ना हजारे का नाम इस तरह नमूदार हुआ कि सब भौचक देखते रह गए. इस पूरी लड़ाई में बुजुर्ग अन्ना और उनके पीछे खड़ा देश का युवा, कामगार वर्ग(सरकारी तंत्र से जुड़े लोगों को छोड़कर) और प्रौढ़ आबादी सीन में था और बाकी सब राजनीतिक चेहरे इस दौरान गौण हो गए. आखिर ऐसा क्या हुआ कि भारत के जिस युवा आबादी के बारे में कहा जा रहा था उसे क्रिकेट और मौज-मस्ती से फुर्सत ही नहीं है वह अचानक उठकर हाथों में तिरंगा थामकर अन्ना के पीछे खड़ा हो गया?
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मोटे तौर पर इसके दो कारण दिख रहे हैं.
पहला तो ये कि पिछले साल-दो साल में देश में जिस तरह से करोडो-अरबो के घोटाले लगातार सामने आते जा रहे थे और राजनीतिक नेतृत्व उसपर अपनी उदासीनता और बेशर्मी दिखाए जा रहा था उसे लेकर लोगों के मन में खासकर युवाओं के मन में काफी गुस्सा पनप रहा था. उसी गुस्से को अन्ना हजारे ने एक आवाज दी. लोगों को एक ऐसा मंच मिल गया जहाँ से उन्ही के मन की बात कोई कह रहा था. लोगों ने देर नहीं की और आन्दोलन के साथ हो लिए.
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दूसरा जो कारण दिख रहा है वह है कि आजाद भारत में पहली बार एक बड़े मंच से किसी ने राजनीतिक बिरादरी को यह बताने की जुर्रत की है कि सरकार का काम क्या है. अन्ना हजारे ने बार-बार जोर देकर कहा कि लोकतान्त्रिक भारत में जनता देश की मालिक है और हुक्मरान केवल सेवक. जिन्हें जनता की प्रगति और विकास के काम के लिए लगाया गया है. उसी काम के बदले देश के खजाने से उन्हें वेतन आदि दिया जाता है और इसी से उनके घर-परिवार की रोजी-रोटी चलती है. अत उन्हें अपने काम और कर्तव्य को समझना होगा.
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हुक्मरान बुरा माने या अच्छा... अन्ना हजारे ने अपने आन्दोलन के जरिये उन्हें एक मौका दिया है.. आगाह किया है कि इससे पहले कि देश की जनता अपना आपा खो दे हुक्मरानों को इस अंधेरगर्दी के दौर को ख़त्म कर ईमानदारी और जवाबदेही का रास्ता अख्तियार कर लेना चाहिए. २१वी सदी में दुनिया से कदम मिलाकर चलने को आटूर हिंदुस्तान की युवा आबादी नहीं चाहती कि कुछ चंद बेईमानो के कारण उनके देश को कोई भ्रष्ट और करप्ट देश कहे. ना ही यहाँ का कामगार वर्ग टैक्स चुकाने के बावजूद आपनी अगली पीढ़ी को एक भ्रष्ट व्यवस्था सौपना चाहता है.
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अन्ना हजारे के इस आन्दोलन ने एक और काम जो किया है वह यह कि ईमानदारी की बात करने वाले जिन लोगों को कल तक लोग पुराने ज़माने का आदमी और आज के भ्रष्ट व्यवस्था के लायक नहीं समझते थे अचानक से उनका मनोबल बढ़ गया है और वे अब अपनी ईमानदारी भरी बात एक बार फिर से बुलंद होकर करने लगे हैं और बेईमानों का स्वर हल्का पड़ गया है. यही है ब्रांड अन्ना का कमाल जो कि पिछले एक हफ्ते में मार्केट में आया है और अपनी अमिट छाप छोड़ गया है.
2 comments:
देश के लोग ईमानदार आज भी हैं |बस उनको लीड करने वाला ईमानदार होना चाहिय और यही काम अन्ना जी ने किया है जो सच का साथ देता है उसको दुनिया साथ देती है |
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