हमारे बड़े-बुजुर्ग बड़े आराम से कहते हैं कि भाई राजनीति में अब ईमानदारी का जमाना ही नहीं रहा। कहाँ वो जमाना था जब नेता लोग पैदल चुनाव प्रचार करते थे और कहाँ ये जमाना आ गया जब नेता लोग साधन-संपन्न एसी गाड़ियों में घूम रहे हैं. तब से अब तक देश ने कितना विकास कर लिया ये चुनाव के वक्त ही दिखता है. चुनावी खर्च का भले जो भी ब्यौरा चुनाव आयोग और प्रशासन को दिया जाता हो लेकिन क्षेत्र की जनता को पता रहता है कि हमारे नेताजी ने पिछले ५ साल में कितना विकास कर लिया. सत्ता सुख भोग रहे नेता जी को बेदखल कर मौका अपने हाथ में लेने के लिए सामने वाले में भी उतना ही दम चाहिए. इसलिए अब चुनाव मैदान में वे लोग उतर पाते हैं जिनमे अपने लोगों पर खर्च करने की कुव्वत हो. इलाके के लोग भी अब वैसे लोगों को सीरियसली नहीं लेते जिनके पास जमकर उडाने लायक पैसा नहीं हो.
मुझे याद है जब २ साल पहले मेरे गाँव में ग्राम प्रधान और ब्लाक प्रमुख के चुनाव हुए थे। तब उम्मीदवारों के घर में जैसे मेला लगा रहता था. आम दिनों में घर के आस-पास तक न फटकने वाले इलाके के लोग उनके आगे-पीछे ऐसे दिखने लगे थे जैसे उनसे कई पुश्तों की रिश्तेदारी हो. पडोसी होने के कारण हर गतिविधि पर नज़र हमेशा बनी रहती थी. तब उनके घर से आने वाली मीट और मशाले की खुशबु मुंह में पानी भर दिया करती थी. तब रोज सुबह उठकर दोनों घरो के बीच स्थित गढ्ढे में झांकना मैं नहीं भूलता था. देशी विदेशी शराब के खाली बोतल ऐसे पड़े रहते थे जैसे दीपावली के बाद पटाखों के कागज के टुकडे. शाम में जैसे ही अँधेरा होता लोग गमछे में कुछ छिपाकर ले जाते हुए दिखने लगते. दादाजी से पूछने पर पता चला लोग इन दिनों मुफ्त के मदिरे का जमकर लुत्फ़ उठा रहे हैं. दादाजी ने एक को रोक कर पूछा था भाई रोज खाने के समय से लेकर शाम तक यहीं दिख रहे हो वोट तो इन्हें दोगे न. ये जानकार कि हम ये बात हम किसी को नहीं बताएँगे उस आदमी ने धीरे से कहा---काहेका जब तक जहाँ से जो मिल रहा है ले लो. फिर कौन देखता है किसे वोट दिया. दुसरे उम्मीदवार के पीछे मिठाई के दुकान के बाहर क्या लाइन लगती थी. मिठाई वाले ने पूछने पर बताया था नेता जी ने कहा है चुनाव के दिन तक खाता चलाओ जिन्हें मैं कहूँ उन्हें ही देना और जिनके लिए कहने के बाद ना का इशारा करूँ उन्हें टरका देना. जनता भी कम चालाक नहीं है चुनाव हुआ और चालक जनता ने फिर इन दोनों नेता जी लोगों को टरका दिया. बाहरी उम्मीदवार जीत गया और दोनों की सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गयी. निचले स्तर का चुनाव था दोनों ने जमकर पैसे लुटाये थे. इस उम्मीद में कि जीतने पर सारा वसूल लेंगे.
4 comments:
जनसेवक राजा हुए रोया सकल समाज।
कैद में उनके चाँदनी, कोयल की आवाज।।
नेता और कुदाल की नीति-रीति है एक।
समता खुरपी सी नहीं वैसा कहाँ विवेक।।
जहाँ पे कल थी झोपड़ी देखो महल विशाल।
घर तक जाती रेल भी नेता करे कमाल।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
sandeep,aaj aapane mujhe ganv ke election ki yad dila di... kaha ke rahne wale hain aap?????
accha likha...
aapki lekhni mein naveenta aur maulikta hai.......likhna zaari rakhiye
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