Sunday 2 December 2007

माउस नहीं हुआ जैसे अल्लादीन का चिराग हो गया!

रोज इस तरह की कोई न कोई नई खबर देखने को मिलती है- माउस दबाइए ट्यूटर पाईये। माउस दबाये अपने ग्रुप का ब्लड पाईये। अब आप का मनपसंद साथी मिलेगा बस माउस को क्लीक करिये । इस तरह कि खबरें रोज अखबारों में, वेबसाइट्स पर और सड़क किनारे लगे इस्तेहारों पर हर जगह मिल जायेंगे । अब आप ही बताईये क्या ये सारी सुविधाएं मुफ्त में मिलेगी। अब इनके दावे देखने से तो ऐसा लगता है कि जैसे ये अल्लादीन का चिराग हों । आपने मसला और जिन हाजिर होकर बोलेगा क्या हुक्म हैं मेरे आका. मैंने जैसे ही उससे कहा कि कोई परी कोई हर मेरे सामने पेश कर और वो बस पलक झपकते ही लाकर किसी नाज़नीं को मेरे सामने हाजिर कर देगा।

ऎसी ही एक वेबसाइट पर देखा मैंने कि नए दोस्त पैयी। मैंने भी सोचा यार चलो कुछ नए लोगों से दोस्ती कर ली जाये । आजकल के जमाने मैं अच्छे दोस्त मिलते भी कहाँ हैं। भैया इसी जोश में मैंने उस वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन के लिए लगी फॉर्म को भर दिया। बस क्या था मेरे सामने एक बधाई पत्र तुरंत आ गया। उसमे मुझे बधाई देते हुए कहा गया था कि २४ घंटे के बाद आप नये दोस्तों से सम्पर्क कर सकेंगे । अगले दिन मेरे उत्साह का पारा नही था। पट से फिर उसी साइट पर आ गया. लोगिन की और नए लोगों कि लंबी लिस्ट हाजीर । कोई बोम्बे से तो कोई कोलकाता से। कोई मोस्को से तो कोई न्यूयॉर्क से। मेरी ख़ुशी और धरकन एक साथ तेज हो रही थी। मैंने सोचा जब मौका मिला है तो पट से एक लड़की को पत्र लिख ही दूँ , लेकिन ये क्या, इससे पहले कि मैं कुछ लिख पाता सामने सुब्स्क्रिप्शन कि लिस्ट आ गयी । उसमे मेंबर शिप के लिए शुल्क कि कई श्रेणियां थी । सआरी किम्तें डॉलर में थी। अपन लोग दोस्ती पर रुपया तो खर्च कर सकते नहीं अब डॉलर कौन करे। सो कर दिए बाय। लोग कहते हैं ना कि खोजने से तो भगवान् भी मिल सकता है । भैया लेकिन दोस्त पाने के लिए खोजने के साथ - साथ डॉलर का होना भी उतना ही जरुरी हो जाता है। अब जाकर समझ में आया अब वक्त बदल गया है और इसी कारन आजकल लोगों को अच्छे दोस्त नहीं मिल पा रहे हैं।

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