Tuesday 20 January 2009

लो आ गया आपका ओबामा...

बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए। शपथ ग्रहण के इस ऐतिहासिक अवसर पर वहां २० लाख से ज्यादा लोग जमा थे. इतना ही नहीं पूरी दुनिया टीवी के परदे पर ये घटना देख रही थी. बहुत कम ऐसे मौके होते हैं जब सभी समाचार चैनल एक ही चेहरा दिखा रहे होते हैं. लेकिन ओबामा उस समय हर टीवी चैनल पर दिख रहे थे.

केवल अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की उम्मीदों के बोझ तले दबे ओबामा काफी आत्मविश्वासी दिख रहे थे. ओबामा की यही बात दुनिया को पसंद आती है. ओबामा बोलता है और किसी भी समस्या पर मुस्कराते हुए जवाब देता है और उसका जवाब कभी भी थका-हारा नहीं होता है. ओबामा के अन्दर का यही युवापन दुनिया को भाता है और इसी कारण दुनिया आज ओबामा की दीवानी है. पूरी दुनिया के लोग ओबामा को ध्यान से सुनते हैं... यही है ओबामा जो दुनिया भर का न होकर केवल अमेरिका का है लेकिन उसने जो किया या फ़िर जो करेगा उससे दुनिया खुश है...यही उसपर दुनिया की उम्मीदों का बोझ भी बढाती है. लेकिन ओबामा जिस अंदाज में दुनिया से मुखातिब होता है वो अदा सभी को रास आती है..और सब ओबामा को इसीलिए अपना मानते हैं.

Saturday 10 January 2009

इस कलयुग में...सपना तो देख ही सकते हो!

हमारे यहाँ के एक पूर्व राष्ट्रपति ने एक किताब लिखी थी- सपनों की उडान। उन्होंने कहा कि इन्सान को सपने देखने चाहिए. हमारे देश के लोगों ने इसे अपनाया या नहीं ये तो नहीं मालूम लेकिन हमारी राजनीतिक बिरादरी ने इसे दिल से अपना लिया है. इधर राजनीतिक बिरादरी के लोगों के लिए दो सपने सबसे ज्यादा आम हो गए हैं. जब से देश में गठबंधन राजनीति का जमाना आया है तब से सब प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देखने लगे हैं. यहाँ तक कि १०-२० सीटों के स्तर तक सीमित रहने वाले दल के नेता भी ये मानकर चलते हैं कि कभी न कभी उनकी लॉटरी लग सकती है. इसलिए सब अपने ज्योतिष से ये पता करवाने में जुटे हुए हैं कि उनकी कुंडली में इसका योग कब का बन रहा है.

इसमें सबसे ज्यादा मारामारी प्रधानमंत्री पद के लिए मची हुई है। जब से देश में चुनावों का मौसम शुरू हुआ है सब ख़ुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार पेश करने में लग गए हैं. सबसे पहले लौह पुरूष ने इसमें बाज़ी मारी. जैसे ही उनके लिए रास्ता साफ़ हुआ उन्होंने इसकी घोषणा करने में देरी नहीं की. जैसे ही उनके राह के कांटे हटे उन्होंने तुंरत अपने दल को राजी कर और सहयोगियों को भी साथ लेकर -पीएम इन वेटिंग- घोषित करवा लिया और निकल पड़े दिग्विजय यात्रा पर. लेकिन ये उन्ही के दल के कुछ लोगों को रास नहीं आया और इससे पहले कि उनका कुछ होता उन्होंने पार्टी के सबसे बुजुर्ग सदस्य को ये कहते हुए खड़ा कर दिया कि वे सबसे बुजुर्ग हैं इसलिए पहले इस पद पर दावा उन्हीं का बनता है. पार्टी अब जनता की समस्याओं पर क्या ध्यान देती ख़ुद अपनी अंदरूनी लड़ाई में सब भिड गए.

दूसरे दल के लोग भी क्यूँ चुप रहते। उन्हें भी इस बात की जल्दी थी कि कब ये पद परिवार के भविष्य के हाथों सौंप दें और दुनियादारी से मुक्त हो जायें। इसी उधेड़-बुन में वे कई बार वे भी बोल जाते हैं जिसे बोलने के लिए बाद में उन्हें पछताना पड़ता है। लोग नई पीढी को सत्ता सौपने की भविष्यवाणी करने को इतने लालायित रहते हैं जैसे वे इसी काम के लिए यहाँ रुके हुए हैं और इसे पूरा करते ही उनको इस कलयुग से छुटकारा मिल जाएगा.

प्रधानमंत्री पद पर आने के लिए अपनी बहनजी भी कम सपने नहीं सजाये हुए है। बल्कि यूँ कहे तो वे इसके लिए इतनी जल्दी में हैं कि सम्भावना ऐसी बन रही है कि अगली सरकार किसी की भी बने बहन जी दिल्ली की सत्ता तक पहुँच बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ने वाली हैं. ऐसा नहीं है कि बहती गंगा में हाथ धोने का सपना केवल उनका है. उनके जैसे जितने भी प्रादेशिक छत्रप हैं वे भी मन ही मन में ये सपना पाले बैठे हैं और अपने ज्योतिष से लगातार संपर्क बनाये हुए है. देखते हैं इस घोर कलयुग में किस-किस के सपनो को पंख लग पाते हैं.

इधर सपने पूरे होने के लिए सबसे उपयुक्त जगह(हॉट फेवरेट) मानी जा रही है--झारखण्ड. वहां आजकल सत्ता का जैसा लॉटरी सिस्टम चल रहा है उसमें कोई नहीं कह सकता कि कब उसकी किस्मत चमक जाए और वो राज्य के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो जाए. वहां तो सबसे फायदेमंद है निर्दलीय विधायक बनना. जबतक सरकार को विश्वासमत साबित करना है तबतक उसे मुफ्त में किसी राज्य की यात्रा करने का मौका मिल सकता है और फ़िर सरकार बनने पर मंत्री पद पक्का. और अगर आप कलयुग के सही बन्दे हैं तो फ़िर कुछ महीनों में पाला बदलकर अपनी किस्मत फ़िर से चमका सकते हैं...मतलब आपको अपने सपनों को अगर साकार करना है तो झारखण्ड की यात्रा सबसे फायदेमंद रहेगी...

Friday 9 January 2009

"राजनीति" ऐसी कि सिर शर्म से झुक जाए...

बहुत शान से हम कहते हैं कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दर्जा रखते हैं। इतिहास की किताबों के आधार पर तो हम सबसे पुराने लोकतंत्र होने का भी दावा करते रहते हैं...ईसा के जन्म के आस-पास यानी कि जब बाकी की दुनिया सभ्य भी नहीं हो पाई थी। इसी तमगे के साथ हम ये दावा करते रहते हैं कि हमें कुछ भी करने और कहने का हक़ है। आम आदमी के लिए ऐसा नहीं हैं लेकिन देश के विशिष्ट लोगों(यानि कि नेता बिरादरी के लिए) के लिए ऐसा है। उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त है। वो कुछ भी बोल सकते हैं और कुछ भी कर सकते हैं. यहाँ मैं अपने देश के दो शीर्ष नेताओं के हाल के कारनामों की चर्चा करना चाहूँगा.

एक हैं हमारे गुरूजी। सच कहाँ जाए तो उन्होंने एक राज्य को जन्म दिया. उसकी स्थापना के लिए उनके द्वारा उठाई गई आवाज आखिरकार मान ली गई लेकिन उन्हें सत्ता का मोह छू गया. कई सालों तक जी-तोड़ मेहनत के बाद उन्हें सत्ता तो मिली लेकिन इसके पहले कि वे सत्ता सुख उठा पाते उस राज्य की कृतघ्न जनता ने उन्हें विधायक के पद से भी महरूम कर दिया. अब आप ही बताइये कि जब गुरूजी विधायक ही नहीं रहे तो राज्य का सदर कैसे बने रह सकते थे. क्या गुरूजी को इतना छोटा सम्मान देने लायक भी नहीं समझना चाहिए था. आखिरकार गुरूजी भी उस राज्य कि जनता के गुरु ठहरे. उन्होंने भी कह दिया कि कोई बात नहीं इस हार ने मुझे प्रायश्चित करने को प्रेरित किया है और अब वे दुबारा चुनाव लड़कर ये पूरा करेंगे. अब गुरु तो गुरु ही ठहरे. जिसने उनसे बेवफाई की उसे सबक तो सिखायेंगे ही.

हमारे यहाँ एक ऐसे ही महान नेता हैं। राजनीतिक गलियारे में उन्हें बड़ी तेजी से संकट मोचन के रूप में पहचान मिलती जा रही है. हाल में जब दिल्ली में पुलिस के साथ मुठभेड़ में कुछ आतंकवादी मारे गए तो उस महान नेता ने अपने दौरे में कहा कि पुलिस निर्दोष लोगों को फंसा रही है. पुलिस को पहले जांच करनी चाहिए फ़िर दोषियों को पकड़ना चाहिए. ऐसे ही हाल में नोएडा में एक एमबीए की छात्रा के साथ गैंग रेप होने पर जब स्थानीय लड़के पकड़े गए तो नेताजी वहां के लोगों के समर्थन में प्रदर्शन करने पहुँच गए और कहा कि पुलिस निर्दोष लोगों को सता रही है और दोषियों को बचाने का प्रयास कर रही है.

हम आख़िर कह भी क्या सकते हैं. नेताजी विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति हैं और दुनिया के सबसे बड़े और शायद सबसे पुराने लोकतंत्र के सम्मानित नागरिक भी हैं. अगर उन्होंने कहा है तो सही ही कहा होगा.

Tuesday 6 January 2009

आतंकियों से कड़ी सजा मिलनी चाहिए रेपिस्टों को...

कल राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा शहर में एक घटना घटी। दिल्ली की रहने वाली एक युवती वहां अपने मित्र के साथ घुमने गई थी. वहां कुछ लड़कों ने (मैं शायद ग़लत हूँ क्यूंकि उन्हें लड़का कहना ग़लत होगा-क्यूंकि लड़के किसी के भाई होते हैं या किसी के बेटे) उसे अगवा कर लिया. उसे उसी के कार में उठा ले गए और चलती कार में उसके साथ उन्होंने बलात्कार किया. वो लड़की युवा थी और एमबीए की छात्रा थी. इस अपराध में शामिल कुछ लड़के पकड़े भी गए हैं और शायद उन्हें सजा भी मिल जाए. लेकिन इससे इस समस्या का कोई हल होता हुआ नज़र नहीं आता. वे लड़के कौन थे मुझे नहीं मालूम लेकिन क्या इनके इस करतूत से उस परिवार की बदनामी नहीं होगी जिनके ये सपूत रहे होंगे और जिस परिवार ने इन सपूतों के जन्म पर मिठाइयां बांटी होगी. अब मजबूरी में वे परिवार अपनी बदनामी का दाग धोने में लग गए होंगे और कुछ इस मामले को दबाने में भी.


ऐसा नहीं है कि दिल्ली और आस-पास के शहरों में ये इस तरह कि कोई पहली घटना है. ऐसे मामले यहाँ हमेशा होते रहते हैं. ऐसे सपूत पता नहीं कितने घरों ने पैदा किए हैं. कितने ऐसे सपूत अपनी जिंदगी जेल में काट रहे हैं और कई अपने सुकर्मों की सजा काटकर वापस फ़िर से अपने परिवार का नाम रोशन करने के लिए लौट आयें हैं. और ऐसा भी नहीं है कि आगे से ऐसे सपूत सामने नहीं आएंगे. बलात्कार के आरोपियों को कड़ी सजा देने की मांग न जाने कितने समय से हो रही है. लेकिन ये सब किताबी बातें हैं और किताबों में ही सिमट कर रह गई है और अगर ऐसा करने वालों को सजा मिली भी तो बाकी लोगों को इससे रोकने में शायद ही कामयाबी मिल पाई. सच कहें तो ऐसे लोग देश के लिए आतंकवादियों से भी ज्यादा खतरनाक हैं. आतंकवादियों के लिए पोटा और अन्य कानून बनने की मांग करने वाले इस देश में इन सपूतों के लिए भी कड़े कानून की जरुरत है ताकि ये किसी की जिंदगी तबाह न कर सकें और अगर ऐसी गलती कर भी दे तो फ़िर से आजाद होकर जीने की उम्मीद न कर पायें. ताकि ये किसी के लिए खतरा नहीं बन सकें और अपने परिवार के मुंह पर कालिख न पोत पायें...

Sunday 4 January 2009

सरकार का मतलब कोई इस्राइल से सीखे...

इस्राइल ने हमास के खिलाफ जमीनी लडाई छेड़ दी है। उसके टैंक और बख्तरबंद गाडियां गाजा पट्टी में घुस गई हैं और जमकर हमास पर निशाना लगा रही है. अब जाकर दुनिया को बेचैनी हुई है. अधिकांश राष्ट्र इस्राइल को लडाई रोकने को कह रहे हैं. लेकिन इस्राइल वही कर रहा है जो उसे करना चाहिए. इसराइल के रक्षा मंत्री एहुद बराक ने कहा है कि हमास बड़ी तैयारी के साथ है और इससे निपटने के लिए संघर्ष लंबा चल सकता है. उन्होंने कहा कि हमास ने इसके सिवा कोई और विकल्प नहीं छोड़ा है. एहुद बराक ने कहा कि उनका देश युद्ध नहीं चाहता है लेकिन "अपने नागरिकों को हमास के रॉकेट हमलों के लिए नहीं छोड़ सकता."

बिल्कुल हर देश और उसके नेतृत्व में यही जज्बा होना चाहिए. सरकार और व्यवस्था इसीलिए होती है कि वो अपने लोगों को सुरक्षित रख सके. हमारे देश का नेतृत्व शान्ति और अहिंसा के नाम पर देश को डरपोक बनने में ही लगा रहता है. मुंबई में हमले हुए सवा महीने हो गए...लेकिन कुछ नहीं हुआ. इसके पहले भी दर्जन भर शहरों में धमाके हुए लेकिन कहीं कुछ ऐसा नहीं हुआ कि आगे से इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके. इस्राइल इस तरह की नीति को नहीं अपना सकता और उसने अपने नागरिकों की रक्षा के लिए खुली लड़ाई का विकल्प चुना है. भारत जैसे डरपोक देश उसे भी ऐसा करने से रोकने के मिशन पर लगे हैं....जबकि दुनिया भर जनता और सरकारों के सामने ये एक उदहारण की तरह है कि किसी सरकार को अपने नागरिकों की रक्षा के लिए क्या करना चाहिए। दुनिया को इससे कुछ सीखना चाहिए...न कि ऐसा करने वालों को रोकना चाहिए.

Saturday 3 January 2009

इस्राइल गाजा में हमला तुंरत रोके- भारत...

एक ख़बर छपी थी जिसे देखकर काफ़ी हैरानी हुई। ख़बर इस तरह से थी- इस्राइल की सैन्य कार्रवाई के कारण गाजा में प्रभावित लोगों के लिए भारत 10,00,000 डॉलर (लगभग 4.84 करोड़ रुपये) की सहायता देगा. इतना तक तो ठीक था लेकिन हैरानी वाली बात ये थी कि इसके साथ ये भी छपा था कि भारत ने इस्राइल द्वारा की जा रही कार्रवाई को तुरंत स्थगित करने की मांग की है ताकि शांति प्रक्रिया फिर से शुरू की जा सके। दरअसल फिलिस्तीनी संगठन हमास के खात्मे के लिए इस्राइल की कार्रवाई पर भारत को आपत्ति है. इस लड़ाई में अब तक ४२० लोग मारे जा चुके हैं. भारत को वहां शान्ति प्रक्रिया बहाली की चिंता है. भले ही मुंबई में हमलों के बाद उसने पाकिस्तान के साथ शान्ति प्रक्रिया को रोक दिया हो. भले ही भारत में लगातार आतंकी हमला जारी हो और उसे रोकने के लिए कोई कुछ भी नहीं कर पा रहा हो. लेकिन उसे इस्राइल द्वारा की जा रही कारर्वाई खटक रही है.

अब आइये जरा भारत और इस्राइल की नीति पर गौर किया जाए। मुंबई में आतंकी हमला हुए करीब सवा महीने हो गए हैं. आतंकवादियों ने पहली बार भारत के किसी शहर में इस तरह से मौत का तांडव किया. हर बार की तरह इस बार के हमले के बाद भी हमारे राजनीतिक नेतृत्त्व ने कड़ी कार्रवाई का दम भरा. भारत के समर्थन में अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई अन्य देश बयानबाजी अभियान में लग गए. पाकिस्तान ने किसी का दबाव नहीं माना और तमाम अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबधताओं का वास्ता देने के बावजूद अबतक उसने किसी आतंकी पर कोई कार्रवाई नहीं की. भारत कहता रहा की जिन आतंकियों ने मुंबई हमलों की प्लानिंग की उन्हें सौंप दो. पाकिस्तान कहता रहा कि हम भारत के किसी भी हमले का जवाब देने को तैयार हैं और पाकिस्तान की जनता इस लडाई में सरकार के साथ है. यहाँ तक कि हमले में शामिल एकमात्र आतंकी कसब को पाकिस्तानी मानने से ही उसने इंकार कर दिया. भारत कहता रह गया यहाँ तक कि पाकिस्तान की मीडिया में आई रिपोर्ट को भी वहां दबा दिया गया और अमेरिका समेत तमाम बयानबाज भारत की मांग नहीं मनवा सके. इतने दिन से भारत केवल पाकिस्तान के खिलाफ बयानबाजी कर रहा है और न तो आतंकी हमले रुके हैं और न आतंकी ठिकानों पर कोई कारर्वाई हुई है. इधर सुना है कि पाकिस्तान के खिलाफ कारवाई करवाने के लिए भारत कि ओर से सबूत दिखाने गृह मंत्री महोदय अमेरिका जा रहे हैं. इन्हे लगता है कि ऐसा करके अमेरिका से पाकिस्तान पर दबाव बनवाएँगे. साल की पहली तारीख को भी जब असम में धमाके हुए तब भारत ने कड़ी कारर्वाई का वादा दोहरा दिया और कहा कि इसमें कुछ स्थानीय आतंकियों का हाथ है और इन्हे बांग्लादेश में पनाह मिल रही है. साथ कि कहा गया कि हमें उम्मीद है कि बांग्लादेश कि सरकार अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं होने देगी.

दूसरी तरफ़ आतंकी लोगों के खिलाफ कारर्वाई कर रहे इस्राइल को भी भारत रोकने का प्रयास कर रहा है. मतलब कि भारत चाहता है कि उसी की तरह इस्राइल भी हमेशा मार खाकर दूसरो से बचाने की गुहार करता रहे. इतना ही नहीं जिस अमेरिका को भारत अपना आदर्श मानता है उसने भी ९-११ के बाद आतंकियों के गढ़ में घुसकर ऐसा प्रबंध किया ताकि आतंकी उसके घर तक नहीं घुस सके और अपने मांद में ही मरते-खपते रहें. लेकिन हम्मे बयानबाजी के सिवा कुछ करने कि अगर छमता होती तो हम भी आतंकी हमलों से सुरक्षित होते और पाकिस्तान को ही उसके घर में उलझा कर रखते. वैसे भी अगर भारत चाहे तो पाकिस्तान में इतने सारे मसले है कि वो वहीँ पर उलझा रहेगा और किसी और देश में अशांति फैलाने का कभी प्रयास ही नहीं करेगा. आज शिमला में एक कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति और मिसाईल मैन कलाम ने भी आतंकी ठिकानों को नष्ट करने पर जोर दिया और कहाँ कि देश के अन्दर और बहार मौजूद आतंकी तत्वों पर हमला करना ही एकमात्र विकल्प है. जाहीर सी बात है कि अगर कोई अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है तो उसके सामने अपना राग गाने का कोई फायदा नहीं है और उसे सबक सिखाना ही होगा. आप ऐसा नहीं कर सकते तो कम से कम दूसरो को कायर बनने को तो मत कहिये...