Friday, 23 November 2007

क्यों कट्टरपंथियों के निशाने हैं तस्लीमा

२१ नवम्बर कि सुबह कोलकाता की सड़कों par पत्थरबाजी हो rahi थी। अल इंडिया मईनोरिटी फोरम ने ३ घंटे का बंद बुलाया था। अचानक कुछ लोगों ने पुलिस वालों पर बोतलों, पत्थरों और तलवारों से हमला कर दिया। ४० से ज्यादा लोग घायल हुए। कई इलाकों में कर्फू लगाना पडा। बंद करने वाले तस्लीमा नसरीन कि वीजा अवधी बढाये जाने, नंदीग्राम में मुसलामानों की हत्या और रिज्वानुर मामले में कोलकाता पुलिस कि भूमिका का विरोध कर रहे थे। जाहीर था कि बहुसंख्यक जनता भी सड़क पर उतरती, किसी भी समाज में कोई भी बहुसंख्यक समुदाय किसी कि गुंडागर्दी बर्दास्त नहीं कर सकता। लोग सड़कों पर उतरे और कोलकाता में दंगा-फसाद शुरू हो गया।

अब आते हैं तस्लीमा के मामले पर। भारत में निर्वासन में रह रहीं विवादास्पद बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को पश्चिम बंगाल से हटाकर राजस्थान ले जाया गया है। गुरूवार की सुबह केंद्र सरकार के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने कोलकाता में तस्लीमा नसरीन से मुलाक़ात की और उनसे कहा कि कोलकाता में हुई हिंसा के बाद सुरक्षा की दृष्टि से उनका पश्चिम बंगाल में रहना ठीक नहीं है।

वे पहले कोलकाता छोड़ने को तैयार नहीं थीं लेकिन बाद में जब सुरक्षा की चिंताओं के बारे में उन्हें अवगत कराया गया तो वे भारत में कहीं और जाने को तैयार हो वे जयपुर पहुँच चुकी हैं और उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त प्रबंध किए गए हैं, उन्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा दी जाएगी.
तस्लीमा नसरीन का वीज़ा अगले वर्ष मार्च महीने तक वैध है और वे तब तक भारत में रह सकती हैं लेकिन उसके बाद उनके वीज़ा का नवीनीकरण होगा या नहीं, इस पर प्रश्नचिन्ह बना हुआ है।

विवाद कोलकाता में स्थिति बुधवार को तब बिगड़नी शुरू हो गई थी जब तस्लीमा नसरीन की वीज़ा अवधि बढ़ाए जाने के विरोध में प्रदर्शनकारी उग्र हो गए।
कई सार्वजनिक वाहनों को आग लगा दी गई और पुलिस के साथ कुछ स्थानों पर झड़पें भी हुई।

स्थिति बिगड़ती देख राज्य सरकार को कोलकाता के संवेदनशील इलाक़ों में सेना तैनात करने का आदेश देना पड़ा। माइनॉरिटी फ़ोरम के लोग बांग्लादेश की लेखिका तस्लीमा नसरीन को भारत से तुरंत बाहर निकाले जाने की माँग कर रहे हैं।

लेफ्ट की सरकार ने तस्लीमा मामले पर विरोध को जिस तरह से तवज्जो दी है वही इस विवाद कि जड़ है।। तस्लीमा के लेखन से कट्टरपंथी लोगों को अपनी सच्चाई सामने आने कभी रहता है। इस कारन वे अबतक तस्लीमा कि लेखनी को इस्लामी समाज के लिए खतरा बताते आये हैं. अब जरुरी है कि भारत का बुद्धिजीवी तबका तस्लीमा के पक्ष में खुलकर सामने आये और तस्लीमा का यहाँ रहना सुनिश्चित कराये।

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

आपका आलेख जरूरी था। लगता है आप कलकत्ता से हैं। मैं ने नन्दीग्राम में पिछले एक वर्ष में वास्तव में क्या हुआ है यह पता करने का प्रयास किया। किन्तु सही और पूरी रिपोर्ट कहीं से भी नहीं मिली। यदि इस पर कोई तथ्य परक रिपोर्ट बना सकें तो उसे अपने ब्लॉग पर दें।

अनुनाद सिंह said...

भाई आप लिखते मस्त हैं। पर इस पोस्ट में आपसे शिकायत ये है कि इसमें आपने समाचार को ज्यादा परोसा है, विष्लेषण नहीं के बराबर है। समाचार तो चारो तरफ से रात-दिन मिलते रहते हैं, लेकिन एक अलग दृष्टि से किया गया विष्लेषण और समस्या का सम्भावित समाधान प्रस्तुत करना मायने रखता है।


बंगाल में जिस तरह कामरेडों ने अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिये बंगलादेशियों को पोषा, अब उसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।