Thursday 31 May 2007

जाने क्या होगा रामा रे

अपने देश की हालत भी ऐसी ही हैं कुछ हुआ लोग सडको पर उतर आये, पुलिस से भिड़ गए और कर दिया आम लोगो कि जिंदगी का कबाडा । सड़क जाम, धरना-प्रदर्शन । अब जाये लोग ऑफिस ।

मैं सुबह दफ्तर के लिए निकला था और जैसे ही दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर मेरी बस्स पहुंची कि अचानक ट्राफिक जाम की खबर मिली । सामने उतर कर मैंने देखा की गाड़ियों कि लंबी लाइन हुई थी । पूछने पर पता चला कि गुर्जर समाज के लोग आरक्षण के लिए सड़क जाम किये हुए है। असल मामला राजस्थान से शुरू हुआ है जहाँ गुर्जर समाज के लोग अपने समुदाय को अनुसूचित जात में शामिल करने कि मांग कर रहे है । इस लडाई मे राजस्थान में कुल १६ लोग मारे गए ।

असल लडाई यहाँ गरीब तबको को आरक्षण के नाम पर मिल रही मलाई में अपना हिस्सा हथियाने को लेकर है । इस नाम पर इतनी सारी सुविधाये मिल रही है कि सभी अनुसूचित बन्ने की लडाई में लग गए है ।

पता नही अब तक तो ये लड़ाई पिछड़ी जातियों में ही है लेकिन मलाई खाने का ये चस्का कहीँ इसी तरह बढती गयी तो कल को सवर्ण जातियाँ भी खुद को आरक्षण के दायरे में लाने के लिए लडाई छेड़ देगी, शायद अब जाकर बाबा साहेब का सपना सच होता हुआ दिख रह है , सभी जातियाँ एक धरातल पर आने को तैयार दिखने लगी है । देखते है कैसी तस्वीर बनती है ....जाने क्या होगा रामा रे ....

Tuesday 29 May 2007

जॉगर्स पार्क से चीनी कम तक

भारतीय फिल्म जगत ने अपने दर्शकों को जोगेर्स पार्क फिल्म दिखायी थी जिसमे एक अवकाश प्राप्त जज को एक जवान मॉडल के प्रेम में फंसते दिखाया गया था । कई लोगों ने इस फिल्म को सराहा भी लेकिन ये जो सिलसिला शुरू हुआ वो अब चीनी कम तक पहुंच चुका है जिसमे ६४-३४ के प्रेम को दिखया गया है । मैंने फिल्म तो नही देखा है लेकिन प्रोमो में देखा है , ६४ साल के अपने नायक जी ३४ साल कि लडकी के बाप जिसकी उमर ५५-६० का आसपास दिख रही है से बाथ रूम में कहते है "मई आप कि लडकी से शादी करना चाहता हूँ " लडकी का बाप ऊपर देखता है और होश फाख्ता हो जाते है । ये तो रही रील लाइफ कि बाते , इसी बिच रियल लाइफ में भी कई ऐसे पत्र आये जो प्रेम के नाम पर मशहूर होते रहे ।

रियल लाइफ के प्रेम में सबसे मशहूर हुए पटना के प्रोफेसर मत्तूक नाथ चौधरी । वो इतने मशहूर हो गए कि जब भी प्रेम से संबध कोई भागा-भागी का मामला सामने आता है तो टीवी वाले तुरंत उनसे सम्पर्क करते है और विशेषज्ञ कमेंट लेने के लिए । ऐसे मामले क्या सामने आने लगे चैनल वालो ने शाम ५ बजे का टिम तो जैसे प्यार और भागा-भागी के किस्सो के लिए ही फ़िक्ष् कर डाला । दोनो पक्षो के लोगों को टीवी पर लाकर उनके इज्जात कि छीछालेदर करना शुरू कर दिया ।

इधर अपने फिल्मी निर्माताओं ने भी लीक से हटकर फिल्म बनाने के नाम पर जोगेर्स पार्क , उप्स , निशब्द और अब चीनी कम जैसी फ़िल्में आने लगी । इनमें दिखाया गया कि प्रेम के बिच कोई सीमा नही होती । सब के सब लीक से हटकर ।

Saturday 26 May 2007

'सामाजिक जवाबदेही का मतलब आरक्षण नहीं'

" प्रधानमंत्री कह रहे थे कि उद्योग जगत अपनी सामाजिक जवाबदेही निभाए, वो गरीब और पिछड़े तबको के लिए अपने यहाँ प्रतिनिधित्व बढाए "
जाहीर है प्रधानमंत्री का इशारा आरक्षण कि ओर ही था , जाहीर है इंडिया शाईनिंग की रीढ़ बने भारतीय उद्योग जगत को हत्थे से उखरना ही था । उसने साफ किया कि 'सामाजिक जवाबदेही का मतलब आरक्षण नहीं' ।

उद्योग जगत ने इसके लिए "अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए सकारात्मक पहल" नाम से योजना शुरू कि है जिसमे निजी छेत्र में पिछ्डो का प्रतिनिधित्व बढाने के उपाय लिए जायेंगे ।

मेरे एक मित्र आज बडे उदास थे पूछने पर बताया कि नाहक कि ये उद्योग जगत सरका को उकसा रही है , भैया ऐसा मत कहो नही तो हमारे आरक्षण मंत्री जी(कोटा मिनिस्टर) नाराज हो जायेंगे और कोई कानून बनाकर निजी छेत्र में भी आरक्षण लागू करवा देंगे ।

अब का है भैया कि वो तो होगा ही क्योकि वोट लेना है तो लोली पॉप तो थमाना ही होगा ।

Wednesday 23 May 2007

शनि तेरी महिमा अपरम्पार

शनि कि माया दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है , यहाँ के लोग जैसे-जैसे सम्पन्नता कि ओर बढते जा रहे है शनि और ग्रहो के प्रकोप से उनमे दर भी बढ़ता ही जा रहा है । जब मई पहली बार देल्ही आया था एक छात्र के रूप में कोई परीक्षा देने के लिए । अपने एक रिश्तेदार के याहा ठहरा हुआ था, एक दिन अचानक दरवाजे पर आकर किसी ने जोर-जोर से आवाज़ लगाना शुरू कर दिया, घर के लोग गए और सरसो का तेल और कुछ पैसे एक डब्बे में डाल आये , मेरे पूछने पर उनका जवाब था कि शनि भगवान् है और हर शनिवार को ये टेल लेने आते है । बाद में मई जब यहाँ दिल्ली में घूमने लगा और खुद रहने लगा तो मुझे असली सच्ची पता लगी । यहाँ के शनि भगवान् के नाम पर 'शनि भगवान् लोग' हर शनिवार को सभी घरो से तेल वसूलते है , सभी घरो पर ये नीबू और मिर्ची तन्गते जाते है ।

बहुत सारा तेल जमा कर ये लोग गरीब इलाको के दुकानों में जाकर शाम को ये तेल बेच आते है , और वहा कि गरीब जनता इसी खुले तेल को (जो कई घरो के तेल से मिलकर बाना होता है) खरीदती है ।

शनि कि माया से सब खुश , आमिर और खाते पिटे लोगो के घर में शनि के आने पर नीबू और मिर्ची रोक लगाएँगे और आम लोगो के घरो में शनि के नाम पर इकठ्ठा किया गया तेल पहुंच कर शनि को आने से रोकेगा ।

बडे बेआबरू होकर तेरे कुचे से हम निकले

" तू है तो सबकुछ है और तू नही तो कुछ भी नही" कि तर्ज़ पर आजकल हमारे युवा भाई लोग कुछ ज्यादा ही रोमांटिक होते जा रहे है । सड़क पर कोई लडकी क्या देखी हो गए लट्टू और जब होश आया तो घिरे पडे है भीड़ से ।

आज सुबह हम बस्स स्टैंड पर खडे थे और अचानक पीछे से आयी आवाज़ ने ध्यान खिंचा । एक पतला-दुबला नौजवान लोगो से घिरा था और लोग उसपर थप्पर बरसा रहे थे । हुआ ऐसा था एक २८-२९ वर्ष कि कन्या पुरे आधुनिक लिबास में बस के इंतज़ार में खडी थी इतने में एक साइकिल सवार भाई साहब आये और कह बैठे "माल लग रही हो" उन भाई साहब को इसका अंदाजा नही था कि वो कन्या उन्हें घेर लेगी , बगल से एक भाई साहब और जा रहे थे कुछ अजीब सा हेयर स्टाइल सिर पर लादे हुए । दौर परे और लपक लिया उस साइकिल सवार को । अब एक तरफ से भाई पद वो कन्या छाते से वार कर रही थी और दुसरी ओर से वो भाई साहब । उस बेचारे लड़के कि हालत तो बड़ी ही अजीब हो गयी थी । इश्क्गिरी के फिराक में भाई साहब सरेआम पिटे ।

Tuesday 22 May 2007

'मशीन पिर्ची नही देगी' हिंदी कि ऐसी-तैसी

सुबह-सुबह एटीएम मशीन तक पहुंचा । सामने एक पर्ची लगी थी जिसको मैं अक्षरश यहाँ लिख रहा हूँ ।
" एटीएम में पिन्ट आउट हो गया है मशीन पिर्ची नही देगी - थैंक यू "

आप सोच सकते है हमारी हिंदी भाषा कहा तक विकास कर चुकी है । वैसे इसका सारा श्रेय हमारी टीवी को है । अब तो इसने मुम्बईया हिंदी को हमारे युवा पीढी के जबान पर ला ही दिया है । कल बाज़ार में घूम रहा था अचानक तेज़ी से उभरी आवाज ने उधर खिंच लिया करीब १०-१२ साल का एक लड़का जोड़-जोड़ से आवाज दे रहा था " आंटी तू जाता किधर है, पुदीने वाला इधर है"

भैया अब हम का कहे अब आप ही लोग तय करो कि हम कैसी हिंदी सीखते जा रहे है । ये केवल पुदीने वाले या उस बैंक के एटीएम तक ही सीमित नही रह गया है बल्कि हमारी रोज कि जिंदगी में शामिल होता जा रहा है ।

Monday 21 May 2007

हर फिक्र को हंसी में ही मिला दिए

कमोबेश रोजाना ही ऐसा होता है कि जब मैं खबरों कि तलाश में में खबरिया चैनलों पर पहुँचता हु तो वहा कोई ना कोई हँसी का सुरमा ठ्हहाके लगाते और तालिया पिटवाते मिल जाता है । कही 'हसोगे तो फसोगे' तो कही कुछ और जहा देखो दिनभर लोग हसते रहते है । और सन्डे को तो अति ही हो जाती है ।

ऐसा हो भी तो क्यों नही , हमारे देश में कभी सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती थी राजनितिक खबरों को । आज राजनीति में जामे हमारे सूरमाओं ने ऐसी हालत कर रखी है की लोग राजनीती और नेताओ का नाम सुनते ही ऐसे मुँह बिच्काते है जैसे मिर्ची लग गयी हो ।

लोगो में तस्ते में आये इसी बदलाव का ही परिणाम है की गम्भीर राजनीतिक मस्लो पर लिखने वाले हमारे लेखक या तो बाज़ार से बहार होते जा रहे या फिर वो भी क्रिकेट और खाना जैसे मुद्दों पर लिखने लगे है । एक दिन बातचीत के दौरान एक विख्यात लेखक ने दबे शब्दो में ही सही लेकिन अपनी इस चिन्ता पत्रकारो कि टोली में रख ही दी ।

अब लोग क्या करे राजनीति और राजनेता से उनकी अब कोई उम्मीद तो रही नही सो हसी में ही अपने सारे गमो को मिटाने कि जुग्गत लगाने कि आदत डालने लगे है लोग ।

Saturday 19 May 2007

क्या होगा धन्नो का

कल टीवी पर देख रहा था अपनी धन्नो को किसी न्यूज़ चैनल पर । बहुत बदल गयी है अपनी धन्नो , थोड़ी दुबली-पतली और नखरीली लग रही थी । काफी बदल है अपनी, शोले में देखा था तब तो बड़ी गद्रिली सी थी कल तो वो बड़ी सलीम-ट्रिम दिख रही थी । अब अच्चा ही है अगले चुनाव में चम्बल वाले ले जायेंगे चुनाव प्रचार के लिए । अपनी सेलिना जेटली और करीना कपूर से कम भीड़ थोदेही खिंचेगी धन्नो ।

अब किसे याद थी धन्नो । हम तो बहिया भूल ही गए थे अपनी धन्नो को । वो तो अचानक टीवी वालों ने दिखा दिया वरना हमे कहा याद आता । अब अपने गब्बर सिंह जी तो रहे नही, अपने वीरू भई तो राजनेता हो लिए, अब उन्हें जेल जाने का कोई खतरा तो रहा नही , और अपने बडे भईया जे पाजी की दुकान भी अच्छी चल निकली है तो भैया रह गयी थी बस धन्नो । तो अब टीवी वालों ने उसे भी भले काम पर लगा ही दिया है । वरना अपनी मौसी तो इसी फिक्र में मे मरी जा रही थी कि क्या होगा उसकी धन्नो का..

Friday 18 May 2007

विवाह के नेक काम में लगे कबूतरबाज़

अपने सांसद कटारा भाई जबसे कबूतरबाजी में पकड़े गए है तभी से हमारे कबूतरबाज़ भाई लोगों से जुडे और देशो के कबूतरबाज़ भाई लोग पकड़े जाने लगे है । आज ही कोई खबर पढ़ रह था जिसका शीर्षक था 'कनाडा में विवाह घोटाले का खुलासा' । ये भाई लोग करते क्या थे कि पंजाब वगैरह में फर्जी शादियाँ कराकर यहाँ से लोगों को कनाडा पहुँचाने का काम करते थे । अब भाई अपने कटारा भई तो जेल में है अब कोण लोग पैदा हो गए जो उनकी सल्तनत में दखल देने कि फिराक में है ।

भईया अब ये तो अच्छी बात नही है, अपने कटारा भाई चाहे जेल में ही रहे अपने देश कि डॉन कि गड्डी पर तो वही बैठे रहेंगे । अगर कोई और ऐसा करने कि सोचेगा भी तो उसे सजा जरूर दी जायेगी.....

क्या होगा कलाम के रोड़ मैप का ?

कमोबेश अब ये माना जा रहा है की कलाम राष्ट्रपति पद दोबारा नही स्वीकार करेंगे ओर अब नए उम्मीदवार की तलाश में जोड़-तोड़ शुरू हो चुकी है । सभी पार्टियाँ अपनी-अपनी सम्भाव्नाये तलाशने मे लग गयी है ।

आज अचानक विचार आया कि देश को लेकर कलाम ने जो रोड़ मैप दिया था 'विसिओं २०२०' उसका क्या होगा । हमने कलाम को अपने देश के सिर्ष पर बैठाने के बाद कभी उनकी काबिलियत ओर मंशा पर सवाल उठाते हुए नही देखा ओर अगर एक-आध लोगो ने उठाएँ भी तो किसी ने उसपर विश्वास नही किया । अखीर ऐसी कोण सी बात है कि ये संत इन्सान दुबारा वो पद लेने को तैयार नही दिख रहा है । कही अपनी राजनीती में पैठ बना चुकी गंदगी को देखकर ही तो कलाम इससे दूर भागना तो नही चाह रहे है ।

अगला कोई भी बने वर्तमान में हमे इस पद के लिए और कोई योग्य उम्मीदवार नही दिख रहा है, अगर कलाम इस बार इनकार करते है तो ये साफ दिख रहा है कि सभी दल किसी ना किसी को ये पद तौफे के तौर पर बांटने कि तैयारी में है । और अगर ये भी ना हुआ तो कोई ना कोई कार्ड चलेगा । फीर ऐसा क्यों ना हो कि देश का ये सर्वोच्च पद इस महान वैज्ञानिक के पास ही रहे ।

Tuesday 15 May 2007

'एक दर्ज़न नही तीन दर्ज़न मामलें है भाई'

मायावती उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री पद कि शपथ ले रही थी और शिन्घ्नाद कर रही थी उत्तर प्रदेश में जंगल राज ख़त्म करने का । करती भी क्यों नही पुरी बहुमत में जो आयी थी । अगले ही दिन कोई टीवी चैनल उनके मंत्रिमंडल में शामिल दागदार लोगो कि फेहरिस्त दिखा रह था इसी में एक मंत्री जी शामिल थे बादशाह सिंह नाम के । इनसे जब मीडिया वाले बात करने तो किसी मीडिया वाले ने उन्हें याद दिल्लायी कि आप पर तो एक दर्जन मामले दर्ज़ है उहोने तपाक से जवाब दिया ''एक नही तीन दर्ज़ां भाई'' ।

अपनी सफाई में वे यहाँ तक कह बैठे कि कभी-कभी सत्ता के दलालो को सबक सिखाने के लिए हमे कानून का उलंघन करना पड़ता है और ये सारे मामले इसी प्रकार के है ।

अब आप ही अंदाज लगा सकते है उत्तर प्रदेश के जंगल राज का और उसे मिटाने के नाम पर आयी माया राज का । अब भाई क्या होगा उत्तर प्रदेश का ये तो खुदा ही जाने जहा हर चेहरा हीं दागदार है ।

Sunday 13 May 2007

माया के आते ही मीडिया के सुर भी बदले

उत्तर प्रदेश में मायावती चौथी बार मुख्यमंत्री बन गयी है और एक बार फिर वहा के अपराधियों में हरकंप मच गया है । अपने उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का दावा करने वाले हमारे नेता जी कि टोली तो जैसे गायाब ही हो गयी है । जब मायावती कि ताजपोशी हो रही थी हमारे नेताजी को छोड़कर उस टोली का कोई भी नेता हाजीर नही था । अपनी मीडिया वालो कि भाषा भी बिल्कुल बदली हुई दिख रही है । चुनंव पूर्व तक मायावती कि चर्चा करने से भी कतराने वाली हमारी ये मीडिया अब माया के मायाजाल मे उलझी दिख रही है । उनके जन्म से लेकर पुरी उनकी जीवनी तलाशने में हमारे पत्रकार भई लोग मशगूल है ।

उत्तर प्रदेश की शान में हमेशा कशीदे गढने वाले हमारे बडे भईया और छोटे भईया भी एकदम से गयाब दिख रहे है । चलिये बडे भईया तो ठहरे अभिनेता लेकिन अपने वो छोटे भईया तो जैसे दूज के चांद ही हो गए है । मतों कि गिनती के एक दिन पहले दिखे थे उसके बाद तो जैसे रिजल्ट आने का समय आया मीडिया वाले दिनभर उन्हें खोजते रहे लेकिन अपने भाई साहब तो जैसे अबतक कही दिखी ही नही दे रहे है ।

उधर नेताजी के सारे के सारे मंत्री जी लोग भी अपने सारे कागजात ग़ायब कराने में लग गए है । अब भाई जब सत्ता हाथ से चली ही गयी है तो उसके कुछ सबूत पीछे छोड़ने कि कोई गलती कैसे कर सकता है ।

Saturday 12 May 2007

ग़दर यात्रा और ग़दर एक साथ

१८५७ कि ग़दर के १५० वी वर्षगांठ मनाई जा rahi है पूरा देश और हमारी सरकार भी इसके जश्न मे डूबी हुई है । टीवी पर ये खबर बार-बार दिखायी जा रही थी ऐसे मे जब चैनल बदला तो झारखण्ड कि राजधानी रांची कि कोई खबर आ रही थी, रिलायंस फ्रेश के किसी स्टोर पर वहा के सब्जी व्यापारियों कि हमले की खबर थी । मैंने चैनल बदल कर फिर पिछली खबर देखी ओर फिर मैं इन दोनो खबरो मे संबंध तलाशने लगा । एक तरफ भारे पर लाए गए लोग अतीत के अपने ग़दर को सम्मान देने के लिए घंटो पैदल मार्च पर थे, हालांकि रस्ते मे उन्हें खाने पिने कि तकलीफ हुई ओर वी तोड़-फ़ॉर पर आमादा हो गए थे, और दुसरी तरफ ऐसे सब्जी बेचने वाले कारोबारी थे जो रांची जैसे छोटे से शहर में सब्जी बेचकर अपने परिवार का पेट पाल रहे थे ओर आज रालिंस जैसी बड़ी कंपनी के जाने से उन्हें अपना रोजगार छीनता हुआ दिखायी दे रहा था । इस कारन वी ग़दर पर आमादा हो गए है ।

जब इसपर चर्चा चल रही थी तो मेरे एक मित्र ने इसका प्रतिवाद किया ओर कहा कि रिलायंस के वह आने से किसानो को उनकी उत्पाद कि अच्छी कीमत मिलने लगेगी तो इसमे क्या बुराई है । भाई मेरे किसी जगह पर अगर बहार के लोग जाकर वह कि व्यवस्था में बदलाव करने लगते है तो वहा कि जनता वही करेगी जो भारत कि जनता ने अंग्रेजो के खिलाफ किया था । केवल प्रतीकात्मक ग़दर मनाकर किसी का भला नही होने वाला है । जब लोगो के अपने अस्तित्त्व पर खतरा आयेगा तो वो तो ग़दर करेंगे ही , ये तो अपने देश का इतिहास रहा है ।

'कहो बडे भईया कहा हो'

जब से उत्तर प्रदेश चुनावो के रिजल्ट आये है तभी से हमेशा टेलीविजन के परदे पर छाये रहने वाले अपने छोटे भईया आजकल गायब है और ना ही अपने बडे भईया अब वो दम और जुर्म वाले एड लेकर आ रहे है । हमारे दर्शको को भी मज़ा नही आ रहा है पहले लालू जी लोगो को हंसाने का काम करते थे बाद में अपने छोटे भईया ने ये जिम्मेदारी संभाल ली । चुनाव के पहले तो वो पूतना ओर क्या-क्या नाम जडते रहे लेकिन जैसे ही जीं निकला कि भाई लोगो कि सिट्टी-पित्ती गुम । भाई लोग अब उत्तर प्रदेश से बाहर कहीँ ठौर तलाशने चल पडे । ऐसे भी फिल्म नगरी मुम्बई में बडे भईया के पास कई आलिशान बंगले है ही जब तक संकट रहेगा बडे भैया के यहा ही रह लेंगे । उन्हें क्या पडी है अपने वोटरों कि । पहले अपनी जान तो बचाए । कहते भी है की ' जान बची तो लाखों पायें' ।

पिछले तीन सालों में जिस तरह से आपने उत्तर प्रदेश के विकास में योगदान दिया था तो ये दिन तो आना ही था अब कराओ बडे भईया से अपने पक्ष में प्रचार । या फिर ले आओ हसीं फिल्मी हेरोइनो को अपने प्रचार मे । वैसे भी पुरे देश ने देखा था आख़िरी चरण के चुनाव प्रचार के लिए आप लखनऊ कि रैली में कमसीन बार बालाओं को ।। अब भैया आज का वोटर तो बस आप लोगो कि कमजोर नस पकड़ बैठा है । उसे तो पता है कि आप उसे चुनाव के दिन तक ही शराब पिला सकते है , बार बालाओं के नाच दिखा सकते है । लेकिन यहीं खा ना गच्चा , जनता ने ऐसा दाव खेला कि सब भई लोग चारो खाने चीत । अपने धोबिया पछार वाले नेता भी नही समझ पाये । ये तो बिल्कुल अपने अटल जी वाली 'फील गूड ' वाली कहानी ही दुबारा हो गयी ।

'ना माया मिला ना राम'

उत्तर प्रदेश चुनावो के रिजल्ट आ गए है । बसपा के कार्यकर्ता मायावती कि ताजपोशी कि तैयारियों मे लगे है । आम जनता भी इस बार काफी खुश दिख रही है, आम लोगो मे जो मायावती के विरोधी है वो भी एक बार कह देते है कि चलो इस बार देख लेते है कही प्रदेश कि तस्वीर मे कोई तब्दीली आ ही जाये । ये उस जनता के विचार है जो बदते अपराध और अराजकता से ट्रस्ट आ चुकी थी । देखते है क्या होता है अपने उत्तर प्रदेश का ।

सबसे हास्यास्पद स्थिति है भाजपा कि । राम मंदीर के नाम पर वोट लेटी आ रही भाजपा का साथ इस बार सवर्णों नेक्या छोड़ा पर्त्य हो गयी चारो खाने चीत । आब राम को भूलोगे भैया तो ये तो होगा ही । इस बार भाजपा ने दो नावो कि सवारी करने कि सोच रखी थी कि सीडी वगैरह बाँट कर कुछ १०० के आस-पास सिट लेकर फिर करेंगे मायावती के साथ सौदा । लेकिन भैया ये है उत्तर प्रदेश कि जनता । इसने सिखा दिया ना सबक । कब तक उल्लू बनाओगे भाई, अब हाथ मलने से क्या होने वाला है । इसी दो नावो कि सवारी मे आप के हाथ मे अब ना माया रही ओर ना ही अब अपके राम नाम के नारे पर किसी को विश्वास होगा ।

Friday 11 May 2007

क्रांति कि राह मे नए क्रांतिकारी...

एक खबर पढ़ रहा था जो १८५७ कि क्रान्ति से जुडी हुई थी। देश में आजकल १८५७ कि क्रान्ति की १५०वी वर्षगांठ मनाई जा रही है । देश भर से लोग जुटे हुए है आजकल उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर से दिल्ली के लाल किले तक पैदल मार्च का आयोजन किया गया है । यही वो जगह थी जहाँ से विद्रोही सैनिक पैदल मार्च कर दिल्ली पहुंचे थे और देल्ही के गड्डी पर बहादुर शाह जफर को बादशाह घोषित कर दिया था । इन्ही के सम्मान मे ये यात्रा हमारे कुछ स्वयम सेवी संगठनो ने आयोजित कि थी ।

अब आते है असल मसले पर । मेरठ से चली यात्रा में पूरे देश के नौजवानों के शामिल होने के दावे किये जा रहे थे । तभी खबर आयी कि यात्रा मे शामिल कुछ नौजवान इसलिये तोड़-फ़ॉर पर उतारू हो गए कि उनके खाने-पिने के लिए अच्छे प्रबंध नही किये गए थे । अब ये सोचने वाली बात है कि क्या ये युवक क्रांतिकारियों के सम्मान के लिए यात्रा में भाग लेने आये थे या इन्हें लाया गया था । ये भी सुनाने में आयी कि पैसे देकर इन्हें लाया गया । मई सवाल पूछना चाहूँगा उन अयोज्को से जो इस तरह से क्रान्ति के नाम पर अपनी दुकान चमकाना ओर इनसब के नाम पर आने वाले सरकारी पैसों कि बंदरबांट मे लगे है कि कहीँ वो क्रान्ति शब्द का मजाक तो नहीं उड़ा रहे है ।

अगर ये बात सही है कि हमारे नौजवान पैसे लेकर क्रान्ति यात्रा मे भाग लेने आये थे तो ये हमारे उन क्रांतिकारी भाइयो का भी अपमान है । हम नही जाते किसी यात्रा को, हम नही दिखावा करते किसी के सम्मान का लेकिन अगर उन्ही क्रांतिकारियों का मजाक उदय जाये ये हमे बर्दास्त नहीं। अखिर हम उसी हवा में सांस ले रहे है जहा स्वतन्त्रता इन्ही क्रांतिकारियों के बलिदान से आयी थी ।

उत्तर प्रदेश का ताज फिर माया के हाथ


उत्तर प्रदेश के मतदाताओ ने सभी समीकरण ओर एग्जिट पोल को मात देते हुए बसपा प्रमुख मायावती को ताज सौप दिया । बाबरी विध्वंस के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि देश के इस सबसे बडे (राजनितिक लिहाज़ से) राज्य मे किसी एक दल कि सर्कार बनने जा रही है । इससे पहले कल्यान सिंह कि सरकार बनी थी ओर आज भी लोग उस सरकार के काम को सराहते है । आज जब बसपा सुप्रीमो मायावती फिर राज्य कि गड्डी सँभालने जा रही है एक चीज साफ है कि राज्य कि जनता गठबंधन सरकारो ओर उनमे शामिल पार्टियों ओर उनके नेताओ के दबाव के आगे बाधित हो रहे विकास के काम से तंग आ चुकी है । इस बार जनता ने स्पष्ट बहुमत दिया है और साथ ही कई बडे नेताओ को विधान सभा जाने से भी रोक दिया है । जहीर है जनता ने ये संदेश दिया है कि जो काम नही करेगा उसे विधान सभा जाने का कोई हक नही ।

वैसे मायावती के लिए भी चुनौती कम नही , सरकार में आने के बाद उनके लिए सबसे बड़ा काम होगा मंत्रिमंडल मे सभी जातियों ओर धर्मो के लोगो मे संतुलन बनाना ओर साथ ही लंबे समय तक उन्हें अपने साथ बांधकर रखना । अगर पिछली बार कि ही तरह उन्होने डंडे के जोर पर शासन करने के प्रयास किया तो आगे कि राह बहुत ही मुश्किल होगी । ओर अगर मायावती ने पिछली आदते भुलाकर उप के लिए कुछ काम कर दिया तो राज्य के इतीहास मे नाम दर्ज हो जाएगा । इस सरकार से सबसे बड़ी उम्मीद होगी अपराधीकरण पर लगाम लगाने की । जनता इससे त्रस्त आ चुकी है और अब मुक्ति चाहती है ।।

Thursday 10 May 2007

कबूतारबाजों के देश में ।

चंद्रकांता धारावाहीक में हमेशा देखते थे कबूतर को प्यार के संदेश देते हुए । कबूतर हमेशा ही राजकुमारियों ओर राज्कुमारो के प्रेमपत्र पहुंचाते रहे । इसी बीच कब ये कबूतर अपने साथ इंसानों को जोड़ लिए ये पता ही नही चला . अचानक एक दिन नींद खुली ओर जब तव को ओं किया तो पुरा हंगामा मचा था . कबूतरों से जुडी कोई खबर लगातार फ्लश ओर न्यूज़ मे चल रही थी ।

बार-बार एक शब्द उपयोग हो रहा था कबूतरबाज । दिमाग मे ये बात फीट नही हो पा रही थी कि आख़िर ये कबूतरों कि कौन सी प्रजाति है । ध्यान से देखने पर पता लगा कि कोई अपने नेता जी है । किसी और कि बीवी ओर बच्चे को अपना बताकर विदेश छोड़ने जा रहे थे । भाई ये हुई ना बात कबूतर तो सिर्फ प्यार का संदेश पहुचने का काम करते थे आप तो उनसे भी आगे निकल पडे । आप तो लोगो को उनके प्यार तक पहुचाने के लिए सात समुन्दर पार तक छोड़ने जा रहे हो । और यही नही ये तो आपका धंधा भी बन चला है । भईया ये तो आपका मिशन है । अब ये तो आपकी बद्दप्पन है वर्ना समाजसेवा कर पुलिस के बहुपाश मे बंधने का जोखिम कौन लेता है । ये समाजसेवा तो सब करते है लेकिन पकड़े जाने वाले तो बस्स एक आप हुए और एक अपने वो बल्ले-बल्ले संगीतकार दलेर मेहंदी साहब । वो तो आप लोग पकड़े गए नही तो आप लोग कहॉ सामने आते है । आप तो बस 'नेकी कर और दरिया मे डाल' वाली निति पर काम करते है ।

हमारी तो दुआ है आप लोग (कबूतारबाज़ लोग) यूहीं समाजसेवा करते रहे । आख़िर आप ही लोग तो अब कबूतरों को टक्कर देने कि स्थिति मे है । यूं भी वो तो सिर्फ ख़त पहुँचा सकते थे अप्प तो ख़त लिखने वालों को भी पहुचने कि छमता रखते हो ।..बल्ले-बल्ले..

Tuesday 8 May 2007

क्या विधायक जी बेटिकट ही जियेंगे

कल शाम टीवी पर एक खबर देख रहा था । पटना से कोई स्टोरी थी कोई सत्तारुद दल के विधायक जी थे गाड़ी पार्क करने के लिए पार्किंग वाले ने उनसे ५ रूपये मँगाने कि गलती कर दी थी । फिर क्या था विधायक जी और उनके भाई लोग पिल पडे और कर दी उनलोगों कि धुनाई । उनके माफ़ी मँगाने पर भी कि हमने आपको पहचाना नही, वे कहॉ मानने वाले थे । विधायक जी का कहना था कि पटना मे ऐसा कौन है जो हमे नही पहचानता ? अरे विधायक जी कौन नही पहचानेगा आप लोगो को भाई आप ही लोग तो जनता के मई-बाप हो ।

आब हमारी व्यवस्था ही ऐसी है कि हमारे नेता लोग (समाज को लीड करने वाले नही, दादागीरी वाले नेता लोग) कानून से भी ऊपर है । लेकिन आम आदामी को भी तो पता होना ही चाहिए ना की नेता लोग पार्किंग करने जाये, सिनेमा हाल मे जाये या फिर शराब कि दुकान पर जाये तो उनसे कोई किसी भी तरह के शुल्क कि माँग नही करेगा । अब भाई ये तो सरकार को एक आदेश जारी कर पब्लिक को बताना पडेगा । नहीं तो पार्किंग वाले कि तरह ही लोग गलतिया करते रहेंगे । अब उस पार्किंग वाले कि क्या गलती है कि वो बेचारा ये नही जानता था कि विधयाक जी के पास उसे देने के लिए ५ रूपये भी नही थे ।... तभी टीवी पर दुसरी खबर पर नजर गयी कोई एंकर कह जुए था कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है । अब भईया वो तो होना ही था जब हमारे देश में ऐसे विचार वाले नेता जी लोग है तो अपना लोकतंत्र सबसे बड़ा तो होगा ही ना ।

Monday 7 May 2007

देखिए घरेलु झगड़े टीवी पर

कल शाम ऑफिस में अचानक टीवी की ओर निगाह गयी । सारे लोग काम छोड़कर टीवी पर जमे हुए थे । कुछ देर बाद जब मामला समझ में आया तो कोई हैरत नहीं हुई । किसी के घर के घरेलू झगड़े को लाइव दिखाया जा रहा था । स्टोरी में पटना की कोई दम्पती थी जिनकी लड़ाई अमेरिका से वापस आकर पुलिस तक जा पहुँची थी । टीवी वालो को मौका मील गाया और उन लोगो ने दोनो को आमने-सामने कर दिया बस फिर क्या था शुरू हो गयी टीवी पर ही उनकी लडाई । पुरा देश देख रहा था आरोप-प्रत्यारोप को । कब किसने किसको मारा, कब किसने किसकी पिटायी कि, कब किसने किससे किसकी शिक़ायत की । ये सार्री बाते बातें टीवी पर आने लगी । वाकई बहुत मज़ा आ रहा था ।

पहले इस टीवी ने हमे बनावटी घरेलु झगड़े दिखाए और अब ये हमारे घर मे घुसकर छोटी-छोटी बातों को तल देकर दिखाने लगें है । क्या हमे इन्हें नही रोकना चाहिए । कल को ये हमारे घरो मे जबरन घुसकर चोटी लडाई को भी तुल देने लगेंगे। क्या हमारे घरों में मीडिया की घुसपैठ ठीक है । ये तेज़ी से ख़त्म हो रही हमारी परिवार व्यवस्था को मिटाने में ओर कारगर होगी ।

आपको भी मिल रहा है मसाला देखिए पहले लोगो के घर कि कहानी फिर आपको अपने घर कि भी कहानी देखने को मिलेगी । भैया अब आधुनिक कहलाने कि इतनी कीमत तो हमे चुकानी ही पडेगी ... आख़िर अमेरिका ओर ब्रिटेन कि तरह रहने कि ललक हमे भी उसी रास्ते पर ले ही जा रही है ।

Sunday 6 May 2007

टूटी-फूटी सडको पर सनसनाती गाडिया


( नेशनल सैम्पल सर्वे आरगेनाइजेशन के आंकडो को देखे तो 1993-94 से लेकर 2004-05 के बीच भारत के ग्रामीण इलाको में कारो और जीप की संख्या चार गुने से भी ज्यादा हुई है । )


आपने सुना होगा हमारे देश कि सडकों के बारे में । वो भी अगर गांवो की बात करें तो कही सडको मे गद्दे है तो कही गढ़्ढ़ो मे सड़क । लेकिन अपको ये जानकर बरी हेरात होगी कि गांवो कि इन्ही टूटी-फूटी सडको पर देश कि करीब ७० फीसदी आबादी सफ़र करती है । जाहीर है कि इन इलाकों मे गाडियों कि एक बड़ी संख्या है । बाज़ार के अनुमान को माने तो भारत के ग्रामीण इलाकों मे दोपहिया ओर चौपहिया गाडियों का बाज़ार करीब ८००० करोड़ का है । अब तक ग्रामीण इलाकों मे कार के बाज़ार पर बहुत ध्यान नही था लेकिन अब वह के लोगो कि बढती ख़रीद क्षमता को देखते हुए कार कम्पनियों ने छोटी कारों को बाज़ार मे उतारने कि तैयारी कर रखी है । टाटा ने लखटकिया कार २००८ तक बाज़ार में उतारने कि तैयारी मे प बंगाल में १००० करोड़ कि परियोजना शुरू की है वहीँ होंडा ने भी राजस्थान मे छोटी कारों के लिए संयंत्र लगाने कि घोषणा कि है ।

Friday 4 May 2007

'मेरा गांव मेरा देश' मे आपका स्वागत है.

आपका स्वागत है इस ब्लॉग मे। यहाँ अपको पढने को मिलेगा भारत के गांव की जिंदगी के बारे में। हो सकता है आप मे से बहुत सरे लोग गांव से ही आते हो लेकिन आज के दौर मे भी गांव कि जिंदगी इतनी अच्छी है कि तनाव से मुक्त है। लेकिन साथ ही उतना कठिन भी। हम अपको इन्ही गांवों कि जिंदगी को बरी ही करीब से दिखने जा रहे है अपने इस ब्लॉग से। आप लोग भी इसमे मेरा साथ दीजिए। हम भारतीय है ओर हमारी खुशहाली हमारे गांवों से होकर ही आती है। इसे हमे नही भुलाना चाहिए।