Thursday 10 May 2007

कबूतारबाजों के देश में ।

चंद्रकांता धारावाहीक में हमेशा देखते थे कबूतर को प्यार के संदेश देते हुए । कबूतर हमेशा ही राजकुमारियों ओर राज्कुमारो के प्रेमपत्र पहुंचाते रहे । इसी बीच कब ये कबूतर अपने साथ इंसानों को जोड़ लिए ये पता ही नही चला . अचानक एक दिन नींद खुली ओर जब तव को ओं किया तो पुरा हंगामा मचा था . कबूतरों से जुडी कोई खबर लगातार फ्लश ओर न्यूज़ मे चल रही थी ।

बार-बार एक शब्द उपयोग हो रहा था कबूतरबाज । दिमाग मे ये बात फीट नही हो पा रही थी कि आख़िर ये कबूतरों कि कौन सी प्रजाति है । ध्यान से देखने पर पता लगा कि कोई अपने नेता जी है । किसी और कि बीवी ओर बच्चे को अपना बताकर विदेश छोड़ने जा रहे थे । भाई ये हुई ना बात कबूतर तो सिर्फ प्यार का संदेश पहुचने का काम करते थे आप तो उनसे भी आगे निकल पडे । आप तो लोगो को उनके प्यार तक पहुचाने के लिए सात समुन्दर पार तक छोड़ने जा रहे हो । और यही नही ये तो आपका धंधा भी बन चला है । भईया ये तो आपका मिशन है । अब ये तो आपकी बद्दप्पन है वर्ना समाजसेवा कर पुलिस के बहुपाश मे बंधने का जोखिम कौन लेता है । ये समाजसेवा तो सब करते है लेकिन पकड़े जाने वाले तो बस्स एक आप हुए और एक अपने वो बल्ले-बल्ले संगीतकार दलेर मेहंदी साहब । वो तो आप लोग पकड़े गए नही तो आप लोग कहॉ सामने आते है । आप तो बस 'नेकी कर और दरिया मे डाल' वाली निति पर काम करते है ।

हमारी तो दुआ है आप लोग (कबूतारबाज़ लोग) यूहीं समाजसेवा करते रहे । आख़िर आप ही लोग तो अब कबूतरों को टक्कर देने कि स्थिति मे है । यूं भी वो तो सिर्फ ख़त पहुँचा सकते थे अप्प तो ख़त लिखने वालों को भी पहुचने कि छमता रखते हो ।..बल्ले-बल्ले..

2 comments:

संजय बेंगाणी said...

क्या बात है? वाह!!

ePandit said...

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