Thursday 25 December 2008

ठेकेदारी. धनउगाही.. चंदा... राजनीति....वगैरह-वगैरह

कल उत्तर प्रदेश के औरैया में एक सरकारी इंजीनियर की हत्या कर दी गई. हत्या का आरोप प्रदेश में सत्ताधारी दल के एक विधायक और उसके समर्थकों पर लगा. आरोप लगा कि ये प्रदेश के मुख्यमंत्री के जन्मदिन समारोह के लिए चंदा उगाही को गए थे. उसी को लेकर विवाद बढ़ा और विधायक समर्थकों ने पीटपीट कर इंजीनियर की हत्या कर दी। ऐसा नहीं है कि ये घटना हमारे देश में पहली बार हुई है। अगर आप बिहार और उत्तर प्रदेश की ख़बरों पर ध्यान रखते हैं तो ऊपर शीर्षक में लिखे शब्द रोज ही आपको पढने-सुनने को मिल जायेंगे. अख़बारों में विकास की तमाम योजनाओं की ख़बर के साथ उन योजनाओं के लिए आने वाले करोड़ों के बजट को लूटने-हथियाने के लिए होने वाली लडाई इन राज्यों में बहुत आम है. ऐसा भी नहीं है कि इस तरह का काम केवल बिहार, उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में ही होता है. बल्कि मुंबई और अन्य बड़े शहरों में भी इस तरह की बातें देखने-सुनने को मिलती है. फर्क सिर्फ़ इतना है कि गाँव में इस तरह का लूटमार करने वाले वहीँ के दबंग लोग होते हैं और शहरों में ऐसा करने वाले लोगों के साथ डॉन, माफिया जैसे फिल्मी शब्द चस्पां कर दिए गए हैं. बड़े शहरों की यही कहानियाँ मुम्बईया फिल्मों का मसाला बनती है।

देश के इन दोनों ही हिस्सों में इस कौम के लोग रहते हैं। इनके पास न तो धन-बल की कोई कमी होती है और न ही इनके पास व्यवस्था में पैठ की कोई कमी होती है. ये लोग मीडिया को अपने पक्ष में इस्तेमाल करना जानते हैं. गाँव में रहने वाले इस कौम के लोग आजकल राजनीति में धड़ल्ले से शामिल हो रहे हैं. क्यूंकि इन्हें ये मालूम है कि देश के संसाधनों का अगर अपने पक्ष में इस्तेमाल करना है तो पहले व्यवस्था को अपने हाथ में करो. राजनीति में ऐसे लोगों की पूछ भी कम नहीं है. जनता भले ही चौक-चौराहों पर इन बाहुबली लोगों को बुरा कहें लेकिन जब मतगणना होती है तो यही लोग विजय पताका फहराते दिखते हैं. अगर आपमें बाकि लोगों को ठिकाने लगा पाने और ख़ुद को ऐसे ही अन्य लोगों से बचा पाने की कुव्वत है तभी आप राजनीति में सफल हो सकते हैं और विधान सभाओं और संसद तक पहुँच सकते हैं. हमारे गाँव में कहा जाता है कि अगर आपके पास बाहुबल है तभी राजनीति में सफल हो सकते हो वरना वो धोती-कुरता और खद्दर के कुरते वाली राजनीति का समय अब कहाँ रहा. जनता ऐसे लोगों से परहेज नहीं करती है और ऐसे लोगों के हाथों में अपना भविष्य सुरक्षित मानती है. शायद जनता को ऐसा लगता है कि यही वो लोग हैं जो अपनी रक्षा करने में सक्षम हैं और इन्हीं के हाथों में अपना जीवन सौंपा जा सकता है. शायद इसी लिए जनता ऐसे लोगों को राजनीति में आगे करती है और इतना ताकत देती है कि विकास योजनाओं के लिए आए करोडों कि राशि को लूटकर मालदार बनते जा रहे ठेकेदार और अन्य अधिकारीयों से चन्दा वसूली कर सकें. ऐसे लोग इस विचारधारा में भरोसा रखते हैं कि भाई जब देश को लूट ही रहे हो तो सबको मिलकर खाना चाहिए. आख़िर हम लोकतंत्र में रहते हैं और देश के साथ-साथ यहाँ की मलाई पर भी सबका बराबर हक़ होना चाहिए.

देश में इस विचारधारा को आगे बढ़ाने में लगे इस कौम के महापुरुषों की सबसे बड़ी दुश्मन अपनी मीडिया है. जब ऐसे लोग अपनी "मेहनत और परिश्रम" के बल पर चुनाव जीतकर विधान-सभा और संसद तक पहुँच जाते हैं तो मीडिया इनके पीछे पड़ जाती है. दावेदारी होने के बाद भी मीडिया के दबाव में ऐसे लोग मंत्री पद पर नहीं पहुँच पाते. अगर मीडिया इनके रस्ते में रोड़ा न बने तो देश की मुख्यधारा में भी ऐसे बाहुबल, चंदा वसूली और अन्य तकनीक अपनाकर आगे बढ़ने वाले लोगों की अच्छी-खासी संख्या हो जायेगी. और पूरा देश खुशहाल और बाहुबली हो जाएगा. तब शायद...
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......बहुत कुछ हो जाए...

1 comment:

sandeep sharma said...

सही स्थिति दर्शाई है..
इंडिया में चलता है...