Sunday 7 December 2008

बात बनती नहीं दिखती ऐसी हालात में.....

"जब भी होती है बारिश कही ख़ून की,
भीगता हूं सदा मैं ही बरसात में।
बात बनती नहीं ऐसे हालात में,
मैं भी जज़्बात में, तुम भी जज़्बात में..."
मैं कौन हूँ। शायद उन बदनसीब देशों में से एक का नागरिक जो आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित हैं। मैं भारत का भी हो सकता हूँ, पाकिस्तान का भी, अफगानिस्तान का भी और इराक का भी या शायद ऐसे ही किसी और बदनसीब देश का नागरिक. जो रोज-रोज और कहें तो हर वक्त सहमा हुआ है एक अनजान डर से. दफ्तर जाते हुए, सिनेमा हॉल जाते हुए, बाज़ार जाते हुए या बस और रेल में सफर करते हुए भी या फ़िर किसी पार्क में बैठते हुए भी. उसे डर है कि कहीं भी किसी भी वक्त कोई उसपर हमला कर सकता है. अगर मैं भारत का रहने वाला हूँ तो मेरे लिए पहले से ही ६ दिसम्बर, १५ अगस्त और २६ जनवरी जैसे कई दिवस हैं जब हम काफ़ी सतर्क हुआ करते थे. अब ऐसी कोई सम्भावना नहीं जताई जा सकती कि इसी समय आतंकवादी हमला कर सकते हैं. जैसा कि पिछली कुछ घटनाएं देखी गईं. उसके अनुसार देश में कहीं भी कभी भी आतंकी हमला कर सकते हैं. कोई उसे रोक नहीं सकता. भारत के प्रमुख शहर मुंबई में पिछले सप्ताह हमला हुआ. ये हमला रोका नहीं जा सका. जब हमला हो गया तब सिस्टम जगा और अब ये तय किया जा रहा है कि किसकी विफलता से हमला हुआ. सभी सुरक्षा एजेंसियां एक-दूसरे के ऊपर विफलता का ठीकड़ा फोड़ने में लगी है. और अब जब आम लोग अपनी सुरक्षा की मांग के साथ सड़कों पर उतरने लगें हैं तो ये राजनितिक बिरादरी को चुभने लगा है. ये तो अपेक्षित था ही. हमारे देश की राजनीतिक बिरादरी को जनता को उल्लू बनाकर सत्ता में बने रहने की आदत पड़ गई हैं. उन्हें जनता द्वारा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना कभी पसंद नहीं आयेगा और जनता को मुखर होकर अपनी बात रखनी होगी. जनता को देश की राजनीतिक बिरादरी को ये समझाना होगा कि उसपर शासन वही करेगा जो उसके लिए काम करेगा।

शुक्रवार को आधी रात को दिल्ली के इंदिरा गाँधी हवाई अड्डे पर गोलियां चलने की आवाज हुई। वहां मौजूद सभी लोग जान बचाने के लिए जहाँ जगह मिली दुबक लिए. वहां भी वही मेरे जैसा आम आदमी था. जो अपना काम करने के लिए, घुमने के लिए या फ़िर किसी और कारण से हवाई जहाज की यात्रा करने के लिए हवाई अड्डे पर आया था. किसने गोली चलाई नहीं मालूम. लेकिन खौफ पैदा हुआ मेरे दिमाग में. मुझे उस वक्त फ़ोन करके अपने घर वालों को ये बताना पड़ा की मैं सुरक्षित हूँ॥ मैं वही आम आदमी हूँ..

ऐसा नहीं है कि इस डर में केवल भारत का आदमी जी रहा है. अगर मैं पाकिस्तान, इराक और अफगानिस्तान का नागरिक हूँ तो मेरे अन्दर भी डर है. यहाँ के लोग दोहरी मार झेल रहे हैं. कभी उन्हें आतंकवादियों की गोलियां अपना निशाना बनाती है तो कभी विदेशी सैनिकों की तोपें और मिसाइलें उनका घर तबाह कर जाती है. विशेषकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर रहने वाले लोग रात को सोते वक्त इस बात को यकीनी तौर पर नहीं कह सकते कि कल सुबह भी उनका घर जैसे का तैसा रह जाएगा. हो सकता है आतंकवादियों को खोजती हुई अमेरिकी आँखें और उसके बाद चली मिसाइलें रात के अंधेरे में घर समेत उनके अस्तित्व को नेस्तनाबूद कर दे. आतंकी उनके बच्चों को जबरन आतंकी बनाने के लिए ले जाते हैं और देशी-विदेशी सैनिक आतंकियों का परिजन होने के कारण उठा ले जाते हैं. यहीं हैं मेरी जिंदगी. मुझे उस शख्स से डर है जिसे मैं नहीं जनता. इन सभी देशों का नागरिक होने के नाते मुझे बस ये मालूम है कि मेरे भी जज्बात हैं. हम सभी के जज्बात हैं. भारत में हमले हुए, पाकिस्तान के पेशावर में हमले हुए, अफगानिस्तान की पहाडियां बम-गोलों के शोर से भरी पड़ी हैं.. किसने किए- कोई हमारे बीच का है. पाकिस्तान पर शक जताया गया. इससे पाकिस्तान के लोगों की भावनाए आहत हुई और वहां प्रदर्शन हुए. लेकिन जाहीर सी बात है कि हमला करने वाले चाहे जो भी हो वो आम तबके से ही आता है और मरने वाले भी आम लोग हैं और मौत का ये सौदा करने वाले इसमें कहीं भी शिकार नहीं हैं. मरने वाले में, उसके बाद रोने वाले में और उसके बाद हर पल को डर-डर कर जीने वाले में मैं ही हूँ...दुनिया का आम आदमी...

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