Saturday 26 January 2008

वाया राजपथ: सुपरपावर होने का गुमान!

राजधानी नई दिल्ली के राजपथ पर २६ जनवरी का जश्न मनाया जा रहा था। सुपरपावर कहलाने को आतुर भारत अपनी ताकत और शौर्य का प्रदर्शन कर रहा था। सेना के जवान पूरी वर्दी में कदमताल मिलाकर राजपथ की शान बढ़ा रहे थे। ब्रह्मोस से लेकर उन सभी हथियारों का प्रदर्शन किया जा रहा था। उन सभी चीजों का प्रदर्शन हो रहा था जिनके बल पर ये उम्मीद है कि इससे रीझकर बडे देश हमे भी सुपर पावर की जमात में शामिल कर लेंगे। इस भव्य जश्न को दुनिया भी देखे इस लिए फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सारकोजी को भी न्योता देकर बुलाया गया था। इंडिया गेट पर सजे मंच पर वो बेचारे भी हमारे बड़े नेताओं के बीच बैठकर नज़ारा देख रहे थे। उदघोषक पूरे जोश-खरोश से भारत की शान में कसीदे पढ़ रहे थे। मैं हर साल की तरह टीवी पर चिपक कर ये नज़ारा देख रहा था। लेकिन कोई नयापन नहीं देख जल्द ही मुझे बोरियत होने लगी, कुछ ठंड को भगाने और कुछ बोरियत ख़त्म करने के लिए मैंने चाय पीने के लिए दुकान की राह पकड़ी।

दुकान पर सबकुछ वैसा ही था जैसा मैं अमूमन देखता हूँ। चाय की डिलिवरी देने वाले छोटू कि जिंदगी में ना तो कोई बदलाव दिख रहा था और ना ही उसकी किस्मत में। रोज की तरह छोटू बेचारा मालिक के आदेश पर आस-पास के घरों और दुकानों में चाय पहुचांने के काम में मशगूल था। आज आम दिनों की अपेक्षा चाय की माँग कुछ ज्यादा थी इस लिए बेचारा कुछ ज्यादा ही व्यस्त दिख रहा था। आम बच्चों जैसी उस बेचारे की किस्मत नहीं थी। इस लिए वो आज किसी स्कूल का छात्र नहीं है और इसी कारण आज गणतंत्र दिवस की छुट्टी न मनाकर वो रोज के अपने काम पर लगा हुआ है।

सच में देखा जाये तो छोटू समाज के उस वर्ग से आता है जिसके लिए गणतंत्र आज भी एक सपना है। ये वर्ग आज भी उस दौर में जी रहा है जो गणतंत्र का जश्न मनाने में अक्षम है। वो आज भी भारतीय रुतबे पर एक बदनुमा दाग है। उसकी शक्ल राजपथ पर दिखे किसी भी शान से मेल नहीं खाता है। भारत के गणतंत्र बने ५९ साल हो जाने के बाद भी उस अबोध बच्चे को बुनियादी जरूरते अपनी व्यवस्था से न मिलकर खुद जुटानी पड़ती है। उसे अपनी पेट की आग बुझाने के लिए इसी उमर में काम करनी पड़ती है। ऐसा नहीं है की सरकार ने इस भेद को मिटाने के लिए कुछ नहीं किया है लेकिन ६ दशक के बाद जितनी प्रगति होनी चाहिऐ उतनी पाने में हम अब भी सफल नहीं हुए हैं। हमे तब अपने को सुपर पावर बनने का दंभ पालना चाहिए जब हम अपने देश के हर बच्चे को कम से कम बुनियादी शिक्षा मुहैया करा सकें। हम असल में सुपर पावर बनने के काबिल तभी होंगे जब हर बच्चे को वास्तव में स्कूल की शिक्षा और कम से कम स्वरोजगार के काबिल बना सके। फिर हमे राजपथ पर करोडों रुपया फूंककर विदेशी मेहमानों को अपनी शान दिखाने में कोई शर्म भी नहीं आनी चाहिए। लेकिन अभी विदेशों से ख़रीदे हुए हथियारों और विदेश में बने हवाई जहाजों का करतब दिखाकर हम अपने गणतंत्र का मजाक ही बना रहे हैं। हमे इस मानसिकता से उबरने की जरूरत है. हमे वास्तव में गणतंत्र बनने के लिए अभी मेहनत करनी होगी। इसके बिना ये सारी शान वैसे ही है जैसे की शादी व्याह में लोग भाड़े के सामियाने और कुर्सी टेबल लाकर अपनी शान बघारते हैं।.....

1 comment:

RC Mishra said...

"लेकिन अभी विदेशों से ख़रीदे हुए हथियारों और विदेश में बने हवाई जहाजों का करतब दिखाकर हम अपने गणतंत्र का मजाक ही बना रहे हैं।"

वाह भाई साहब आपको तो बहुत जानकारी है। वैसे भी Journalist होने के बाद बहुत सारी जानकारी अपने आप ही आ जाती है और उसका विश्लेषण करना भी।