Sunday 27 January 2008

धोनी और सचिन बनने का फेर!

बचपन में लोग कहते थे कि बेटा जितनी मस्ती करनी हो अभी कर लो, जीवन में ऐसा मौका बार-बार नहीं आता. मेरा छोटा भाई भी अक्सर पढाई के लिए कहने पर अपने बचाव में कहता है- कि आपने वो कहावत नहीं सुनी है क्या कि 'पढोगे-लिखोगे बनोगे खराब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे नबाब'। उसके लिए कहने का सही वक्त भी है। अपने बचाव में वो बेचारा सचिन, धोनी, शाहरुख खान जैसे ना जाने कई बड़ी हस्तियों का नाम ले बैठता है। उस बेचारे में भी क्रिकेट और फिल्मों को लेकर काफी क्रेज है। 'सन्डे हो या मंडे-रोज खाए अंडे' कि तर्ज पर उसे बस पता चलना चाहिए कि कब उसके दोस्त लोग स्कूल नहीं जा रहे हैं और सब क्रिकेट के मैदान में हाजिर रहेंगे। बेचारा क्रिकेट के मैदान तक जाने का बहाना निकाल ही लेता है।

अब हमे भी लगता है कि उसका कहना सही ही है लेकिन एक बात भी सही है कि क्रिकेट के मैदान पर उतरने वाले सभी लोग धोनी और सचिन नहीं बनते, ये भी सही है कि ऐसा बनने के लिए ही सभी लोग खेल के मैदान तक नहीं उतरते। स्वास्थ्य के लिए भी ये खेल काफी लाभदायक होते हैं। ऐसा नहीं है कि अपने बचपने में हम ऐसा मौका नहीं निकालते थे। सच कहे तो हम आज भी ये मौका निकालने की जुगत में रहते हैं. लेकिन अब शायद ही ये मौका कभी निकल पाए। हाँ अपनी भडास निकालने के लिए कभी-कभी हम फील्ड में जरूर पहुंच जाते हैं। लेकिन ये देखकर काफी हैरत होती है कि कई लड़के अपनी जुल्फें काफी बड़े-बड़े रखे हुए हैं। जैसा कि किसी जमाने में धोनी ने रखे थे। उस लड़के के सारे दोस्त भी उसे धोनी के नाम से आवाज़ देते हैं। मसलन अगर वो लड़का बाउंड्री के बिल्कुल पास ही फील्डिंग क्यों ना कर रहा हो,बाँल जाने के बाद उसके दोस्त आवाज़ देते हैं धोनी डाईव लगाकर रोक ले भाई। अब बेचारे उसके माँ-बाप को पता नहीं मालूम है कि नहीं कि जो नाम उन्होने अपने बेटे का रखा था बेटे ने धोनी बनने के चक्कर में उसकी ऐसी की तैसी कर रक्खी है।

अब इधर बच्चों में इरफान पठान का भी अच्छा-खासा क्रेज हो गया है। अब मैं तो एक दिन इस चक्कर में मुसीबत में पड़ गया था। मेरा साढे ३ साल का भतीजा एक दिन प्लास्टिक के छोटे से बल्ले और प्लास्टिक के बाँल से क्रिकेट खेल रहा था। उसे उस समय कोई साथी नहीं मिला इस लिए कहा कि चाचा मेरे साथ क्रिकेट खेलो। मैंने सोचा कि चलो कुछ देर बेचारे का साथ दिया जाये। मैंने कुछ देर उसे ऐसे ही बाँल फेंका। अचानक वह बोला चाचा अब मैं थक गया हूँ। अब आप बैटिंग करों मैं इरफान पठान बनूंगा। अब मैं तो फंस गया। अगल-बगल में देखा कोई देख तो नहीं रहा। अब लोग मुझे प्लास्टिक के उस छोटे से बल्ले से बल्लेबाजी करते हुए देखेंगे तो पता नहीं क्या-क्या सोचेंगे। मैंने थोडी सख्ती से काम लेना बेहतर समझा और कहा बेटा बैटिंग तो तुम ही करो और इरफान पठान मुझे ही रहने दो, तुम सचिन बने ही बेहतर लगते हो। बच्चा ऐसे समझने को तैयार नहीं दिख रहा था। इस कारण मुझे उसे बिस्किट के ऐड के माध्यम से समझाना पडा कि कैसे बेटा सचिन बनो रहोगे तो सचिन वाले बिस्किट खाने को मिलेंगे। इसके बाद वो बेचारा सचिन बना रहा और मैं इरफान बनकर उसे बाँल भी फेकता रहा और युवराज सिंह बनकर फील्डिंग भी करता रहा ...

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