Saturday 9 February 2008

राज भी औरों की तरह राजनीति कर रहे है तो गलत क्या है!

राज ठाकरे के बयान पर पूरे देश में हो-हल्ला मचाया जा रहा है। उत्तर भारतीय लोगो के मुम्बई में रहने पर राज ने आपति जताते हुए कहा था कि इन लोगों का लगाव मुम्बई से न होकर अपने राज्यों से होता है। थिक ऐसा ही बयान दिल्ली के उपराज्यपाल का भी आया. उनका कहना था की उत्तर भारत के लोग दिल्ली में ट्राफिक नियमों को तोड़ने में अपनी शान समझते हैं। हालांकि अब दोनों के बयानों में कुछ नरमी आई है। इसी वक्त में राज ने देश के विभिन्न राजनितिक दलों द्वारा इसी तरह की राजनीति पर मीडिया से खुलकर बात की। उन्होने सभी राजनितिक दलों को धो डाला और कहा की जो लोग उनके बयान का विरोध कर रहे हैं वी सभी के सभी अपने-अपने इलाको में इसी तरह की राजनीति कर रहे हैं और अगर उन्होने अपने लोगों के हित की बात की है तो इसमें गलत क्या है।

राज ने कहा है कि अगर मैं और मेरी पार्टी महाराष्ट्र व मराठी अस्मिता की बात करते हैं तो हमें गुंडा ठहराया जाता है। तो क्या भिंडरावाला को शहीद कहने वाला अकाली दल, एलटीटीई का समर्थन करने वाली तमिलनाडु की पार्टियां और सौरभ गांगुली को भारतीय क्रिकेट टीम से बाहर करने के बाद दंगा करने वाली कम्युनिस्ट पार्टियां संकुचित प्रांतवाद की राजनीति नहीं करतीं ?' राज ने आगे कहा की जब फ्रांसीसी राष्ट्रपति भारत की यात्रा पर आए तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वहां सिखों की पगड़ी पर लगी रोक हटाने को लेकर बात की थी। यही नहीं , अकाली दल सिखों के पवित्र स्थल दमदमी टक्साल में जरनैल सिंह भिंडरवाला का फोटो शहीद का दर्जा देते हुए लगवाता है। उन्होंने आगे लिखा है कि यह साफ है कि एलटीटीई ने राजीव गांधी की हत्या करवाई थी लेकिन तमिलनाडु की सभी राजनीतिक पार्टियां इस उग्रवादी संगठन से किसी न किसी तरह जुड़ी हुई हैं। जब सौरभ गांगुली को भारतीय टीम से निकाल दिया जाता है तो कम्युनिस्ट पार्टियां बंगाल और बंगालियों के हितों की पैरोकार बनकर सामने आ जाती हैं। एक बार फिर अमिताभ को निशाना बनाते हुए राज ने लिखा है कि वह खुद को ' छोरा गंगा किनारे वाला ' कहने में गर्व महसूस करते हैं। राज पूछते हैं कि क्या ये सब संकुचित या क्षेत्रवाद नहीं है। और अगर नहीं है तो मेरा महाराष्ट्र और मराठियों की अस्मिता के बारे में बात करना कैसे संकुचित हो गया है?

हालांकि देश के किसी भी हिस्से में किसी के रहने और काम करने के अधिकार पर किसी भी प्रकार के कुठाराघात की निंदा होनी चाहिए। लेकिन ऐसा करने वाली सभी पार्टियों को भी अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। अब शिव सेना प्रमुख बला साहब ठाकरे अमिताभ के बचाव में सामने आये हैं लेकिन अब तक उनकी राजनीति इन्ही उत्तर भारतीयों के खिलाफ थी। आज अचानक जब राज ठाकरे ने मराथावाद का टोटका आजमा कर जब शिव सेना के साम्राज्य के लिए ख़तरा पैदा कर दिया तो अब सब की आंखों में खटकने लगे।

2 comments:

नितिन | Nitin Vyas said...

लेख अच्छा लगा,

VARUN ROY said...

सुदीप जी ,
राज ठाकरे के बयानों के बारे में आपका विचार जाना .
एक तरफ़ तो आप रैशनल सोसाइटी की बात करते हैं
और दूसरी तरफ़ आप राज ठाकरे की सिरफिरी राजनीति
के तहत दिए गए नफरत फैलाने वाले बयानों की तरफदारी
करते हैं . जहाँ तक मुम्बई मे बसे बाहरी लोगों का मुम्बई के
प्रति प्रेम और उसके विकास में योगदान का सवाल है तो वो तो
हो ही रहा है ,परन्तु आप उनसे अपने गृह राज्य के प्रति वफादारी
की उम्मीद नहीं कर उनके साथ अन्याय कर रहे हैं . आखिरकार
विदेशों में बसे भारतीयों से भी हम भारत के प्रति वफादार
होने की उम्मीद करते हैं जबकि जिस देश में भी वो है , वहां के विकास
में तो उनका योगदान है ही . जहाँ तक भिन्डरांवाले की बात है तो
आप एक बुराई को दूसरी बुराई से तुलना कर सही नहीं ठहरा सकते हैं.
मेरी लिखी एक ग़ज़ल की दो पंक्तियाँ नीचे दे रहा हूँ -

मिट रही है दूरियां जब दर्मयाने मुल्क
आदमी आदमी से दूर सा क्यूँ हो रहा है