Sunday 17 February 2008

यहाँ परीक्षा में नक़ल एक सत्य बन चुका है!

एक बड़ी सी इमारत की चहारदीवारी के चारों ओर पुलिस का घेरा है। गेट पर कई सुरक्षा कर्मी खड़े हैं। इतना ही नहीं छत पर भी सुरक्षाकर्मी खड़े होकर चारों ओर नजर दौड़ा रहे हैं। उस इमारत के चारों तरफ़ सैकड़ों लोगों का हुजूम जमा है। ये किसी पोलिंग बूथ का नजारा नहीं है बल्कि इंटर की परीक्षा के लिए बने सेंटर वाले स्कूल का नजारा है। गेट पर आने वाले हर परीक्षार्थी की सघन तलाशी ली जा रही है। यहाँ तक कि कई छात्रों के जूते तक खुलवा कर तलाशी ली जा रही है। धीरे-धीरे समय बीतता है और परीक्षा शुरू होती है। आप सोच रहे होंगे कि अब क्या होने वाला है। नक़ल के सारे सामान तो बाहर गेट पर ही निकलवा लिए गए थे।

अभी करीब एक घंटा बीता होगा। सामने से एक गाड़ी आती हुई दिखायी दे रही है। सुरक्षा कर्मी चुस्त-दुरुस्त होते हैं। स्कूल कि खिद्कीयों से लटके लोग अचानक खदेड़ दिए जाते है और स्कूल के गेट के बाहर जमा लोग भी दूर खेतों कि ओर दौर लगाने लगते हैं। गाड़ी में से कोई अफसर नुमा आदमी बाहर आता है और कई क्लास रूम में तलाशी लेने लगता है। करीब १० मिनट बाद वो बाहर आता है और उसके साथ चल रहे सुरक्षाकर्मियों के साथ कई परीक्षार्थी भी आते हैं। उनमें से कई तो उनके साथ नाजाने से बचने के लिए उनके पैरों तक में गिर रहे होते हैं। ये सारे बच्चे नक़ल करते हुए पकड़े गए हैं। आप सोच रहे होंगे की जब गेट पर ही सारे कागज़ पकड़ लिए गए थे तो ये अन्दर किन कागज़ के साथ पकड़े गए। ये समझना आपके बस की बात नहीं है। ये तो बस मेरे यहाँ का मशहूर जुगाड़ टेक्नोलॉजी है।

अफसर के पीछे चल रही गाड़ी में वे सारे बच्चे बैठा दिए जाते हैं। उनकी उम्र १४-१८ वर्ष के बीच की है। जैसे ही गाड़ी आगे बदती है बाहर खड़ी भीड़ गाड़ी पर पत्थरबाजी करने लगती है। पुलिस वाले गाड़ी से उतरकर पत्थर चलाने वालों को खादेरने में लग जाते हैं। इसी बीच पकड़े गए लड़कों में से दो हाथ छुडा भागने में सफल हो जाते हैं। थोडी दूर तक पुलिस उनका पीछा करते है और फ़िर वापस आकर गाड़ी में बैठ जाते। लगभग हर परीक्षा के दौरान इस प्रकार का दृश्य बनता है। लेकिन भैया घबराने की कोई बात नहीं ये अब एक सच्चाई बन गई है। और पड़ने वाला लड़का भी इसे आजमाने को मजबूर होता है वरना वो औरों से पिछड़ जायेगा।

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