Thursday 28 February 2008

लोकतंत्र में कॉमन मैन का क्या काम!

दुनिया में लोकतंत्र के दो बड़े स्तंभों भारत और अमेरिका में चुनाव का माहौल बनने लगा है। अमेरिका में चुनाव इसी साल है तोइंडिया में अगले साल। दोनों जगह की सरकारें अब लोगों को लुभाने में लग गई हैं। अमेरिका में कोई लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं देने का सपना दिखा रहा है तो कोई विदेश निति का झांसा दे रहा है। याद करिये भारत में भी कुछ ऐसा चल रहा है। दोनों जगह का मामला अमूमन एक जैसा ही है। भारत के लोग धार्मिक मामलों पर थोडा भावुक है इस कारण यहाँ धार्मिक मसले भी छाये हुए हैं। अमेरिका में कुछ अलग मसला है। वहाँ मामला बहुदेशिये है इसलिए अफ्रिका, एशिया और तमाम नश्लों के लोगों का मसला उठ रहा है।

दोनों जगह राजनीति का सबसे बड़ा मोहरा कॉमन मैन बना हुआ है। अमेरिका में उम्मीदवार वहाँ के कॉमन मैन को बेरोजगारी और स्वास्थ्य सुविधा और विश्व दरोगा अमेरिका बने रहने का सपना दिखा रहे हैं। लेकिन एक बात ध्यान रहे की दुनिया में सबसे ज्यादा अमेरिकी लोग हैं जो दुसरे देशों की लड़ाई लड़ रहे हैं। लगभग हर देश में अमेरिका अपने बड़े लोगों की सम्पति और कारोबार बचाने के लिए शान्ति का लबादा ओढ़कर लड़ाई लड़ रहा है। और उसके लाखों सैनिक जवान दुसरे-दुसरे देशों में लड़-मर रहे हैं। ये जवान वहाँ के कॉमन मैन हैं। जो अमेरिका के आर्थिक सुपर पॉवर बनने से फायदा नहीं उठा पाये हैं। और आज भी कम पैसे में ख़ुद की जान जोखिम में डालने को तैयार हैं। कमोवेश यही हालत भारत के कॉमन मैन का भी है।

शायद आपको याद हो, हामरे देश में जिस पार्टी का राज है उसका नारा भी- हमारी पार्टी का हाथ, आम आदमी(कॉमन मैन) के साथ' । आजादी के ६० सालों बाद भी आज लगभग हर चुनाव में सभी पार्टियां कॉमन मैन के लिए अपने आश्वासनों का पिटारा खोल देती है। सभी के दावे एक से बढ़कर एक। लेकिन अगले ५ साल में फ़िर से वही वादे-वही आश्वासन। और कॉमन की हालत तो ऐसी है की इतनी सरकार आई और काम करती रही। प्रगति के तमाम रिपोर्ट भी पेश होते रहे लेकिन कॉमन मैन का पेट है की भरने का नाम ही नहीं ले रहा है। भारत के आम लोग ऐसे हैं की इतने सालों तक सरकार के और हमारे नेताओं के अथक परिश्रम को बेकार कर देते। भारत का स्थान विकास सूचकांक में १०० के करीब पहुँच गया लेकिन यहाँ के लोग हैं की ख़ुद को संपन्न बना ही नहीं पा रहे हैं। लेकिन ये एक सच्चाई है की यहाँ का कॉमन मैन है और कॉमन ही रहेगा। और आने वाले चुनाव भी इसी कॉमन मैन के बूते पार्टियां लड़ती रहेंगी..... कॉमन मैन तेरी यही कहानी..हाथों में झंडा और मुंह में नारा लेकिन अनवरत रहेगा आँखों में है पानी.

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