Sunday 24 February 2008

कबूतरबाजो, गुर्दागर्दो का नया हब है भारत!

भारत में आजकल रोज विकास के नए-नए मापदंड बन रहे हैं। हमारा प्यारा देश भारत पहले सोने की चिडिया था--ऐसा ही मैंने बचपन में किताबों में पढा था। लेकिन अब जबसे अखबार पढने की आदत लगी है कुछ शब्द लगभग रोज कई-कई बार(और बड़े-बड़े शब्दों में भी--जिनपर आँखे टिकाना मजबूरी बन जाए) पढने पड़ते हैं। इनमें कबूतरबाजी और आजकल 'गुर्दागर्दी' शब्द खूब छाये हुए हैं। इसके साथ ही व्यापारियों की दो नई कॉम भी सामने आई है-- कबूतरबाज़ और गुर्दागर्द।

ये दोनों व्यापार इतना मालामाल लगने लगें हैं की कई लड़के तोअब इस कारोबार को अपनाने पर गंभीरता से सोचने लगे हैं। हों भी क्यों ना जो लोग भी इस कारोबार से जुड़े पकड़े जाते हैं टीवी चैनलों पर कई दिनों तक छाये रहते हैं। इतना ही नहीं फरारी के दौर में जब ये पकड़े जाते हैं तो करोडो रूपये के साथ। अब अपने किडनी कुमार जी को देख लीजिये जब ये नेपाल में पकड़े गए तो इनके पास से लगभग डेढ़ करोड़(?) रुपया का देशी-विदेशी नोट पकडा गया। उनके बारे में कई दिनों तक अखबारों और टीवी चैनलवों पर ख़बर चलता रहा की इस देश में इनकी इतने करोड़ की sampati है तो falanaa देश में इनके इतने बैंक बैलेंस हैं। इतना ही नहीं अब कबूतरबाजी के धंधे में ही फायदा देखिये कितना ज्यादा है की बड़े-बड़े लोग इस काम में शामिल होने लगे हैं। भी जब इतना फायदा है तो नई पीढ़ी के लोग इस धंधे की ओर आयेंगे ही।

आने वाले २० सालों के बाद जब हमारे देश के इतिहासकार देश का इतिहास लिखने के लिए अखबारों के कतरन से कुछ उठाएंगे तो भारत के आर्थिक विकास के आयामों में इन हस्तियों का नाम बड़े गर्व से लिखेंगे। इतना ही नहीं उस दौर की कवितायें भी कुछ इस तरह की होंगी--- मेरे देश की धरती कबूतरबाज़ उगले, उगले गुर्दागर्द॥ मेरे देश की धरती........फ़िर ये गाने उस वक्त के सभी राष्ट्रिय त्योहारों मसलन वैलेंटाइन डे, माता दिवस, पिटा दिवस, पत्नी दिवस जैसे महान अवसरों पर गाए जायेंगे।..................

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