अगर आप ये सोचते है कि आपके घर के ड्राइंग रूम में लगा टीवी सेट बस मन बहलाने का एक जरिया भर है और ये कोई ऐसा मैटर नहीं है जिसपर हम गंभीरता से सोचे और बहस करें तो फिर आप गलत सोचते हैं। वो जमाना गया जब टीवी को बुद्धू बक्सा समझ हम इसकी गंभीरता से पल्ला झाड़ लेते थे और टीवी को खाने-पीने के बाद के एक डोज और छुट्टी के दिन का टाइमपास मान कर चलते थे. बल्कि अब टीवी एक ऐसी चीज है जिसे आपके बच्चे सबसे ज्यादा देखते हैं, जिसके साथ आपके परिवार की महिलाएं अपना पूरा दिन बिताती हैं और जिसके मार्फ़त आपको देश-दुनिया की तमाम खबरें और गतिविधियों की जानकारी मिलती है. एक ऐसा माध्यम जो आपके बच्चो को आज की दुनिया से जोड़ता है और जिनपर आपके बच्चों के लिए कई शैक्षिक कार्यक्रम भी आते हैं. जो आपके बच्चों के लिए रोल मॉडल तैयार करता है और जो आपके घर में आने वाले सामान की पसंद और नापसंद निर्धारित करता है. यानि कि टीवी आपके घर में मौजूद वह जरिया है जिससे आपके घर का भविष्य और वर्तमान जुड़ा हुआ है. इसलिए आपको बिलकुल इस बात से मतलब होना चाहिए कि आपका टीवी क्या दिखाता है वह आपके बच्चों के लिए कैसा रोल मॉडल पेश कर रहा है और उसका समाज पर क्या असर होगा. यह देखना आपके लिए उतना ही जरुरी है जितना कि यह देखना कि आपके घर में आने वाला अनाज-दूध कितना शुद्ध है, आपके बच्चे के स्कूल में कैसी पढाई होती है, आपके बच्चे का फ्रेंड-सर्किल कैसा है॥वगैरह..वगैरह.
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टेलीविजन चैनलों से प्रसारित सामग्रियों से संबंधित संहिता यानि कि कंटेंट कोड का मुद्दा फिर नई सरकार के आने के बाद आगे बढ़ता दिख रहा है। सरकार इसे लेकर काफी गंभीर भी है लेकिन इसे आगे चलाकर लागू करा पाना काफी मुश्किल काम है. टीवी इंडस्ट्री की ओर से इसे रोकने के लिए पूरा दबाव बनाया जायेगा. उनके लिए ये मसला केवल व्यावसायिक है लेकिन सरकार के लिए ये मसला जनहीत से जुड़ा है और इसका असर काफी व्यापक हो सकता है.
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काफी सारे अच्छे कार्यक्रमों और ख़बरों के बीच टीवी पर बहुत कुछ ऐसा भी दिखाया जा रहा है जिसे रोकना बहुत जरुरी है। समाचार चैनलों पर धार्मिक स्टोरीज के नाम पर दिखायी जा रही खबरें क्या होती हैं कुछ के शीर्षक इस प्रकार के होते हैं--फिर पड़ रहे हैं विष्णु के कदम समंदर के बाहर. युधिस्ठिर से बदला लेने को उतारू है समंदर, युधिस्ठिर के पीछे अब भी चल रहा है उनका कुत्ता, अब भी कहीं घूम रहा है अस्वस्थामा, इन्द्र से अपमान का बदला लेने वाला है समंदर॥वगैरह.वगैरह. ऐसी खबरें रोज किसी न किसी समाचार चैनल पर चलती हुई दिख जाती हैं. उनके लिए जिन फूटेज का प्रयोग किया जाता है वे टीवी पर चलने वाले किसी धार्मिक सीरियल का हिस्सा होते हैं. पारिवारिक धारावाहिकों के नाम पर न जाने टीवी पर क्या-क्या परोसा जा रहा है. घर के अन्दर चलने वाली राजनीति, परिवार के अन्दर चली जा रही कुटिल चालों और कमजोर होते आपसी विश्वास को इस कदर भयंकर रूप में सजा कर दिखाया जा रहा है कि जिन्हें परिवार नामक व्यवस्था में थोडा-बहुत विश्वास रह भी गया है वे भी इसे देखकर दांतों तले उँगलियाँ दबा लें.
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कल ही देख रहा था भूत वाला एक सीरियल। उसमें भूत बना एक छोटा सा लड़का... जिसकी उम्र करीब ४-५ साल दिखाई जा रही है वह कहता है कि उसे प्यास लगी है वह खून पिएगा. अब बताओ ५ साल के एक बच्चे से ये डायलाग बोलवाने का क्या मतलब है. क्या मकसद है इन कार्यक्रमों को चलाने का. यही न कि टीवी वाले लोगों के अन्दर व्याप्त डर को बेच रहे हैं. जासूसी सीरियल्स के नाम पर अपराध करने और उससे बचने के नए-नए तरीके रोज सिखाये जा रहे हैं. व्यावसायिकता के अंध-अनुकरण में फंसे टीवी चैनल वाले पश्चिमी देशों में बनी सी-ग्रेड की फिल्मों का हिंदी अनुवाद कर उन्हें दिखाने लगे हैं. उनके अनुवाद की भाषा और उन फिल्मों में दिखाए गए दृश्य हमारे समाज में किस हद तक दिखाए जाने चाहिए इसकी फ़िक्र किसी को नहीं है. भाषा और दृश्यों में फूहड़ता लिए इन फिल्मों को किस हद तक काट-छाँट कर यहाँ प्रस्तुत किया जाना चाहिए इसे भी देखने की जरुरत है.
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हम माने या न माने लेकिन टीवी एक ऐसा मसला है जिसपर हमें, आपको और हम सब को सोचना पड़ेगा और पूरी गंभीरता के साथ. क्यूंकि ये अकेला ऐसा जरिया है जो देश-दुनिया की अच्छी-बुरी बातों को आपके घर के अन्दर तक ले आता है. आपके घर के लोगों को सूचनाओं, रहन-सहन और जीने के तौर-तरीके सिखाने में भी टीवी का स्थान अव्वल है. फिर क्यूँ नहीं हमें इसपर गंभीरता के साथ सोचना चाहिए? फिर समाज को क्यूँ नहीं इस बात पर नज़र रखनी चाहिए कि टीवी पर क्या दिखाया जा रहा है.
2 comments:
अजी छोडिये, ये सब कहाँ रुकने वाला है. टीवी वाले भी वही बेच रहे हैं जो बिक रहा है. वरना ऐसे कार्यक्रमों का टीआरपी इतना ऊपर कैसे पहुचता. अब बेचारे व्यापारी हैं जिस चीज की बाज़ार में डिमांड होगी वही बेचेंगे न..
अच्छा विमर्श हो गया !
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