चुनाव ख़त्म हो गया। जनता ने दगा दे दिया और किस्मत ने भी साथ नहीं दिया। हमें क्या मालूम था इस तरह से बिसरा देगी जनता हमारे काम को। क्या-क्या नहीं किया इस कृतघ्न जनता के लिए. जिस जनता के हाथों में एक अदद ग्लास तक नहीं थी उसे कमंडल वगैरह बटवाए... मस्जिद-मंदिर की लड़ाई खड़ी की... रथ यात्रायें की...इस दौरान न तो धूप देखा और न बरसात का भय अपने ऊपर हावी होने दिया. बस एक गलती तो की थी. इतनी छोटी सी बात की इतनी बड़ी सजा. अरे जबान है फिसल गई... ये समझना चाहिए था न. हमने तो अपनी इमेज चमकाने के लिए पडोसी देश के कायदे आजम की तारीफ कर दी थी ताकि जब वापस अपने देश लौटूं तो सेकुलर नेता के रूप में स्वागत के लिए लोग तैयार दिखे. लेकिन बेवकूफ जनता ने न जाने क्या समझ लिया. उल्टे पीछे पड़ गए सब. पार्टी अध्यक्ष का पद तक छीन लिया।
फिर बड़ी मेहनत से हमने खुद को झाड़-पोछ कर नए प्रोडक्ट के रूप में बाज़ार में उतारा। इस बार इन सबसे ऊपर उठकर हमने खुद को पीएम-इन-वेटिंग के रूप में लोगों के सामने रखा। इसके लिए कितनी मेहनत करके अपने ऊपर किताब लिखा। देश के विभिन्न शहरों में उसके विमोचन के लिए कार्यक्रम कराये. लोगों तक अपने किताब की खबर पहुँचाने के लिए मीडिया वालों पर न जाने कितने खर्च करने पड़े. अपनी छवि चमकाने के बाद उतरे थे हम चुनाव के मैदान में. कितना खर्च करना पड़ा था इस जनता को लुभाने के लिए. देश भर में न जाने कितनी रैली, कितनी चुनावी सभाओं में बोलते-बोलते गला ख़राब हो गया. वादों और आश्वासनों को गढ़ते-गढ़ते बचपन से याद किये गए सारे शब्द ख़तम हो गए. इतना सारा कुछ कोई करता है क्या किसी गैर के लिए. अरे हमने तो इस देश की जनता को अपना माना था मुझे क्या मालूम इस जनता का दिल मोम का नहीं पत्थर का है. लगा था मेरे इन कामों को देखते हुए देश की जनता जरूर मेरी इज्ज़त का ख्याल रखेगी. जिस जनता के लिए इतना कुछ किया वो मेरे जुमले पीएम-इन-वेटिंग को मेरे लिए गाली थोडी ही बनने देगी. लेकिन इस अवसरवादी जनता ने ऐसा नहीं किया और गच्चा दे दिया. इस हार से हम इतने शर्मिंदा हैं कि अब घर से बाहर निकलने का जी नहीं करता है मेरा. मैंने तो सोच रखा था सब छोड़ कर चला जाऊंगा कैलाश पर्वत पर मंथन करने. लेकिन पार्टी ...पीछा छोडे तब न. मेरे हटने की खबर सुनते ही पार्टी के नेताओं में मेरी खाली जगह भरने के लिए जैसे होड़ मच गई. इस माथा-फुटौवल से पीछा छुडाने के लिए सबने फिर मुझे जाने ही नहीं दिया और हम फिर से वहीँ के वहीँ रह गए. लेकिन कोई बात नहीं हमने एक बैठक की है और आगे के लिए अपना एजेंडा तय किया है।
हमने तय किया है कि हम अब पार्टी को संसद से सड़क तक चाक-चौबंद करेंगे. संसद में हम जहाँ मजबूत विपक्ष के रूप में नजर आने का प्रयास करेंगे वहीँ बाहर संगठन चुनावों के जरिए भावी चुनौतियों के लिए अपने को चाक-चौबंद करेंगे. भाई इस बार चूक गए तो क्या... अगली बार तो नहीं छोडेंगे. यहाँ तक कि हमने तो संगठन को चुस्त दुरुस्त करने की तैयारी भी शुरू कर दी है। हमने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक अगले महीने रखी है और पहले इसमें इस चुनाव में अपनी हार के कारणों की समीक्षा करेंगे फिर आगे की रणनीति पर विचार करेंगे. इसके साथ ही हम चिंतन बैठक भी करेंगे. फिर पार्टी को खूब धो-पोछ कर बाज़ार में नए ब्रांड के कवर में लपेट कर लायेंगे. इसके प्रचार पर भी खूब ध्यान देना होगा. किसी अच्छे से विज्ञापन राइटर से स्क्रिप्ट लिखवाकर जनता के सामने टीवी, रेडियो और अख़बार के जरिये परोसेंगे। उस समय के किसी मशहूर और धासु गाने के अधिकार खरीद कर उसे अपने नारे की चाशनी में लपेटकर जनता के सामने परोस देंगे. फिर देखेंगे कैसे हमारी बातों में नहीं आती है जनता. इतनी ओवर हौलिंग के बार हम एकदम नए दिखेंगे...एक दम चकाचक--- एकदम ब्रांड न्यू...
7 comments:
हा.हा.
एक बेहतर व्यंग्य..
amusing one!
amusing one!
बढिया गुरु.. लेकिन अभी चाकचौबंद करने की ज़रुरत क्या है। जैसे शादी की पार्टी में लोगों के आने से ऐन पहले सलाद काटा जाता है वैसे ही अगले चुनाव से ऐन पहले पार्टी चमकाई जाएगी।
व्यंग तो ठीक है लेकिन यह सोचना पड़ेगा की क्या बीजेपी की हार का जिम्मेदार सिर्फ अडवाणी जी ही हैं लगता तो यही है की बीजेपी चुनाव लड़ना ही नहीं चाहती थी. वैसे पार्टी को कमंडल तो ज़रूर अडवाणी जी ही ने दिया था. इस कमंडल का नतीजा क्या निकला था. उनके परिश्रम से ही पार्टी २ सीट से २००४ में सरकार बनाने में सफल हुई. क्या आप इन बातों को भूल गए ----------------सरजी. ठीक है इस बार चूक सिर्फ अडवाणी से नहीं पूरी बीजेपी से हुई है तो व्यंग पूरी बीजेपी पर होना चाहिए
व्यंग तो ठीक है लेकिन यह सोचना पड़ेगा की क्या बीजेपी की हार का जिम्मेदार सिर्फ अडवाणी जी ही हैं लगता तो यही है की बीजेपी चुनाव लड़ना ही नहीं चाहती थी. वैसे पार्टी को कमंडल तो ज़रूर अडवाणी जी ही ने दिया था. इस कमंडल का नतीजा क्या निकला था. उनके परिश्रम से ही पार्टी २ सीट से २००४ में सरकार बनाने में सफल हुई. क्या आप इन बातों को भूल गए ----------------सरजी. ठीक है इस बार चूक सिर्फ अडवाणी से नहीं पूरी बीजेपी से हुई है तो व्यंग पूरी बीजेपी पर होना चाहिए
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