Tuesday 5 May 2009

चुनावी मैदान से सकुशल पीछे हटने की कला...

टीवी पर एक उम्मीदवार के चुनावी मैदान से पीछे हटने की खबर देखकर आज अचानक मुझे अपने एक मित्र की याद आ गयी। उन्हें राजनीतिक व्यक्ति कहना तो नहीं चाहता लेकिन उनकी और कोई पहचान भी नहीं है।वे पिछले २५ सालों से राजनीतिक गलियारों में वैसे ही टहलते रहे हैं जैसे उनका घर हो, उनका बगीचा हो. अपने हर बात में पूरे जोश के साथ वे कहते हैं कि भाई हमने सर के बाल ऐसे ही नहीं सफ़ेद किये हैं इस गलियारे में ढाई दशक बिताये हैं और सबकी रग-रग से वाकिफ हैं. हालाँकि इस दौरान उन्हें किसी ने सीरियसली नहीं लिया. मेरे बार-बार सीरियसली नहीं लेने के बावजूद भी वो अक्सर मेरे करीबी बन बैठते हैं. हर महीने उनके किसी नए प्रस्ताव के लिए मैं तैयार रहता हूँ. हर बार वे किसी नए आईडिया के साथ उपस्थित होते हैं और उस आईडिया के फ़ेल होने तक मुझे उन्हें झेलना होता है. हर बार उनका कहना होता है कि ये फ्लॉप होने वाला आईडिया नहीं है और दुनिया में उन्होंने केवल मुझे ही इस बारे में बताया है. मुझे उनसे कोई दिक्कत नहीं होती क्यूंकि मैं पहले दिन से ही उनके आईडिया के फ्लॉप होने को लेकर आश्वस्त रहता हूँ. और इस भावना के साथ मैं उन्हें हर बार झेल जाता हूँ. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के ६ माह पहले एक दिन अचानक मेरे उन मित्र का फोन आया. चौंका देने वाले अंदाज में उन्होंने मुझे एक बहुत जरूरी बात का वास्ता देकर शाम में मिलने के लिए मना लिया. शाम में मिलने पर उनके चेहरे की चमक बता रही थी कि इस बार भाई साहब फिर किसी धांसू आईडिया के साथ हाज़िर हैं. आते ही उन्होंने हाथ में कुछ कागज निकालकर दिखाया. एक विधानसभा क्षेत्र का पूरा ब्यौरा था. भाई साहब ने अपनी जेब से अपना कार्ड निकाला और अपने पोस्टर भी दिखाए. बिल्कुल नए अंदाज में खिचवाए फोटो में भाई साहब एकदम झकास दिख रहे थे. भाई साहब ने छूटते ही कहा भाई इस बार मैं चुनाव लड़ने जा रहा हूँ. मेरे आर्श्चय का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि मैं उनकी माली हालत जानता था और आज के वक्त के चुनावी खर्चे के फैशन से भी अनजान नहीं था. मैंने पूछ डाला- भाई साहब इस अनजान शहर में और बिना जेब की इजाज़त के अचानक इस तरह का विचार कैसे आया. उन्होंने अपनी बात बहुत साफ़ अंदाज में समझाई. उनकी बातों को मैं उन्हीं के शब्दों में रख रहा हूँ--- "भाई सच्चाई ये है कि हमने अबतक की अपनी जिंदगी में केवल राजनीति की है और अब हम कोई और काम नहीं कर सकते. राजनीति के चक्कर में अपना शहर अपना राज्य छूटा और अब यहाँ आकर क्या कर सकते हैं. सच्चाई ये है कि हमारे लिए हार-जीत कोई मायने नहीं रखती और जबतक हम राजनीतिक हैं तभी तक जिन्दा है और जब हम राजनीति से दूर हो जायेंगे- ख़त्म हो जायेंगे."--- साफगोई से अपनी बात कहते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने एक हिंदूवादी दल के चुनाव चिन्ह पर पर्चा भी दाखिल कर दिया है. उन्होंने चुनाव की पूरी रणनीति भी मुझे समझाई. पूरे आत्मविश्वास से लबालब वे मुझे लेकर अपने इलाके में निकल पड़े. रास्ते में उनके रणनीतिकार कई मित्र लोगों के यहाँ रुकने पर मुझे राजनीति के बारे में कई नए अनुभव हुए. मसलन मोर्चे निकालने के लिए और उसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल करने के लिए क्या तैयारी करनी पड़ती है, कैसे आपके सभाओं में लोग आते हैं, उनके कई मित्रों ने सभा के लिए लोगों को लाने का ठेका लिया और साथ ही उसपर आने वाला खर्च भी उन्हें बता दिया. सभाओं के दौरान भीड़ जुटाई जाये इसके लिए एक गायक महोदय से भी उनकी बाते हुई. सारी तैयारियों को देखकर मुझे थोडा-थोडा भरोसा होने लगा कि शायद पिछले दिनों में इन्होने अपने इलाके में जान-पहचान बढाकर चुनाव लड़ने लायक स्थिति में खुद को ला दिया है. सब नज़ारे देखने के बाद मुझे भी वक्त देने का वचन देना पड़ा. लेकिन गाँव जाने के लिए मैंने एक हफ्ते तक न आने की मजबूरी बताई और वापसी के बाद उनके इलाके में काम करने का वचन दिया.

एक हफ्ते बाद वापस आकर अपने वचन के अनुसार मैंने उन्हें सूचना देने के लिए फोन किया कि मैं वापस आ गया हूँ और अब आपको समय दे सकता हूँ। उनकी भाषा बदली हुई थी और उन्होंने तुंरत खुशखबरी सुनाई- भाई मैंने इलाके के हित के लिए चुनाव से अपना नाम वापस ले लिया है। मैंने कहा फिर क्या करना है. उनका जवाब था कि भाई मैंने फलाना पार्टी के लिए चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है. इसके साथ ही उन भाई साहब ने नयी पार्टी जो कि उनके पहले वाले दल की विचार के स्तर पर पूरी तरह विरोधी थी की जमकर तारीफ शुरू कर दी. इतना ही नहीं जल्द ही उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन भी दिखने लगे। जब मैं उनके घर पहुंचा तो उनके घर में रंग-रोगन का काम लगा हुआ था और भाई साहब का जोश दुगुना-चौगुना दिख रहा था। कल तक एक-एक पैसे के लिए रोने वाले भाई साहब ने अपना आगे का आईडिया सुना डाला. भाई साहब जल्द ही व्यापर शुरू करने वाले थे और इस बार उन्होंने किसी संभावित फाइनेंसर का नाम लिए बिना व्यापार की अपनी योजना सुना डाली. हैरानी में मैं उनके चेहरे को ताक रहा था. आखिर चुनाव में खडा होने और फिर बैठ जाने के दौरान इतनी ताकत कहाँ से आ गयी इनमें. हमें छोड़ने के लिए वे मोहल्ले में निकले और लोगों से अपनी नयी पार्टी के बारे में उसी अंदाज से बात करते जा रहे थे जैसे १० दिन पहले पिछली पार्टी के बारे में करते उन्हें देखा था. उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी. मैंने इसका कारण पूछा तो उन्होंने फिर साफगोई के साथ कहा- तुम नहीं समझोगे यही राजनीति है॥
धीरे से कहे हुए उनके ये शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे...मेरे लिए ये भी एक नया राजनीतिक ज्ञान था.