Monday 18 May 2009

ई का हो गवा रे...नेताजी का सब खेले गड़बड़ा गवा...

हाँ तो हम बात कर रहे थे अपने नेताजी की। रात में अलार्म लगाकर सोये थे कि सुबह चुनाव परिणाम आने वाला है और रामफल पंडित की बात सच निकली तो उनकी किस्मत का दरवाजा आज खुलने वाला है. सुबह हुई, अलार्म बजी और नेताजी जल्दी-जल्दी तैयार हो मतगणना केंद्र की ओर चल पड़े. निकलते वक्त उनकी पत्नी ने टीका लगाया ये सोचकर कि शायद आज पति महोदय की किस्मत साथ दे ही दे. हाँ तो नेताजी समय पर मतगणना केंद्र पहुँच गए. नेताजी काफी कांफिडेंट थे आखिर रामफल पंडित का कहा सच काहे न होगा. नेताजी की नज़र मतगणना कक्ष से बाहर आ रहे हर आदमी पर थी. बाहर बोर्ड पर लिखे जा रहे हर अपडेट को नेताजी अपनी किस्मत की ओर बढ़ता कदम मान कर चल रहे थे. लेकिन वैसा नहीं हो पाया जैसे नेताजी ने सोच रखा था.

धूप चढ़ती गई और चुनाव का परिणाम आ गया। नेताजी दौड़ में बहुत पीछे रह गए थे. सामने से जब विजयी उम्मीदवार का जुलूस चला तो नेताजी भी घर की ओर रुख किये. एक-एक कदम ऐसे भारी लग रहा था जैसे किसी ने सैकड़ों टन वजन पैरों में बाँध दिया हो. घर जाने की हिम्मत नहीं हुई और गाँव के पहले चौराहे से ही नेताजी ने रामलाल के चाय की दुकान की ओर रुख किया. लेकिन वहां जाना भी उनके लिए ठीक साबित नहीं हुआ. इलाके के कई लोग वहां बैठे थे और जमानत जब्त करवाकर लौटे नेताजी की खिल्ली उडाने से कोई चूकना नहीं चाहता था. नेताजी को आज महसूस हो रहा था कि अच्छा होता रामफल पंडित की बातों में नहीं आता. इस तरह इलाके के लोग खिल्ली तो नहीं उडाते. वहा से हटकर नेताजी पास के बगीचे में बने चबूतरे पर बैठ गए. कई सप्ताह बाद नेताजी को अकेले बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. वरना जबतक चुनाव चला लोग उनको घेरे रहते थे. आज सुबह भी माधव, पूरण, चंदर वगैरह उनके साथ ही आये थे मतगणना केंद्र तक. लेकिन हारने के बाद धीरे-धीरे बहाना बनाकर कट लिए. बाद में नेताजी ने उन्हें विजयी उम्मीदवार के जुलूस में झूमते हुए देखा था. लेकिन अब कर भी क्या सकते थे. अब नेताजी को इस सब लोगों पर खर्च किये का अफ़सोस हो रहा था.

नेताजी जैसे अतीत की गहराइयों में डूब गए। कहाँ कल तक देखा करते थे संसद में पहुचने के सपने. आज संसद तो क्या घर में घुसने की भी हिम्मत नहीं हो रही है. नेताजी को मालूम था क्या होने वाला है घर पहुचने पर. पत्नी जो सुबह आरती लेकर बिदाई दे रही थी. घर पहुचते हीं हल्ला मचा देगी. मोहल्ले के लोग सुने तो सुने लेकिन वो कहाँ बख्शने वाली है आज. कल नेताजी ने प्लान बनाया था सरकार को समर्थन देने तक पार्टी उन्हें किसी पहाडी इलाके में छुपा कर रखेगी और वे अपने परिवार के साथ घूमने का मजा ले सकेंगे. अभी ये योजना उन्होंने मन में ही रखी थी आज जीतने के बाद बताने वाले थे. लेकिन उनकी बीवी को इससे क्या. इलाके के वोटरों ने उनके सारे सपने की वाट लगा दी. घर के अलमारी में धुलकर रखवाई सिल्क का कुरता-पजामा और चमकदार जूता जो उन्होंने जीतने के बाद पहनने के लिए बनवाया था उन्हें गाली देते हुए प्रतीत हो रहे थे. हल्का अँधेरा घिरने के बाद वे सर झुकाए घर की ओर निकले. सोचा अब कोई नहीं टोकेगा और मजाक नहीं उडाएगा. एक बार घर पहुँच जाये तो कुछ दिन बाहर नहीं निकलेंगे. जब सब लोग शांत हो जायेंगे तब ही निकलेंगे मोह्हल्ले में.

अभी नेताजी अपनी गली में मुड़े ही थे कि पता नहीं कहाँ से खेदन धोबी की नजर उनपर पड़ गई. . नेताजी ने लाख बचना चाहा लेकिन उस कमबख्त ने टोक ही दिया. अरे नेताजी अपना कुरता और को़ट तो लेते जाइये. ये कहते हुए उसने नेताजी का रेशमी कुरता, गरम को़ट और गमछा पकडा दिया. अब नेताजी उस बेवकूफ को क्या कहते, हाथ में टांगे घर की ओर बढे. नेताजी ने को़ट धुलने को ये सोचकर दे दिया था कि जीतने के बाद अगर पार्टी की ओर से उन्हें किसी बर्फिले इलाके या किसी ठंडे इलाके में स्थित हील स्टेशन में छुपाया जायेगा तो ये कोट काम आएगा. लेकिन आज नेताजी को हाथ में टंगा को़ट उनके सपनो की लाश के समान लग रहा था. घर के सामने आकर नेताजी ने दरवाजे पर निगाह डाली. काफी हिम्मत बटोर कर नेताजी ने दरवाजे की ओर कदम बढाया. लेकिन आज उनके कदम उनका साथ नहीं दे रहे थे और घर किसी अँधेरी गुफा के समान लग रहा था. उन्हें लग रहा था कि आज जो अन्दर गए तो फिर कभी बाहर नहीं निकल सकेंगे...

2 comments:

अनिल कान्त said...

ha ha ha :)

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

मज़ेदार! हालांकि नेता लोग इतनी पतली चमड़ी के होते नहीं हैं.