Saturday 16 May 2009

वोटर युग का अवसान अब बस होने ही वाला है!

भारतीय लोकतंत्र का मैं भी एक वोटर हूँ। अब यानी कि १५ मई की आधी रात को मुझे लगाम अपने हाथ से छूटती हुई दिख रही है. वैसे तो १३ मई से ही हम जैसे वोटर रुपी जीव खुद को असहाय महसूस करने लगे थे. लेकिन अब जाकर लगाम अपने हाथ से पूरी तरह बाहर जाती हुई दिख रही है. वैसे तो लोकतंत्र के बारे में कहा जाता है कि ये जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा चलाया जाने वाला शासन है लेकिन सच कहें तो अब अगले 5 सालों तक हम वैसे ही होंगे जैसे चिडियाघर के पिजरे में बंद शेर होता है. हम फुफकारते तो रहेंगे लेकिन कुछ कर नहीं सकेंगे. अब हमारा वक्त ख़त्म हो रहा है और हमारे नेताजी का युग शुरू हो रहा है.

हो भी क्यूँ न इसी दिन के लिए न जाने कब से मन्नत मांगते आ रहे थे हमारे नेताजी। उनकी अम्मा तो उनके सफल होने की बाट जोहते कब की इस दुनिया से रुखसत हो गईं। इतना ही नहीं नेताजी घर से बाहर रहने के कारण हमेशा अपने घर के लोगों की आलोचना के शिकार होते रहे हैं। प्रेमचंद के उपन्यास शतरंज के खिलाडी के पात्र नवाब साहब की तरह उनकी बीवी जब चाहे तब उनपर बरस उठती हैं- "आपको घर से क्या लेना-देना, हमेशा पता नहीं क्या भाषणबाजी चलती रहती है। पता नहीं कब काम के आदमी बनोगे। पूरी उम्र बीत गई इसी फालतूबाजी में." नेताजी ने इस बार देवी मां के यहाँ मन्नत मांग रखी है जीत कर आयेंगे तब जवाब देंगे इनको. तब हम भी दुनिया में सीना तानकर चल सकेंगे. तब हम देश के विशेषाधिकार प्राप्त नागरिक होंगे और जो चाहे कर सकेंगे. तब कोई दिखाए हमारी गाड़ियों के काफिले के रस्ते में आकर. ऐसे रौदेंगे कि पता भी नहीं चलेगा. एक एक चीज के लिए तरसे हैं लेकिन अब आ रहा है हमारा वक्त. देश के विकास में सहभागी बनने का, परियोजनाएं आगे बढ़ाने का, ठेकेदारी पास कराने का, देश पर हुकुम चलाने का...तब लेंगे अपने इलाके के अधिकारीयों की क्लास और लेंगे अपने साथ हुए हर बदतमीजी का बदला.

वैसे इन सब से पहले नेताजी को चुनाव में किये गए अथाह खर्च की वापसी की चिंता भी सता रही है। इसके लिए भी उन्होंने रोड मैप बना रखी है. भाई गठबंधन की राजीनीति के ज़माने में नेताजी को एकला चलने की नीति की ताकत और अपनी अहमियत अच्छी तरह मालूम है. इसलिए नेताजी अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं और संसद में पहुँच कर किसे समर्थन देंगे इसका फैसला सामने वालों की थैली का अंदाजा लगने के बाद ही करेंगे. इस मौके का इस्तेमाल नेताजी परिवार के संग किसी महँगी और सुंदर जगह की मुफ्त यात्रा के लिए भी करने वाले हैं. जिस दल से नेताजी का टाका भिडेगा वो बहुमत साबित होने तक किसी गुप्त जगह पर नेताजी को रखेगी ही. तब नेताजी कोई रमणीय स्थल का चुनाव करेंगे और अपने परिवार के साथ खूब मौज-मस्ती करेंगे.

वैसे नेताजी नए ज़माने के उसूलों से अनजान नहीं हैं। अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में उन्होंने ज़माने को खूब जांचा-परखा है. इसलिए उन्होंने संसद में पहुँचने के बाद---"बी प्रोफेशनल" शब्द को अपना मूलमंत्र बनाने का फैसला किया है-- वो भली-भांति जानते हैं कि उनके जीतने के बाद कैसे उनके रिश्तेदार जो कल तक उनको घास भी नहीं डालते थे अब उनको डोरे डालेंगे. इसलिए नेताजी ने प्रोफेशनल अंदाज अपना कर केवल उन्हीं लोगों का काम करने का फैसला किया है जो उनके आर्थिक विकास में सहायक सिद्ध हो सके और खुद के साथ-साथ नेताजी की आर्थिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सके.

आज का दिन नेताजी के ऊपर बहुत भारी गुजरा। दिनभर नेताजी रामफल पंडित के साथ बाहर के कमरे में बैठकर कुंडली में न जाने क्या तलाशते रहे. माफ़ करिएगा मैं नेताजी पर कोई आरोप नहीं लगा सकता, क्या पता नेताजी और पंडित रामफल मिलकर कुंडली और पंचांग में से देश का कुछ भला तलाश कर निकाल रहे हों. वैसे पंडित जी के कहने पर ही नेताजी ने राजनीति में दांव आजमाने का फैसला किया था. जब पंडितजी ने उन्हें कहा था कि आपकी कुंडली में तो राजयोग है और आपकी पांचों अंगुलियाँ मरते दम तक घी में डूबी रहेगी. काफी सोचने-विचारने के बाद नेताजी ने राजनीति में उतरने का फैसला किया था क्योंकि उनके अनुसार यही वो जगह थी जहाँ रहकर वे राज भोग सकते हैं और उनकी पांचों अंगुलियाँ घी में डूब सकती है वरना आज के आम आदमी को घी तो क्या दूध तक नसीब होना मुश्किल हो गया है...रात में सोते वक्त नेताजी ने घड़ी में अलार्म लगा लिया है कल सुबह जल्दी उठना है. पंडित रामफल की माने तो कल ही शुभ मुहूर्त है नेताजी के कुंडली में लिखे राजयोग के पूर्ण होने का...

4 comments:

Anonymous said...

वोटर बन-बन जीवन बीता...अपना भय न कोय
ढाई आखर बेईमानी का, पढ़े सो सफल आज होय...

Udan Tashtari said...

अब तो निकल ही चुकी है कमान!!

अब हाथ बाँध कर तमाशा देखिये.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

चिंता मत करिए पांच साल बाद फिर कमान आपके हाथ में होगी. और अगर फिर चूक गए तो पांच साल बाद फिर, और अगर अगर फिर चूक गए तो 5 साल बाद फिर, और अगर फिर ...... इसीलिए तो लोकतंत्र बना है. हम कमान चूकते रहें और अगले 5वें साल का इंत्ज़ार करते रहें.

AMBRISH MISRA ( अम्बरीष मिश्रा ) said...

achcha hai andaaz aur bhi bahut khuch

likhte rahoooooooooooooooo