Friday 27 March 2009

कुछ शब्द मां के लिए...

भरी दुपहरी में, जलती रेत पे चलते-चलते
जब भी मेरे पांव जवाब देने को होते है,
उखड़ने को होती है मेरी साँसे
जब सो जाना चाहता हूँ मैं भी
वक्त के निर्मम छाँव में...

तभी मेरे जेहन में आ बसता है
उस मां का चेहरा
जिसकी उम्मीदों और अपेक्षाओं का
आखिरी सिरा जुड़ा है मुझसे...
घर से निकलते वक्त
उम्मीद और आकाँक्षाओं से भरी
मुझे निहारती मां की आँखे...
और बाहर से सकुशल लौट आने की
उसकी हिदायते भी...

शायद ऐसे ही
हर किसी की जिंदगी में होता है
स्थान--- मां का...
और शायद ऐसी ही होती है
उसकी छाया....।

2 comments:

संगीता पुरी said...

कुछ ही शब्‍द ...पर बहुत बढिया लिखा ...मां के लिए ... बधाई।

Satish Chandra Satyarthi said...

दिल को छू गयी आपकी कविता