हमेशा मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथी धड़े के निशाने पर रहने वाली बंगलादेशी लेखिका तस्लिमा नसरीन ३१ मई तक भारत नहीं आ सकती। ऐसा सरकार ने उन्हें वीजा जारी करने के लिए दिए शर्तों में लिखा है. जाहिर सी बात है कि ऐसा इसलिए किया गया है ताकि तस्लिमा को चुनाव तक देश से बाहर ही रखा जाये. इसका सीधा सा मतलब है कि इसके पीछे ये डर है कि कहीं तस्लिमा के आने से देश का मुस्लिम समुदाय भड़क न जाये. जाहिर है सभी दल चुनावी मौसम में अपना कोई भी दांव ख़राब नहीं होने देना चाहते.
अब हाल ही में हुए कुछ राजनीतिक गठजोड़ पर गौर फरमाए. देश के सत्ताधारी दल ने कल ही एक ऐसे दल के साथ चुनावी गठजोड़ किया जिसने पिछले साल जॉर्ज बुश के सर पर करोडों का इनाम घोषित किया था. देश के विपक्षी दल के नेता उस नौजवान के पक्ष में गोलबंदी के लिए लालायित दिख रहे है जिसे कल तक कोई राजनीति में गंभीरता से नहीं ले रहा था और आज एक संप्रदाय विशेष के खिलाफ भड़काऊं बयान देकर वो रातो-रात हीरो बन गया है. जबसे चुनाव का माहौल बना है अल्पसंख्यक जमात के नेताओं को(कई तो बस अल्पसंख्यक दिखने भर की योग्यता रखते हैं) सभी दलों के नेता प्रेस कांफेरेंस के दौरान अपने बगल में बैठाते हैं. राजनीति में शामिल ऐसे ही धाकड़ राजनीतिज्ञों और देश का भविष्य सुधारने(शायद!) के काम में जुड़े महान लोगों को चिंता है कि कहीं तस्लिमा जैसे बेबाक लोग आकर उनके रंग में भंग न डाल दे. वे इतनी मेहनत से, इतनी तिकरम से लोगों को अपने से जोड़ रहे हैं लेकिन अब कोई आकर उनका काम ख़राब कर दे तो अखरेगा ही...इसलिए समय रहते ही कदम उठा लिया गया.
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