देश में जब से चुनावी मौसम शुरू हुआ है चारो ओर हरकंप मचा हुआ है। पार्टियाँ बन और बिगड़ रही हैं, गठबंधन पैदा हो रहे हैं और नेता लोग अपनी-अपनी औकाद के अनुसार अपनी जगह पकड़ रहे हैं। सत्ता पर कब्ज़ा ज़माने के लिए सब अपनी-अपनी गोटी फिट करने में मशगुल हैं। कई थके-हारे नेता धूल झाड़कर अचानक खड़े हो गए हैं और कई नए नेता चुनावी मैदान में उग आये हैं. जिन्हें कल तक कोई नहीं जानता था आज अचानक पोस्टर-बैनरों में छपकर वे गली मोहल्लों में चिपक गए हैं...बड़े-बड़े नारों और वादों की बाढ़ में घिरे कई गुमनाम चेहरे अचानक कुर्सी की लड़ाई में शामिल हो गए हैं. ये है देश में लोकतंत्र की सबसे बड़ी लडाई की तैयारी...कौन कहाँ बाजी मार ले कुछ कहा नहीं जा सकता यहाँ..इसलिए सबसे संभलकर से बात करना पड़ता है...पता नहीं इन छुटभैयों में से कौन कल को माननीय हो जाये...और देश के सम्मानित नागरिकों में गिना जाने लगे..इसलिए भैया कुछ भी बोलने से पहले दस बार सोचना पड़ता है...शायद लोकतंत्र का यही तकाजा है...
चुनावी लड़ाई में उतरने से पहले सभी दल तैयारी में लगे हुए हैं॥ जैसा कि सब कह रहे हैं और लोकतंत्र की हमारी किताब में भी लिखा हुआ है-- इन सबका मकसद आम जानता की भलाई और उनका हित करना है...अब आइये देखते हैं क्या तरीका अपना रहे हैं सब राजनीतिक दल जानता के दिल में अपनी जगह बनाने के लिए...दलों ने लोकप्रिय हुए गानों कि धुन खरीद ली है..प्रचार के दौरान उनके दल के नारों के साथ वो धुन बजेगा और उनका अभियान भी इन हिट गानों की तरह हिट हो जायेगा... लोकप्रिय फ़िल्मी कलाकारों और छक्का-चौका जड़ने वाले क्रिकेटरों को अपने से जोड़ने के लिए तमाम प्रयास हो रहे हैं। कई फ़िल्मी सितारों को मैदान में उतारा गया है और फिल्मों में उनके द्वारा निभाई गयी भूमिका को आधार बनाकर वोट मांगे जा रहे हैं. बिहार की सड़कों को ड्रीमगर्ल के गालों की मानिंद चमका देने का आश्वासन देने वाली हमारी राजनीतिक बिरादरी ने भाई को गांधीगिरी के काम पर लगा दिया है. गाँधीजी के द्वारा उपयोग किये गए चप्पल..कटोरे आदि सामान को राष्ट्रिय अस्मिता वाली चीज बताने वाली राजनीतिक बिरादरी अब उसकी कोई कोई सुध लेने को व्याकुल नहीं दिखती...कोई भारतीय अगर उसे नहीं खरीद लता तो ये भी एक चुनावी मुद्दा बना दिया जाता...गाँधी से बड़ा बिकाऊ राजनीतिक मसला अपने देश में और क्या मिल सकता था..वो तो कहो की किसी भारतीय ने नीलामी में इसे खरीदकर इसे राजनीतिक मसला बनने से बचा लिया...
इस चुनाव में एक नया शब्द मिला है--पीएम इन वेटिंग... सबके अपने-अपने प्रधानमंत्री हैं. हर दल के पास प्रधानमंत्री पद के लिए अपना एक उम्मीदवार है, और हर दल किसी गठबंधन से जुड़ा हुआ है..हर दल का पीएम अपने गठबंधन पर दबाव बना रहा है कि उसे गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाये. इसमें कुछ गलत भी नहीं है..अनिश्चितता के इस दौर में कब किसकी लौटरी लग जाये कुछ कहा नहीं जा सकता इसलिए पार्टी वालों के आलावा निर्दलियों के भी अपने पीएम इन वेटिंग होंगे..भले ही उन्होंने अभी अपना प्लान मन में ही रखा है...सब अपनी जगह पर हैं और जो गलत जगहों पर फंसे हुए हैं उनका भी जी-तोड़ प्रयास यही है कि जैसे भी हो अपनी मुक्कमल जगह हासिल की जाये...वैसे भी लोकतंत्र में सबको अपनी जगह हासिल होनी चाहिए..तभी जाकर लोकतंत्र अपने मानदंडो पर खरा उतर पायेगा..
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