Tuesday, 4 August 2009

बोल तेरे पास प्लास्टिक के और कितने थैले हैं...?

खबर में तो पढ़ा था लेकिन प्रत्यक्ष में कल पहली मर्तबा दर्शन हुआ। मिठाई की दुकान पर जब मिठाई वाले ने हाथ में मिठाई का डब्बा पकडा दिया तो ख्याल आया की थैली लाना तो अपनी आदत में शुमार ही नहीं है और अब तो दिल्ली में सरकार ने प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया है सो युहीं हाथ में टांगकर ले जाना होगा। लेकिन तभी देखा दुकानदार काउंटर के बगल से धीरे से हाथ बढाकर कुछ दे रहा था...मुट्ठी में दबाये हुए था...अचानक इस तरह का व्यव्हार देखकर थोडी घबराहट हुई फिर अपनेआप को संभलकर मैंने पूछा॥ क्या है...उसने धीरे से कहा- पालीथीन...दुकान के बाहर जाकर डब्बा इसमें रख लीजियेगा...मैंने देखा थैले पर उस दुकान की पूरी पहचान लिखी हुई थी फिर उसे छुपाकर देने का क्या फायदा. इतना ही जिस दुकान में प्लास्टिक का थैला इस तरह छुपाकर दिया जा रहा था उसी दुकान में कई ऐसे उत्पाद थे जो मोटे और ज्यादा मजबूत थैलों में खुलेआम रखे और बेचे जा रहे थे...तुर्रा यह कि सरकार ने केवल प्लास्टिक के थैलों पर ही प्रतिबन्ध लगाया है.

चारो ओर ताकते जैसे-तैसे सहमे हुए घर पहुचे कि कहीं रस्ते में जांच करने वाले न मिल जाए और मुफ्त में फंस न जायें। खैर ऐसा कुछ नहीं हुआ और सड़क पर सैकडों लोग हाथों में प्लास्टिक की थैलियाँ टाँगे इधर से उधर जाते-आते दिखायी दे रहे थे। उन्हें देखकर थोडी हिम्मत बंधी...इस डर ने घर आकर भी पीछा नहीं छोड़ा...रात को बिस्तर पर पड़े कब सपनो में खो गए पता भी नहीं चला...सपने में कल सुबह की तस्वीर दिखने लगी..सुबह दफ्तर जाते वक्त प्लास्टिक के थैले में खाना पैक कर बीवी हाथ में थमाती है.. बोझिल कदम आगे बढ़ने को तैयार नहीं होते...घर और बाहर के बीच आकर पैर थम जाते हैं..अगर घर में वापस जाकर बताये कि बाहर प्लास्टिक की थैली लेकर जाने में डर लग रहा है तो फिर बीवी को हसने से रोकना संभव न होगा और अगर इसे लेकर बाहर गए तो पता नहीं क्या होगा. कहीं प्लास्टिक के थैले लेकर चलने के अपराध में पुलिस पकड़ कर न ले जाये और वह आतंकवादियों और अपराधियों की तरह थर्ड डिग्री का इस्तेमाल न करने लगे..कहीं प्लास्टिक के थैलों के जखीरे की तलाश में घर पर छापा पड़ गया तो २-४ पौलिथिन तो उनके हाथ लग ही जायेगा..फिर कौन बचायेगा इस बला से...पुलिसिया मार खाकर बताना ही पड़ेगा कि घर में कितने और थैले छुपा कर रखे हैं...

2 comments:

Udan Tashtari said...

कहीं सच उगलवाने के लिए पॉलीग्राफी न करवा डालें आपकी :) जरा संभलना!!

अनूप शुक्ल said...

प्लास्टिक के थैले को न बोलना सीखना चाहिये। लेकिन कित्ता मुश्किल हो गया है यह!