Saturday 15 August 2009

लो मन गया फिर आज़ादी का जश्न!

लो मना लिया मैंने भी अपनी आज़ादी का जश्न
हाथों में तिरंगा थामे
झूमते-गाते और नारे लगाते
बच्चों, बूढों और नौजवानों को
टीवी चैनलों पर देखकर,
राष्ट्रभक्ति के गानों को सुनकर
कर लिया मैंने भी अपना मन हल्का
और निभा ली मैंने भी अपनी जिम्मेदारी
देश और देशभक्ति की!

इस आजाद देश के
हर आजाद नागरिक की तरह
मुझे भी छू गया
मेरे सामने परोसा गया
भाषणों का पुलिंदा,
जिसमे करीने से सजाये गए थे
न जाने कितने सपने
जो मेरा देश
पिछले ६२ सालों से देखता आ रहा है
और जिन सपनों के पूरा होने की बाट जोहते
खप गयी कई पीढियां...

आज भी मेरे गाँव की नई पौध
नहीं पहुच सकी है
तकनिकी क्रांति के उजाले तक।
मिटटी की तेल के दीये की
मद्धिम रौशनी में
न्यूटन, आइंस्टाइन और गैलिलियो को
पता नहीं कबसे पढ़ती आ रही है ये पौध...


आज भी हमारे गाँव के किसान
बदहाल हैं...
दिनभर धूप और बरसात में
मरने-खपने के बाद भी...
भर-पेट भोजन
और पूरा कपड़ा आज भी चुनौती है
उनके लिए...
और उन्ही की खेती का आंकडा बेच
न जाने कितने लोग
हो गए करोड़पति
सच में यही है "इंडिया शाइनिंग"...

टीवी पर दिखने वाले
चमकते-दमकते
भारत से अलग है मेरा भारत
रोटी-कपडा और मकान के लिए
मरता-खपता भारत...
मेरा भारत... मेरा महान भारत!

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