Wednesday 8 July 2009

प्यासा देश और पानी में डूबते उसके लोगों की कहानी..!

हमारा देश कितना बड़ा है और आबादी तो इतनी बड़ी कि मत पूछिए। एक अरब से ज्यादा तो हम सरकारी आंकडे के अनुसार ही हैं। अनाज भी हम अपने खाने के लायक उगा ही लेते हैं. रह गयी बात पानी की तो वो भी हमारे देश में कम नहीं है. अब देखिये न मुंबई नगरिया को... पूरा शहर पानी में तैर रहा है. मानसून ने दस्तक दे दी है और पूरा शहर पैंट को निचे से मोड़े और हाथ में छतरी थामे अपनी रफ्तार में दौरे जा रहा है. लेकिन इस कहानी का दूसरा पहलू भी है. मुंबई के पास डूबने के लिए पानी जरूर है लेकिन पीने के पानी की जुगाड़ करने में मुंबई वालों को नानी याद आ रही है. गली-गली और घर-घर में पानी भरी पड़ी है लेकिन पीने के लिए सरकार जो पानी देती थी उसमें ३० फीसदी की कटौती कर दी गई है। ऐसा इसलिए हुआ है क्यूंकि मुंबई को जिस झील से पानी दिया जाता था उसका जलस्तर घट चुका है. अधिकारियों का कहना है कि उनके पास सिर्फ़ अगले दो महीनों के लिए पानी बचा हुआ है और अगर मानसून अपने पूरे ज़ोर से समय पर नहीं आता तो मुंबई के लोगों के लिए पानी ही नहीं होगा. क़रीब दो करोड़ लोगों को अपनी प्यास में से ३० फीसदी कटौती करने को कहा गया है बल्कि कहा नहीं गया है कटौती कर दिया गया है. और जो सरकार करती है वही सच है क्यूंकि भारतीय शहरों के लोगों ने पहले इतना ज्यादा पानी बहा दिया है कि अब वे बूँद-बूँद के लिए सरकार पर निर्भर हैं. सरकार कहीं से भी लाये लेकिन अगर पानी लाकर पिलाती नहीं है तो फिर लोगों के पास कोई और उपाय नहीं है. मिनरल वाटर के बोतल खरीदकर पीना लोगों के लिए एक विकल्प जरूर है लेकिन उसकी भी अपनी कीमत है और सब उस पानी की कीमत नहीं अदा कर सकते.

इससे कुछ अलग कहानी है देश की राजधानी दिल्ली की. देश की राजधानी होने के नाते देशभर से यहाँ लोग आते रहे और अब इसकी आबादी भी अच्छी-खासी हो चुकी है. रहने के लिए घर का तो जुगाड़ जैसे-तैसे हो जाता है खाने का जुगाड़ भी पैसे के बल पर हो ही जाता है लेकिन पानी का क्या हो. जबतक जमीन के नीचे पानी था लोगों ने छककर इसका मजा लिया. गर्मी के मौसम में गला तर करने के साथ-साथ लोगों ने जमकर स्नान भी किया. बड़ी-बड़ी इमारतों के आगे बने फव्वारों से खूब पानी भी बहाया गया. लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. अब इस शहर के अधिकांश इलाकों का पानी सूख चुका है या फिर है भी तो नमकीन पानी है जो पीने की बात तो छोडिये नहाने और कपडे धोने के काम भी नहीं आ सकता. शहर में कई इलाकों में पानी की आपूर्ति पाईप के जरिये होती है. जिन इलाकों में ऐसा नहीं होता वहां सप्ताह में १ या २ दिन पानी के टैंकर जाते हैं. ये दिन इन कालोनियों के लोगों के लिए किसी युद्ध के दिन से कम नहीं होता. टैंकर के आते ही डब्बे लेकर लोग घरों से ऐसे दौर लगा लेते हैं जैसे पहले किसी दुश्मन के आने की खबर सुनकर कबीले वाले लगाते थे. जिसने जितना ज्यादा पानी झटका उसका सीना उतना ज्यादा चौडा. यहाँ भी जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत काम करती है. अगर आप घर-परिवार से मजबूत हैं तो फिर आपको ज्यादा पानी लेने से कोई नहीं रोक सकता और अगर रोक ले तो फिर उसका सर फूटना पक्का.

इसी देश में बिहार जैसे राज्य भी हैं। जहाँ की अधिकांश आबादी ग्रामीण है. यहाँ पानी की कोई कमी नहीं है. हर साल राज्य के अधिकांश जिले बरसात के मौसम में बाढ़ में डूब जाते हैं. पडोसी देश नेपाल से आने वाली नदिया पानी का समंदर अपने साथ लाती है और बिहार की किस्मत पर हाथ साफ़ कर जाती है. लेकिन बिहार की इस कहानी का एक दूसरा पहलू भी है. कई इलाकों में लोग बड़ी मुश्किल से पीने का पानी जुगाड़ कर पाते हैं. सिचाई के लिए पानी का जुगाड़ करना भी यहाँ के किसानों के लिए आसान काम नहीं है. राज्य के आधे जिले अपने यहाँ आने वाले पानी को रोकने के लिए लड़ते हैं तो आधे जिलों की प्यास बुझाने का कोई जरिया नहीं है और सब कुछ इन्द्र भगवान के भरोसे चलता है. अगर उन्होंने आँखे फेर ली तो फिर इन किसानों का कोई माई-बाप नहीं होता.

पानी की बहुलता के बावजूद देश के अधिकांश शहरों में पीने के पानी की हालत ऐसी ही है। लेकिन सब कुछ भगवान भरोसे ही चल रहा है. इतने तकनिकी विकास के बाद भी हमने इस बुनियादी समस्या के हल के लिए कुछ ठोस नहीं किया है. अगर हमने अपने देश की नदियों को ही आपस में जोड़ लिया होता तो देश के किसी भी इलाके में हमें पानी की कमी का सामना नहीं करना पड़ता और जिन इलाकों में पानी ज्यादा होता वहां से पानी निकाल पाने में भी हम सफल होते. तभी तो सब कुछ होते हुए भी पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्य के किसान मानसूनी बारिश का इंतज़ार कर रहे है. हम अपने लिए जब कोई नीति ही नहीं बना सकते तो फिर हमारी प्यास बुझाने विश्व बैंक और अईएमेफ़ तो नहीं आयेंगे. प्रकृति की ओर से मिली इस अनमोल धरोहर को अगर हम सहेज कर इस्तेमाल नहीं कर सकते तो फिर हमारी प्यास ऐसे ही बनी रहेगी और हम ऐसे ही आसमान में पानी की बूंदों के लिए टकटकी लगाये दिखाई देंगे.

1 comment:

Udan Tashtari said...

क्या विडंबना है!!