Saturday 1 November 2008

लोगों को उनकी किस्मत ही बचा सकती है इस भारत में!

असम में दर्जन भर धमाके हुए। भारत में किसी को भी कोई हैरानी नहीं हुई. सिवाए उनके जिनके अपने लोग इस हादसे में या तो मारे गए या फ़िर घायल हो गए. इस तरह का सिलसिला पिछले कुछ सालों में भारत के शहरों में बढ़ता चला गया है. पिछले ७ महीनों में हुए ६३ बम धमाके इसका प्रमाण है और इसमें अब और कुछ कहने की जरूरत नहीं रह गई है. जो इन हमलों में बच गए हैं वे आगे होने वाले हमलों में मारे जाने या फ़िर अपंग होने या फ़िर घायल हो जाने का इंतज़ार कर सकते हैं. अगर ये सिलसिला शुरू हुआ है तो कभी न कभी उनका भी नम्बर आएगा ही. हमारे देश के गृहमंत्री जी धमाकों के बाद असम के दौरे पर गए थे. उन्होंने वहां मीडिया से कहाँ---"हम यहाँ आपके दुःख में शरीक होने आए हैं, जिन्होंने भी ये काम किया है वे इंसान नहीं दरिन्दे हैं. हम असम की सरकार से कहेंगे कि उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे और जल्द से जल्द करे।"

अब आप समझ सकते है कि जिस शख्स पर देश की आतंरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी है उनका बयान ऐसा है. जाहीर सी बात है इस बयान में ऐसा कुछ भी नहीं है जो हमला करने वालों को डरा सके. न ही अबतक हुए हमलों में लोगों को हुई सजा इन्हे डरा सकती है. जो अबतक पकड़े गए उनके और मामले में हुई छीछालेदर आगे से बहादुर पुलिस अफसरों को कुर्बानी देने से रोकेगी और जनता का भरोसा भी सिस्टम से उठता जाएगा. इसलिए कहा जा सकता है कि लोगों को अब केवल अपनी किस्मत पर ही भरोसा रह गया है. उन्हें कोई नहीं बचा सकता सिवाए उनकी किस्मत के। मालेगांव विस्फोटों में पकड़ी गई साध्वी प्रज्ञा के बारे में डंका पीट रहे लोग बटला हाउस मुठभेड़ का नाम आते ही चुप्पी लगा जाते हैं। कंधमाल, कर्णाटक पर भी वे खूब बोलते हैं और गुजरात का उदहारण देना भी वे नहीं भूलते लेकिन जैसे ही मुंबई में राज ठाकरे कि गुंडागर्दी, असम और बिहार में भरे अवैध बांग्लादेशीयों को मामला आता है उनकी जबान पर जैसे ताला लग जाता है. ऐसा नहीं कि ये हाल केवल एक दल का है. विपक्ष के पास भी ऐसा कुछ नहीं है जिसके दम पर वे कह सके कि आम आदमी को सुरक्षित रखने में वे कामयाब रहेंगे. उनके काल में भी पड़ोसी देशों में सक्रिय आतंकवादियों पर लगाम नहीं लगाया जा सका और वर्तमान सरकार के काल में भी ये सम्भव नहीं हो सका. जब भी हमले होते हैं किसी नए आतंकवादी समूह का नाम लेकर सब निश्चिंत हो जाते हैं. खुफिया एजेंसियां ये कहकर निश्चिंत हो जाती हैं कि हमने तो पहले ही हमलों की चेतावनी दे दी थी. इस माहौल में कहा जा सकता है कि लोग अपने भाग्य-भरोसे ही बच सकते हैं.

2 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत दुख होता है यह सब सुनकर और पढकर। लेकिन सत्‍य यही है।

G Vishwanath said...

आपके विचार पढ़कर दुख हुआ पर आपसे सहमत होना हमारी मज़बूरी है।