Wednesday 12 November 2008

कब ग्लोबल से लोकल हो गए पता ही नहीं चला

रात में सोये-सोये अचानक कब सपनो में खो गए पता ही नहीं चला. तब मुझे कहाँ पता था कि जो देख रहा हूँ वो असलियत नहीं एक सपना है. रोज-रोज ख़बरों में ये देखते-देखते कि भारत बस अब महाशक्ति-विश्वशक्ति बनने ही वाला है. रोज-रोज अपना राजनितिक नेतृत्व देश के लोगों को यही सपना तो दिखाते आ रहा है. १९९० के दशक के शुरू से ही जब से टीवी वालों ने भारत के लोगों को वैश्वीकरण, ग्लोबलाइजेशन और ग्लोबल जैसी अव्धारनाये दिखाई है हमें लगता है कि आज नहीं तो कल हम बस महाशक्ति बनने ही वाले हैं. इसी ख्वाब के बहाव में रात कब बीत गई पता नहीं चला और जब नींद खुली तो घर में सब वैसा ही दिखा जैसा इसके पहले देखा था. कही भी कोई बदलाव नहीं दिखाई दिया. मैंने सोचा कि शायद पूरा भारत वैश्विक हो गया है और मैं सोया ही रह गया. अब पूरा भारत घूम के देखा तो जा नहीं सकता इसलिए सोचा कि टीवी में देखते है कि सुबह का ये बदला हुआ भारत कैसा है...

पहले समाचार चैनल को खोलते ही ख़बर मिली--राज ठाकरे ने कहा--मुंबई उनके बाप-दादों का है...अगली ख़बर थी मुंबई में बिहारी छात्रों की पिटाई के विरोध में बिहार बंद. अगला आइटम था असम में बिहारी लोगों पर हमले करने वालों को आईएसआई की मदद. इसी तरह की कई खबरें टीवी चैनलों पर चल रही ख़बरों में छाई हुई थी. दिल्ली में चुनाव हो रहा है इसके बारे में ख़बर थी कि बाहर से आने वाले लोगों पर लगाम लगाने के लिए एक दल सत्ता में आने पर कदम उठाएगा. इसी समय एक टीवी चैनल पर ओबामा की जीत के बाद विश्लेषण आ रहा था. जिसमें कहाँ जा रहा था कि ओबामा के आने के बाद वीसा नियमों में सुधार किया जाएगा.

ऐसे न जाने कितने सारे ख़बर ग्लोबल होने के हमारे सपने को कुंद कर रहे थे. कलाम साहब के राष्ट्रपति बनने के बाद देश के बच्चों ने २०२० तक देश को महाशक्ति बनाने को लेकर न जाने कितने सपने देख लिए है. उनके लिए भी एक टीवी पर कार्यक्रम चल रहा था. उसमें आए एक एक्सपर्ट ने बहुत अच्छा सुझाव दिया. उन्होंने कहाँ कि ग्लोबल होने में बहुत खतरा है क्यों न हम फ़िर लोकल हो जाए. तब कोई बाहरी कहकर हमला तो नहीं करेगा. इसके लिए सबसे बढ़िया है कि सब अपने-अपने घरों में ही रहे. घर से निकलने पर दूसरे घर वाले बाहरी कहकर मारेंगे. मोहल्ले से निकलने पर दूसरे मोहल्ले वाले, शहर से निकलने पर दूसरे शहर वाले और राज्य से निकलने पर दूसरे राज्य वाले. दूसरे देश में तो पीटना स्वाभाविक ही है. इसलिए सबसे अच्छी बात यही है कि अपन इघर में रहिये और पीटने और अपमानित होने से बचिए। न किसी क यहाँ जायेंगे और न ही कोई हमें अपमानित करेगा। इसके लिए सभी जगह के लोगन को पहले उनके मूल मोहल्ले में भेज देना चाहिए और फ़िर हर दुसरे मोहल्ले में जाने के लिए वीसा नियम बना देना चाहिए। इससे सत्ता का और विकेंद्रीकरण भी होगा और शासन के काम में भी आसानी होगी। अगर लोग बचेंगे तभी कुछ बदलाव होगा न। जान रहेगी तभी तो महाशक्ति बनेंगे न. एक्ट लोकली और थिंक ग्लोबली का नारा भूलकर अब नारा यही होना चाहिए कि लाइव लोकली और इग्नोर ग्लोबली...

1 comment:

संगीता पुरी said...

बात तो पते की है कि है आपने। वास्‍तव में ग्‍लोबल बनते बनते हम सब लोकल बन गए हैं।