Friday 14 November 2008

द ग्रेट इंडियन पॉलिटिकल तमाशा...

५ राज्यों में चुनाव का बिगुल बज चुका है। नेता मैदान में हैं और जनता के बीच जाने को मजबूर हैं। सो इन दिनों उन्हें पसीना भी हो रहा है. जनता खुश है कि जिन चेहरों को अख़बार और टीवी पर देखती थी इन दिनों वे चेहरे उनके शहर और कभी-कभी उनके घरों तक पहुच जाते हैं. बड़े-बड़े फिल्मी सितारे चुनाव प्रचार के लिए बुलाये जा रहे हैं नेताओं द्वारा बड़े-बड़े दावे और आश्वासन दिए जा रहे हैं. जनता को इन आश्वासनों पर कोई भरोसा नहीं है कारण है कि आज की जो पीढी है हर ५ साल पर इन्हीं आश्वासनों को सुनकर बड़ी हुई है. उन्हें मालूम है की नेता जी लोग कितने ही इमोशनल होकर क्यूँ न कुछ कहें लेकिन करेंगे कुछ नहीं. लोगों ने अब बचपन में सिविक्स की किताबों में पढ़ी इस बात को भी भुला दिया है कि लोकतंत्र जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता की व्यवस्था होती है. लोगों को अब इन थोथी बातों पर भरोसा नहीं रहा।

जैसे अपने देश के नेता जी लोग मानने लगे हैं कि चुनाव सत्ता में आने और ५ साल तक राज करने के लिए होते हैं। वैसे भी चुनाव हमारे मोहल्ले के कुछ लोगों के लिए हर 5 साल बाद नेता जी लोगों की जेब से कुछ निकलवाने का मौका भर होता है. उनके लिए तो चुनाव का मौका ठीक वैसा ही होता है जैसे मेरे मोहल्ले के पंडित जी के लिए शादी-व्याह का मौका होता है जिसमें वो जजमान से जो चाहे ले सकते हैं...

राजधानी दिल्ली में चुनाव का बिगुल बज चुका है। व्यक्तिगत संबंधों के कारण कल मुझे एक उम्मीदवार के साथ उनके इलाके में घुमने का मौका मिला. नजदीकी संबंधों के कारण मुझे वो सब देखने का मौका मिला जो अक्सर नेता लोग अपनी भोली-भली जनता से कभी नहीं कहते. मसलन मुझे उस बैठक में भी हिस्सा लेने का मौका मिला जिसमे ये रणनीति बन रही थी कि कैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को लुभाया जा सके. किस वर्ग को अपना टारगेट बनाया जाए उन्हें प्रसन करने के लिए कौन-कौन से मसले उठाये जाए और जनता के बीच किस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जाए. किन-किन इलाकों में लोगों को अपने साथ जोड़ने के लिए किन मुद्दों को आगे किया जाए और उन इलाकों से किन लोगों को अपने साथ लिया जाए. किससे किस तरह की बात की जाए. कौन किस बात पर हमारे साथ आ सकता है वगैरह-वगैरह...ऐसे न जाने कितने मसले उन बैठकों में उठे. इससे आगे भी कई बातें हुईं जिन्हें खुलेआम बोलना हो सकता है किसी को लोकतान्त्रिक भावनावों का अपमान लगे इसलिए उनका जिक्र मैं नहीं कर सकता.

ये तो रही विधानसभा में चुनाव लड़ रहे छोटे खिलाड़ियों की बात. अभी कुछ महीने बाद देश में लोक सभा के चुनाव भी होने हैं. उनमें देश के बड़े चुनावी खिलाड़ी मैदान में होंगे. तब बड़े सितारे और बड़े प्रचारक भी लोगों के बीच उतरेंगे. जनता को मनोरंजन का पूरा मसाला मिलेगा. जनता को देश के विकास के लिए होने वाले काम से मतलब तो रह नहीं गया है उन्हें भी इस बड़े तमाशे का बेसब्री से इंतज़ार है. अमेरिका में एक अश्वेत के राष्ट्रपति बनने पर खुशी जताने वाले हमारे देश के टीवी दर्शक अपने मत का इस्तेमाल करने नहीं जाते और घर बैठे चाहते हैं को देश में व्यवस्था परिवर्तन हो. उन्हें ये समझना पड़ेगा की ओबामा जैसा नेता अमेरिका में इसलिए है कि वहां डीजर्व जनता ऐसे नेता को डीजर्व करती है. हम इतने काबिल तरीके से अपना मतदान नहीं कर पाते कि ओबामा जैसा नेता जीतने की हिम्मत कर सके. हम दागदार छवि वाले नेताओं, अच्छा बात बनाने वाले नेताओं और वोटरों को पैसा बाटने वाले नेताओं, और बड़े फिल्मी सितारों को प्रचार के लिए ले आने वाले नेताओं को चुनते हैं तो हम विकास की उम्मीद कैसी कर सकते हैं. हमारे यहाँ दशकों से चुनावी नाटक जारी है ये ऐसे ही जारी रहेंगे जबतक की हम अपने प्रगति के लिए इस व्यवस्था का इस्तेमाल करना नहीं सिख जाते...

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