Sunday 14 September 2008

दहशतगर्दी का सिलसिला तो थामना ही पड़ेगा...

वाराणसी-दिल्ली-मुंबई-हैदराबाद-जयपुर-बेंगलूर-अहमदाबाद और अब फ़िर दिल्ली...इससे पहले भी आतंकवादी हमलों का ये सिलसिला चलता रहा है और आगे भी इसके अनवरत चलते रहने में किसी को कोई संदेह नहीं है। इसी सिलसिले के तहत १३ सितम्बर को देश की राजधानी दिल्ली में ५ सिलसिलेवार धमाके हुए. २४ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडा और दर्जनों लोग घायल हुए. ये सारे हमले ऐसे जगहों पर हुए जहाँ भीड़-भाड़ ज्यादा थी. करोलबाग के गफ्फार मार्केट में पहला धमाका हुआ...यहाँ दिल्ली के लोग और बाहर से यहाँ आने वाले लोग खरीददारी के लिए आते हैं. इसके बाद कनाट प्लेस में बाराखंभा और सेंट्रल पार्क में धमाके हुए और फ़िर पॉश ग्रेटर कैलाश के मार्केट में धमाके हुए। बाराखंभा जैसे जगह पर लोग ऑफिस से छूटने के बाद बस पकड़ने के लिए आते हैं, शनिवार का दिन होने के कारण ग्रेटर कैलाश के बाज़ार में चहल-पहल थी. वीकएंड मनाने के लिए बड़ी संख्या में लोग सेंट्रल पार्क में जमा थे. तभी इन जगहों पर धमाके किए गए और लोगों को शिकार बनाया गया...

दिल्ली में आतंकी हमलों की ख़बर टीवी चैनलों पर दिखने लगी। दिल्ली में अफरा-तफरी क्या मची पूरे देश से यहाँ रह रहे लोगों के पास फ़ोन आने लगें। अफरा-तफरी के माहौल में पूरा देश अपने-अपने लोगों की कुशलता जानने के लिए व्यग्र था. दिल्ली में मोबाइल नेटवर्क जाम हो गया. लोग डरे-सहमे थे. दिल्ली के लिए पिछले कुछ सालों में ये दूसरा मौका था. लोग अभी भी सरोजिनी नगर और अन्य जगहों पर हुए धमाको की दर्द से उबर नहीं पाये हैं. यही मकसद दहशतगर्दी फैलाने वालों का था और वो अपने मकसद में कामयाब दिखे. लोग गुस्से में थे. अस्पतालों में राजनीतिक नेताओं के दौरे होने लगे. सरकार की ओर से मृतकों को मुआवजे का ऐलान भी कर दिया गया. गृहमंत्री ने टीवी के सामने आकर कह दिया कि लोग शान्ति बनाए रखे और घबराए नहीं. लेकिन लोगों को सरकार के किसी भी आश्वासन पर भरोसा नहीं हुआ . पुलिस ने जांच शुरू कर दी...और हर हमले की तरह देश के इतिहास में ये भी एक किस्से के रूप में दर्ज हो गया...हर साल १३ सितम्बर को कुछ मनाने के लिए.

प्रधानमंत्री से लेकर सभी लोगों ने हमले की निंदा की. गृह मंत्री महोदय ने कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा. इसी समय देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी आईबी का बयान आया कि उन्होंने पहले ही इन हमलों का अंदेशा जताया था. बेंगलोर में भाजपा का सम्मलेन चल रहा था. भाजपा ने लगे हाथों सरकार की निंदा कर दी और सरकार की लापरवाही को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया. पोटा जैसे कड़े क़ानून की वकालत करते हुए भाजपा ने कह दिया कि अगर वो सत्ता में आई तो १०० दिनों में पोटा लागू किया जाएगा. टेलिविज़न चैनलों पर आने वाले बड़े-बड़े विशेषज्ञों ने तमाम तरह से हमलों का विश्लेषण किया. पिछले हमलों से उसकी समानताओं का अवलोकन किया जाने लगा और विभिन्न शहरों में हुए हमलों को जोड़कर आतंकी ऑपरेशन को कोई नाम देने का प्रयास किया जाने लगा. सुबह के अखबारों में बड़े-बड़े अक्षरों में बेंगलोर और अहमदाबाद से दिल्ली हमलों को जोड़कर ऑपरेशन-बीएडी नाम दे दिया गया.

सबके बयान आए लेकिन इससे लोगों को ये भरोसा दिला पाना मुश्किल दिख रहा है कि अगली बार जब वे किसी बाज़ार में खरीददारी के लिए जायेंगे, किसी पार्क में घुमने जायेंगे, सिनेमा हॉल में फ़िल्म देखने जायेंगे, ट्रेन और बस से सफर करने जायेंगे या फ़िर कहीं भी सार्वजानिक जगह पे जायेंगे तो सुरक्षित रह पाएंगे. दूसरी समस्या ये भी है कि क्या हमला करने वालों को रोका जा सकता है... इतना आसान नहीं लगता ये सब लेकिन क्या ये ऐसे ही होता रहेगा और लोग इसके शिकार होते रहेंगे या फ़िर इसके ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी जायेगी. क्या देश के लोगों को सुरक्षित रखने के लिए बाहर से आने वाले आतंकवादियों और हथियारों को सीमा के बाहर ही नहीं रोका जा सकता. क्या अपने देश के हर नागरिक को पहचान-पात्र देकर अवैध लोगों को पहचाना नहीं जा सकता. बाहर से हमलावर नहीं आ पायें इसके लिए क्या पड़ोसी देशों पर कडाई नहीं की जा सकती और सबसे बड़ी बात कि देशविरोधी काम में शामिल अपने देश के लोगों को क्या दण्डित नहीं किया जा सकता। वो कोई भी हो और किसी भी समुदाय से क्यूँ न हो उन्हें दण्डित करना पड़ेगा और उनका समर्थन करने वाले हर शख्स की गिरेबान पकड़नी होगी। पोटा जैसा या उससे भी कडा कानून अब नहीं लाया जाएगा तो कब. क्या देश के लोगों को इस मामले पर खुलकर खडा नहीं होना चाहिए. लोग जब तक खड़े नहीं होंगे तबतक राजनीतिक नेतृत्व पर कड़े कदम उठाने का दबाव नहीं बनेगा और लोग ऐसे ही इस दहशतगर्दी के शिकार होते रहेंगे...

1 comment:

Udan Tashtari said...

निश्चित ही प्रभावी एवं कठोर कदम उठाने होंगे.