Saturday 3 May 2008

हमारी खुराक पर नज़र गराए है अमेरिका...

पड़ोसी तरक्की कर रहा हो तो जलन होना स्वाभाविक है, पड़ोसी के घर बन रहे अच्छे खाने से जलन व्यक्तिगत स्तर पर या फ़िर परिवार के स्तर तक तो सही है। लेकिन देशों के स्तर पर ऐसा कम ही देखने को मिलता है. अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा रईस का हाल में आया इसी तरह का एक बयान आजकल चर्चा में है. उन्होंने दुनिया में खाद्दान संकट के लिए भारत व चीन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था की इन दोनों देशों में रह रही बड़ी आबादी ने अब अच्छे भोजन पर ध्यान देना शुरू कर दिया है और इनके लिए वहाँ की सरकारों ने पहले की अपेक्षा ज्यादा अनाज बचाना शुरू कर दिया है इसी लिए अन्य देशों को अनाज की कमी हो गई है और दुनिया खाद्दान संकट से गुजर रही है। पूरी दुनिया में खासकर गरीब देशों में लोग महाशक्ति अमेरिका के विदेश मंत्री के इस बयान को बड़ी ही अचरज भरी निगाहों से देख रहे हैं। तेजी से बदल रही दुनिया में आज इस बयान को गरीब देशों के अपमान के रूप में देखा जा रहा है। जाहीर है अमेरिका का ये बयान गरीब देशों के लोगों द्वारा खान-पान पर बढे खर्च को देखकर आया है. यहाँ हो रहे अच्छे अनाज और फल सब्जियों को बढ़ती महंगी के कारण जब बाहर जाने से रोका गया तो इन देशों में बौखलाहट बढ़ने लगी. इन्हें आज भी लगता है की ये देश अब भी अपने मंहगे उत्पाद इनके यहाँ बेच दिया करें और केवल वही चीजे अपने पास रखे जिन्हें ये पसंद नहीं करते हों.

गरीब देश जिनके लिए भारत और चीन हमेशा से विश्व मंच पर अगुवा के रूप में सामने आते रहे हैं उनपर की गई ये टिपण्णी पूरी गरीबी पर की गई अपमानजनक टिप्पणी के रूप में ली जा रही है। क्या इन देशों को अब भी ये पश्चिमी देश भूख, भिखारी और भिक्षुओं के देश के रूप में देखना चाहते हैं। जाहीर है है ये बयान भी अमेरिका की किसी योजना के सन्दर्भ में आया होगा। क्या अमीर देश अब इस समस्या के प्रति कोई रणनीति बनाकर वहाँ के लोगों को अच्छा खाना खाने से रोकने में लगेंगे। ऐसी हालत में अफ्रीका, मध्य-पूर्व समेत दुनिया के तमाम इलाकों में गरीबों के उत्थान के लिए अमीर देशों द्वारा चलाया जा रहा कार्यक्रम लोगों का विश्वास जीत पाएंगे... क्या दक्षिण और उत्तर की दुनिया को पाटने के नाम पर, अमीरी-गरीबी की खाई पटने के नाम पर शुरू हुई वैश्विक भाईचारे का नारा पश्चिमी दुनिया ने बस एक दिखावे के रूप में शुरू किया था...

भारत और चीन जैसे जो देश आधुनिक अमेरिका के पीछे चलकर विकास की मंजिल तय करने लगे थे उनके लिए ये बयां आँखे खोलने वाला है। इसके अलावा ये उन देशो और समाजों के लिए भी आंखे खोलने वाला बयान है जो अमीर देशों के हाथों में ख़ुद को सौप कर विकास का रास्ता तय करना चाहते थे। वैसे भी अपनी सम्पनता के दंभ में अमेरिका ने कई देशों के भविष्य को अपने कब्जे में ले लिया है। मध्य-पूर्व पहले से ही पश्चिमी देशों के चंगुल मैं है. पिछले दशक में आतंकवाद के नाम पर अफगानिस्तान फ़िर इराक पर कब्जा कर वहाँ के राजनितिक शक्ति को भी अमेरिका ने अपने शिकंजे में कर लिया है. इसी तरह मदद के नाम पर पाकिस्तान भी अमेरिका के शिकंजे में फंस चुका है. जो देश अमेरीका का शिकार होने से बच गए उनमें वियतनाम, उत्तर कोरिया, क्यूबा, वेनेजुएला जैसे देश हैं जो अब तक अपनी अस्मिता को इन दम्भी देशों से बचाए हुए हैं. इसी तरह जब इरान अपने सम्मान के लिए अमेरीका के सामने खरा हुआ और अमेरीका उसे तमाम कोशिश करके भी नहीं दबा सका तो गरीब देशों को दी जा रही अपनी मदद की ओट लेकर अपना निशाना साधना चाह. इरानी राष्ट्रपति की भारत यात्रा से पहले अमेरीका ने भारत पर ही दबाव बनने का प्रयास किया की वो इरान पर दबाव डाले. भारत की सरकार ने जिस तरह अमेरिकी घुरकी का जवाब दिया वो काबिले-तारीफ़ है. इसी तरह सभी गरीब देशों को विकास के लिए इस अमीर देशों के साथ आने के बावजूद अपने सम्मान के मसले पर खुलकर बोलना होगा. तभी सदियों से चली आ रही शोषण की इस परम्परा को ख़त्म किया जा सकेगा. और पड़ोसी हमारे अच्छे खाने को देखकर जलना बंद करेंगे...

2 comments:

कुन्नू सिंह said...

यह तो 2000% सच है। वैसे अमेरीका तो भारत के पीछे कई सालो(लाखो जब अमेरीका का नाम भी नही था तब) लगा रहा है

Udan Tashtari said...

लगे रहने दो-उससे कुछ नहीं बिगड़ता. पहले खुद से हम खुद का पिछा छुडायें तब बात बनें. अमरीका से तो कभी भी बाय डिफॉल्ट छूट जायेंगे पाकिस्तान के कारण. :)