Saturday 3 May 2008

सबके हाथ में दे दो एक-एक हथियार!

पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की सरकार ने उग्रवाद प्रभावित इलाकों के लोगों को हथियार देने का फैसला किया है। चुने हुए ग्रामीणों को सरकार की ओर से हथियार मिलेगा। ये लोग अपने ही गाँव में तैनात किए जायेंगे बदले में इन्हें सरकार की ओर से मानदेय मिलेगा। मणिपुर में पुलिस इन ग्रामवासियों को प्रशिक्षण देगी और उन्हें विशेष पुलिस अधिकारी [एसपीओ] कहा जाएगा। प्रशिक्षण के समापन के बाद इन विशेष पुलिस अधिकारियों को तीन हजार रुपये प्रति माह दिए जाएंगे। हथियारबंद ग्रामवासियों को अगले माह से उनके संबंधित गांवों में तैनात किया जाएगा। सूत्रों ने बताया कि नक्सलियों के प्रकोप से निबटने की इस योजना के तहत बैरकों का भी निर्माण किया जाएगा। राज्य की कांग्रेस सरकार ने यह फैसला गांव वासियों की मांग के आधार पर किया है। गांववासियों ने सरकार से हथियार देने की मांग की है, ताकि वे खुद को नक्सलियों के हमलों और डराने-धमकाने से सुरक्षित कर सकें।

ऐसा नहीं है कि ये प्रयोग पहली बार किया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर के बाद छत्तीसगढ़ में ये प्रयोग सलवा जुडूम के नाम पर चल रहा है। जम्मू कश्मीर में तो विशेष पुलिस बल के रूप में काम कर रहे लोग और उनके परिवार हमेशा से आतंकवादियों के निशाने पर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में सरकार ने इनके परिवारों को हमले से बचाने के लिए राहत शिविर बनाये हैं और लोगों को वहाँ शरण दी जा रही है। हालांकि सलवा जुड़ूम को लेकर तमाम सवाल उठाये जा रहे हैं यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी छत्तीसगढ़ सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े किए हैं कि आम नागरिकों को सुरक्षा के नाम पर हथियार नहीं दिए जा सकते। सुरक्षा के लिए सरकार को सेना और अर्द्धसैनिक बलों की सेवा लेनी चाहिए न कि इसका उपाय लोगों को हथियार बांटना है।

लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस तरह के कदम उठाने से हम लोगों को सुरक्षित रख पाएंगे। क्या लोग अमन-चैन से रह पाएंगे। या इसका कोई स्थायी समाधान निकलना पड़ेगा। क्या इस तरह के काम से हम अराजकता को बढावा नहीं दे रहे है। समाज में अगर कुछ लोग हथियार उठाकर हिंसा शुरू कर दे और जवाब में अन्य लोगों को भी हथियार दे दिया जाए तो इससे हिंसा बढेगी ही। उसपर काबू पाने का सवाल ही कहाँ उठता है... सवाल ये भी है कि क्या सभी को हथियार दे देने से समाज में हिंसा नहीं होगी॥ अगर आम लोग ख़ुद हथियार उठाकर अपनी सुरक्षा करने लगेंगे तो फ़िर सरकार, सेना, पुलिस, व्यवस्था का क्या काम। फ़िर देश में राजनितिक व्यवस्था पर इतना खर्च क्यों हो। और अगर व्यवस्था हो भी तो चुनावों में नारा होगा...
""सबके हाथ में हो हथियार.....यही है हमारे संघर्ष का आधार....""

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