Tuesday, 27 May 2008

इस चुनाववादी समय में...

बाजारवाद की तरह
एक और वाद
इन दिनों फैशन में है
वो है
चुनाववाद...
और इसकी कई संतानों में से
एक है
आरक्षण...
इन चार अक्षरों का महत्त्व
बहुत बढ़ गया है
आज के चुनाववादी युग में...!

लेकिन कोई नहीं बोल सकता
कुछ भी
इस वाद के ख़िलाफ़
क्योंकि...
आरक्षण पर कुछ भी कहने के लिए
चाहिए कुछ ख़ास कानूनों से लड़ने की कुव्वत
और साथ ही
सुनने की हिम्मत भी
सदियों के इतिहास को
और उस इतिहास की यातनाओं को भी...!

1 comment:

sushant jha said...

अच्छी कविता है...