लगा ली आज लाखों-करोड़ों ने
गंगा में डुबकी,
धो लिया सबने अपना पाप
और भुला दिया
कल तक की सारी दुशवारियों को भी!
बनारस से लेकर हरिद्वार तक
और इलाहाबाद से लेकर गंगासागर तक
कई दिनों से लोग
कर रहे थे इसी नहान के लिए मश्श्क्कत!
लो हम सफल हुए
अपने इस होली डीप(पवित्र स्नान) में...
लेकिन कई-कई टन फूल-माला भी छोड़ आये हम
अपने पीछे इस गंगा में
जिसकी सफाई के नाम पर अबतक
सरकारें बहा चुकी हैं कई-कई करोड़ रूपये
और जो आज भी बाट जोह रही है
अपनी सफाई की...
वैसे सुना है कि अब सरकारे
फिर सजग होने लगी हैं इसके प्रति
अब होने लगी हैं कैबिनेट की बैठकें
गंगा की धारा पर
तो शायद अब तक हमारी गन्दगी धोती
इस गंगा के
दिन भी अब बदल जाएँ...!
3 comments:
sahi hai
क्या करियेगा...सब उपर स्वर्ग में सीट रिजर्व कराने के चक्कर में नीचे नरक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
कविता अच्छी लगी......गंगा के दर्द की अभिव्यक्ति आपके माध्यम से......वह भी आधुनिक कविता के माध्यम से....और भी अच्छा लगा.
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