Monday 8 February 2010

लो पाकिस्तान ने दिखा दी अपनी जात, कर लो अब "अमन की आशा"

इधर अख़बार और टीवी में लगातार एक विज्ञापन दिखाई दे रहा है...अमन की आशा... जो भारत और पाकिस्तान के बीच अमन की आशा जगाने के लिए कुछ अति-उत्साही मीडिया संगठनों के द्वारा चलाया जा रहा है. हमारे देश की संस्कृति में एक खास सीख हमेशा दी जाती है कि सामने वाला चाहे कितना भी बुरा क्यूँ न हो आप उससे हमेशा अच्छे से पेश आओ. इसी रास्ते पर चलते हुए हमने बार-बार मार खाकर भी पाकिस्तान के आगे दोस्ती के हाथ बढ़ाये. संसद पर हमला हुआ तो कई माह तक सेना सरहद पर तैनात कर हम पाकिस्तान से उम्मीद करते रहे कि अब सुधरेगा तब सुधरेगा...फिर मुंबई में जब आतंकियों ने दिन-दहारे कत्लेआम किया तब भी कई माह तक हम पाकिस्तान पर दबाव बनाने की जुग्गत भीडाते रहे और फिर आख़िरकार थक-हारकर बातचीत का प्रस्ताव कर दिया। हमले के बाद के इस एक साल में पाकिस्तान आतंकियों पर अपनी ओर से लगाम लगाने के लिए कुछ करना तो दूर हमारे बातचीत के प्रस्ताव का मजाक ही उड़ाने लगा. आम लोग ऐसा करें तो कुछ बात भी हो लेकिन वहां का विदेश मंत्री तक इस तरह की गैरजिम्मेदारी दिखा रहा है. तो कैसे होगा अमन...क्या हमेशा मार खाकर हम शांति की उम्मीद करते रहेंगे और यूँही हमारी पीठ में छुरा घोंपा जाता रहेगा.

पूरी दुनिया ने देखा कैसे पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने मुंबई में उत्पात मचाया फिर भी आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। ९-११ के बाद जिस अमेरिका ने अपनी मन-मर्जी के अनुसार चुन-चुनकर दुनिया के कई देशों और वहां शरण पाए आतंकियों को निशाना बनाया वही अमेरिका लगातार बयानबाजी कर पाकिस्तान के लिए ढाल बने रहा. जो कुछ उससे बचा वह भारत के परंपरागत दुश्मन चीन लगातार पाकिस्तान की पीठ थपथपाकर पूरा करता रहा. हम अमन की उम्मीद लगाये बैठे रहें और उम्मीद करते रहें कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश जरूर कुछ करेंगे. अब भाई कोई और क्यूँ हमारे लिए कुछ करेगा अगर हम अपनी सुरक्षा में हथियार नहीं उठा सकते तो कोई और थोडे ही हमारे लिए लड़ने आयेगा? इतना ही नहीं जब पाकिस्तान के साथ सरकारी तौर पर हमने सारे ताल्लुकात रोक दिए और देश में होने वाले क्रिकेट सीरीज में पाकिस्तानी खिलाडी नहीं चुने गए तब भी अमन पसंद जमात ने हो-हल्ला मचाया और कहते रहे कि सरहद पार सभी लोग आतंकवादी नहीं है. अब जब पाकिस्तान की हुकूमत हमारे वार्ता के प्रस्ताव का मजाक उड़ा रही है तो बताएं हमारे अमन की आशा के सिपाही कि अब क्या करना चाहिए. क्या अमन के लिए सभी भारतीय पाकिस्तान के आगे सर झुका कर खड़े हो जाएँ कि भाई लो जितनो को मार कर शांति मिलती हो मार लो लेकिन अमन की हमारी आरजू जरूर पूरी कर दो...

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सही लिखा है...यही ठीक रहेगा....हालात को देखते हुए क्या उम्मीद की जा सकती है....

दीपक 'मशाल' said...

bilkul theek kaha

नीरज said...

khoon me garmi la di khikh kar