Thursday 27 March 2008

आओ मिलकर मैकाले को गाली देते हैं!

बीबीसी की वेबसाईट पर एक विशेष स्टोरी छपी थी- भारत में प्राथमिक स्कूल। क्या कहें इस ख़बर में जो तथ्य दिए गए थे वे यहाँ की शिक्षा व्यवस्था की बदहाली की कहानी बयां कर रहे थे। इसे पढने के बाद समझ में नहीं आ रहा था की किसे दोष दें। वैसे भी जब हमारे देश में शिक्षा पर किसी को दोष देने की बात आती है तो मैकाले हमारे सबसे अच्छे शिकार होते हैं। अमूमन सभी गाली देकर अपनी भडास निकल लेते हैं और फ़िर अपने काम में लगे रहते हैं। लेकिन कभी भी हमने ये सोचने की जरूरत नहीं समझी की आजादी के ६० सालों के बाद भी हम अपने लोगों को शिक्षा देने लायक क्यों नहीं बन सके। केरल जैसे केवल कुछ इलाकों में ही ऐसा हो सका।

अब आइये स्टोरी में दिए गए कुछ तथ्यों पर नजर डालते हैं। भारत के 85 प्रतिशत विद्यालय सरकारी स्कूलों की श्रेणी मे आते है।यह पूरी दुनिया का दूसरा सबसे बडा स्कूली तंत्र है लेकिन ये भी एक सच है की सबसे ज़्यादा अशिक्षित लोग भारत में ही हैं। अगर अंग्रेजों को दोष देकर हम ये कहें की उन्होंने हमे पढाने के लिए कुछ नहीं किया तो ये ग़लत होगा। पिछले ६० सालों में जब हम अपने लिए ऐसा नहीं कर पाये तो अंग्रेज भला हमारे लिए क्यों करते। आज के वक्त में जब हम अपने लोगों को सही रस्ते पर ला नहीं पा रहे हैं तो १८वि शताब्दी में भला अंग्रेज ये काम कैसे कर सकते थे। वो तो भला हो की अंग्रेजी, रेल और ऐसे ही ना जाने कितने चीज वे हमे दे गए वरना हम शायद इन तक पहुँचने में सदियों लगा देते।

हमने बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए कई योजनायें शुरू की। उन्हें मुफ्त में किताबे दी गई, मुफ्त ड्रेस दी गई, इतना ही नहीं बच्चों के लिए दोपहर के खाने तक की व्यवस्था की गई। लेकिन फ़िर भी ६० साल में हम अपनी अधिकांश आबादी को नहीं पढ़ा सके। हालांकि इस दौरान काफ़ी बड़ी संख्या में लोग पढे-लिखे भी और दुनिया भर में अपनी काबिलियत का लोहा मंवाये भी लेकिन ये सब केवल अंग्रेजी की बदौलत सम्भव हो सका और इसके लिए हम मैकाले को गाली नहीं दे सकते। जहाँ हमें कुछ करना चाहिए वहाँ हम असफल रहे हैं। सरकार एक ऐसी व्यवस्था है जिसे इसलिए बनाया जाता है की जिस समुदाय का वह प्रतिनिधित्व करती है उसके लिए सामुहिक काम वो करे। ६० सालों में ऐसा शासन नहीं दे पाए जो हमे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाये दे सके। जाहीर ये हमारी कमी है। हम ख़ुद के लिए लोकतंत्र नहीं बना पाये। इसे भी किसी और देश से कॉपी किया और गले में टांग कर घूमते रहे और हालत ऐसी हो गई की कौन आपका नेता बनेगा ये आप नहीं तय कर सकते बल्कि आपको ये नेता लोग अपने प्रचार माध्यमों से मजबूर कर बताते हैं।

भारत में 53 प्रतिशत छात्र प्राथमिक शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाते और पढ़ाई छोड़ देते हैं। इसको रोकने के लिए सरकार ने बाल मजदूरी सहित कई बुराइयों को रोकने के लिए कानून भी बनाये लेकिन फ़िर भी ये नहीं रुका। बचे आज भी दुकानों से लेकर खेतो में काम करते हैं और पढाई कर पाने की औकाद उनकी बन पाये इसके लिए कुछ ठोस सामने नहीं आ पा रहा है। प्राथमिक स्कूलों में बच्चे आज भी पढ़ नहीं पाते, मास्टर चुनाव सहित तमाम काम में लगे रहते हैं और उन्हें बच्चों को पढाने का समय नहीं हैं। उल्टे अब तो उन्हें दोपहर का भोजन बनवाकर बच्चों को खिलाने का भी काम मिल गया है। अब तो उनकी व्यस्तता और भी बढ़ गई है। जब हम ख़ुद अपने बच्चों को पढाने के लिए समय नहीं निकल पा रहे हैं तो भला ६० साल हो जाए या फ़िर ६ शताब्दी। हम कभी भी अपने लिए कुछ नहीं कर सकते.....

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