Thursday 6 March 2008

उजड़े शहर दोबारा बसते नहीं है क्या!

आज एक साथ दो खबरें मीडिया में छाई रही। राज ठाकरे के पूज्य चाचाजी(पहले राज उनके नक्शे-कदम पर चल रहे थे, लेकिन अब समय बदल गया है) बाल ठाकरे साहब ने सामना में एक लेख लिखकर बिहार के लोगों को खूब गाली दी। कई लोगों ने कहाँ "ई चाचा बिहार के लोगों से इतना फ्रस्टिया काहे गए हैं" जबकि कई लोगों ने कहाँ नहीं चाचा तो अपने भतीजे के कदम से फ्रस्टिया गए हैं। हालांकि कई लोग तो ये कहकर उन्हें बख्शने के मूड में थे की उम्र का असर है। अक्सार लोग इस उम्र में अनाप-शनाप बोलने लगते हैं। हमारे देश की संस्कृति रही है की ऐसे लोगों की बातों का लोग बुरा नहीं मानते। दूसरी ख़बर हमारे देश के गृहमंत्री जी के इसी मामले पर आए बयां से बना था। गृहमंत्री आज राज्यसभा में बोल रहे थे। उन्होंने महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय लोगों पर हो रहे हमलों की निंदा करते हुए कहा कि सरकार उन लोगों को फ़िर से वहा बसायेगी। उन्हे वहाँ सुरक्षा प्रदान की जायेगी।

आज से एक दिन पहले यानी की कल एक ख़बर देखी थी- जम्मू-कश्मीर के बडगाम में सरकार के द्वारा बनाए गए फ्लैटों में कश्मीरी पंडितों के ३० परिवारों को लाया गया। इस तरह के कई और आवासीय परिसर राज्य में बनाकर सरकार राज्य से भाग कर गए लोगों को फ़िर वापस लाएगी(वहाँ से पलायन का सिलसिला दशकों से जारी है)। कुछ इसी तरह का वाकया असम में भी हो रहा है। वहाँ के कुछ आतंकी संगठन असम में रह रहे बाहरी लोगों के ख़िलाफ़ अभियान चलाये हुए हैं। ये अभियान अब हिंसक हो चुका है। कुछ इसी तरह का काम पिछले दिनों महाराष्ट्र में राज ठाकरे के लोगों ने भी शुरू किया। जिससे आजीज आकर बिहार और उत्तर प्रदेश के काफ़ी लोग महाराष्ट्र छोड़कर भागने को मजबूर हुए। सरकार कह रही है की वो फ़िर से इन लोगों को वहाँ बसायेगी। लेकिन सवाल है की कब तक ये लोग ख़ुद को वहाँ सुरक्षित मानेंगे।

ऐसा नहीं है की इस तरह की राजनीति केवल भारत में ही होती है। मैं खबरों कि दुनिया में हूँ इस लिए कई होनी-अनहोनी खबरें रोज देखनेको मिल जाती हैं। सबसे ज्यादा ह्रदय विदारक खबरें अफ्रीकी महाद्वीप से आती है। अभी पिछले महीने केन्या में नस्ली हिंसा कि खबरें काफ़ी छाई रही। वहाँ भी चुनावी राजनीति ने लाखों लोगों को बेघर किया। इसी तरह रवांडा, कांगो, नाईजीरिया सहित कई देशों और खाड़ी के कई देशों में भी इसी तरह की लड़ाई जारी है। अगर यही हाल यहाँ भी जारी रहा तो लाखों लोग जो देश के अन्य इलाकों में रह रहे हैं उनके लिए सरकार को बार-बार आशियाने बनाकर देते रहने पडेगा। और आगे चलकर इसके लिए अलग से बजट बनाना पडेगा। लेकिन आशियाने देने के बदले सरकार को लोगों को ये समझाने में ज्यादा ताकत लगाएं की लोगों को संविधान ने देश में कहीं भी बसने और कोई भी वैध कारोबार करने का हक़ दिया है।

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