Wednesday 5 March 2008

किसानों की कर्ज माफ़ी का श्रेय किसे दिया जाए!

इस साल २९ फरवरी को जैसे ही वित मंत्री महोदय ने लोक सभा में बजट भाषण के दौरान किसानों के कर्ज माफ़ी की घोषणा की मानों भूचाल आ गया। सरकार और विपक्ष के लोग टीवी चैनलों पर दिखने लगे, सभी इस फैसले का श्रेय ख़ुद लेने में लग गए। सरकार में शामिल सभी दल इसे अपनी जीत बताने में लग गए। संसद से बाहर निकलते हुए जब मीडिया वालों ने सभी दलों के नेताओं को घेरा तो सता पक्ष से जुड़े नेता इसे आजादी के बाद का सबसे बड़ा फ़ैसला बताने लगे तो भाजपा के लोग इसे फरेब ठहराने में लग गए। सभी ख़ुद को किसानों का हमदर्द दिखाने के करतब में लग गए। सरकार ने कहा- ये फ़ैसला किसानों की तक़दीर बदल देगी तो विपक्ष ने कहाँ सरकार ने देर क्यों की। अब करीब एक सप्ताह होने को आए हैं फ़िर भी मीडिया इस पर विचार अब भी कर रहा है। लोक सभा के चुनाव नजदीक है और मीडिया में ये बहस तेज होता जा रहा है कि इस फैसले का श्रेय किसे मिलना चाहिए।

ये फैसला जैसा की मीडिया में दिखाया जा रहा है इस साल के बजट का सबसे बड़ा फैसला माना जा सकता है। लेकिन मेरे विचार में इस मामले को लोक सभा चुनाओं के अलावे दो और मसलों से जोड़कर देखा जाना चाहिए। हालांकि बजट के एक दिन पहले कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी प्रधानमंत्री जी से मिले और आम लोगों का बजट पेश करने का आह्वान किया। फ़िर जो फैसला आया वो सबके सामने हैं।

१- संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन द्वारा शासित राज्यों में से महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश। जहाँ कि अगले साल चुनाव होने हैं, और इन्ही २ राज्यों में किसानों की आत्महत्या का मामले सबसे ज्यादा सामने आता रहा है। जहीर है सरकार के इस फैसले के पीछे इन दोनों राज्यों कि सरकारों का दबाव भी काफ़ी कारगर रहा होगा।

२। बजट के २ दिन पहले पंजाब के किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल कांग्रेस नेताओं के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन संघ और सप्रंग अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मिला। मीडिया में पीएम का जैसा बयान चल रहा था उसके अनुसार प्रधानमंत्री जी ने उन्हें कहा था की बजट से २ दिन पहले मैं आप लोगों को साफ-साफ कुछ नहीं बता सकता लेकिन आपकी मांगों पर जरूर कदम उठाया जायेगा। प्रधानमंत्री जी का ये बयान पंजाबी भाषा में था।

इसके अलावे एक और सवाल जो उठाया जा रहा है की किन किसानों को इस फैसले से फायदा होगा। जहीर है की पंजाब, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को इससे फायदा होगा। इसका फायदा ज्यादातर बड़े किसानों को हो सकता है। छोटे किसान कभी कर्ज लेकर खेती नहीं करते, अगर लेते भी हैं तो साहूकारों से आगे उनकी पहुँच नहीं हो पाती। मैंने बिहार के किसानों को बैंक से खेती के लिए लोन लेते नहीं देखा है। वे अपने खेती के लिए या तो साहूकारों से पैसा उधार लेते हैं या फ़िर अपने खेत बेचकर खेती के काम को आगे बढाते हैं।

इधर हाल के वर्षों में देश के जो इलाके किसानों की समस्याओं के लिए चर्चा में रहे हैं उनमें- विदर्भ, तेलंगाना और बुंदेलखंड सबसे आगे हैं। इन इलाकों को इस फैसले से सबसे ज्यादा फायदा मिलना चाहिए। सच कहें तो उन किसानों को इस फैसले का श्रेय देना चाहिए जिन्होंने अपनी जान देकर सरकार को ये फैसला लेने को मजबूर किया। लेकिन सरकार को ऐसे किसानों को भी कर्ज मुक्त कराने का जिम्मा उठाना चाहिए जो बैंक से कर्ज न लेकर साहूकार से लेते हैं। और जो पीढियों से कर्ज के बोझ में दबे हुए हैं। मैंने ग्रामीण इलाकों में कई ऐसे किसानों को देखा है जो सहुकारो के कर्ज से मुक्त होने में असमर्थ हैं। वे कर्ज की राशी से ज्यादा व्याज दे रहे हैं और भारी बोझ में दबे हुए हैं। इस कर्ज को ख़त्म करने का श्रेय भी किसी को लेना चाहिए।

1 comment:

mamta said...

आपने सही बात कही है । सरकार ने जो कर्ज माफ़ किए है वो बैंकों के है ना की साहूकारों के। ऐसे मे छोटे किसान की हालत वहीं की वहीं रहेगी।

इस कर्ज माफ़ी का श्रेय तो एक ही व्यक्ति लेगा कौन ये तो हम सभी जानते है।