Tuesday 21 June 2011

लो अन्ना... मुकर गई सरकार..अब क्या कर लोगे?

देश में सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में चारो ओर फैले भ्रष्टाचार और सार्वजनिक धन की लूट-खसोट को खत्म करने के लिए कड़े लोकपाल कानून बनाने की  कवायद फिर एकबार थम सी गई लगती है। आज की बैठक के बाद सरकार एक बार फिर अपने पुराने ढर्रे पर लौटती दिख रही है। संविधान का नाम लेकर और उसकी रक्षा के नाम पर देश में सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता लाने की इस ऐतिहासिक  मुहिम को फिर वहीं लाकर छोड़ दिया गया जहां अपने अनशन के जरिये दो माह पहले  अन्ना हजारे और उनकी टीम और देश के तमाम लोगों ने लाकर पहुंचाया था।  लगता है "दिन भर चले अढ़ाई कोस" के मुहावरे को सच साबित करता हुआ जंतर मंतर से शुरू हुआ अन्ना और तमाम आशावादी भारतीयों का आंदोलन  एकबार वहीं वापस पहुंचा दिया गया है। अब समझे अन्ना..यही है हमारा सरकारी सिस्टम..! अब है कोई काट...अगर है तो फिर आगे बढ़ो नहीं तो ऐसे और भी कई तीर है हमारी राजनीतिक बिरादरी के तरकश में।


लोकपाल ड्राफ्टिंग कमेटी की आज की बैठक में असहमति पर सहमति बनने के फैसले की घोषणा करते हुए एक वरिष्ठ मंत्री महोदय ने जनता के समक्ष यह सवाल उछाल दिया कि अब देश की जनता के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या संवैधानिक ढ़ाचे के समानांतर लोकपाल नाम की एक और व्यवस्था को मंजूर किया जा सकता है?


मंत्री महोदय देश की जनता के पास भी अपने हूक्मरानों के लिए तमाम सवाल हैं जिसे वो रोज सोते-जागते उछालती है लेकिन उसकी गूंज अब तक हूक्मरानों तक नहीं पहुंची। मसलन चारो ओर लूट-पाट की इस परीपाटी पर रोक कैसे लगेगी? सार्वजनिक पदों पर बैठे लोग कैसे देश का और जनता का हजारो और लाखों करोड़ लूट ले रहे हैं और कोई मशीनरी उनपर काबू नहीं पा सकी?  देश के  अंदर से अरबो-खरबो रुप्या कैसे विदेशी बैंकों में पहुंच गया और अबतक उसे वापस क्यू नहीं लाया जा सका? मसलन करोड़ो-करोड़ लूट लेने वालों को कड़ी सजा क्यू नहीं दी जा सकती? गरीबो का भोजन और उनके विकास का पैसा डकार जाने वाले लोगों को डर क्यू नहीं लगता? अपराध, हत्या, अपहरण, घोटाले और देश के धन का लूट-पाट करने वाले लोग हमारे राजनीतिक सिस्टम का हिस्सा कैसे बने हुये हैं? ऐसे न जाने कितने सवाल हैं जिनपर सियासतदां मौन हैं? लेकिन याद रखिए जनता की आवाज की ज्यादा दिनों तक उपेक्षा नहीं की जा सकती और आज नहीं तो कल लोगों की बात माननी होगी और हमारे सियासतदां जनता की समस्याओं को लेकर या तो गंभीर होंगे या फिर उनकी सच्चाई और असंवेदनशील सोच सबके सामने आ जाएगी।

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