Sunday, 19 June 2011

देश को कतई नहीं चूकना चाहिए ये मौका...!

आजकल एक ही मुद्दा देश में चर्चा का विषय बना हुआ है भ्रष्टाचार और लोकपाल जैसे एक कड़े कानून बनाने का। इसपर सिविल सोसाइटी की ओर से किये जा रहे तमाम प्रयासों और राजनीतिक और सरकारी पक्ष की ढुलमुल चाल के बीच इसकी नियति अनिश्चित सी बनी हुई है। अपने एक मित्र द्वारा बार-बार उद्दाहरण देने के बाद मैने इसी मामले पर कल एक अखबार में प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा का एक लेख पढ़ा। उनके अनुसार राजधानी दिल्ली में चल रही इन तमाम कवायदों से देश की अधिकांश जनता अनजान और बेखबर है और उन्हें ऐसी बातों से कोई मतलब नहीं और ये सारे प्रयास बेकार औऱ लाइमलाइट में आने जैसी कवायदों का हिस्सा भर हैं। एक मानवाधिकार कार्यकर्त्ता के हवाले से गुहा जी ने कर्णाटक में हो रही सरकारी लूट के सामने नादिर शाह के लूटपाट को पाकेटमारी जैसा करार दिया है. अब वो महान मानवाधिकार कार्यकर्त्ता कौन हैं ये नहीं मालूम लेकिन उन्हें जरा क्रेडिट देने के अपने दायरे को बड़ा करके देश भर में मचे लूट-पाट का भी मूल्यांकन  करना चाहिए.


मेरे विचार में देश के हर आदमी को अपने और समाज की बेहतरी के लिए आगे आने और आवाज उठाने का अधिकार है और गुहा जी जैसे प्रसिद्ध लोगों को किसी भी तरह किसी एकपक्षीय अभियान का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। चलो मान लेते हैं कि उन्हें भी अपने हिसाब से सोचने का हक है तो जरूरी नहीं कि उनकी हर बात को देश का हर आदमी एक-दम ज्यों का त्यों मान ही ले। रही बात भ्रष्टाचार और समाज में पनपी बेईमानी की संस्कृति को खत्म करने के लिए कड़े कानून बनाने की मांग की बात तो इसे किसी भी आधार पर गलत नहीं ठहराया जा सकता। देश के लोगों को एक बात समझनी चाहिए कि आज जो मौका देश के सामने आया है उसे कतई नहीं चूकना चाहिए. अन्ना के रूप में आये इस मौके का अगर आज देश के लोगों ने समर्थन नहीं किया तो इसी भ्रष्ट व्यवस्था को आने वाली कई और पीढ़ियों को झेलना होगा और फिर न जाने कब इस देश में कोई व्यवस्था के सामने उठ खड़े होने का साहस करेगा. 

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